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हार विधानसभा चुनाव के प्रथम चरण की तारीख (12 अक्तूबर) ज्यादा दूर नहीं रह गई है। दोनों प्रमुख गठबंधन (राजग और महागठबंधन) के नेता जोर-शोर से चुनावी रेैलियां कर रहे हैं। हर पार्टी किसी भी सूरत मेें इस चुनाव को जीतना चाहती है। चुनाव जीतने की होड़ में सेकुलर नेता सामान्य राजनीतिक मर्यादा को भी भूल चुके हैं। राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद इस चुनाव को लेकर कितने डरे हुए हैं, इसका अंदाजा उनके बेतुके बयानों से लगाया जा सकता है। वे रोजाना अपने शब्दकोश से नए-नए शब्द निकाल कर भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैं और प्रधानमंत्री मोदी के लिए स्तरहीन भाषा का प्रयोग कर रहे हैं। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि लालू के बोल सहज नहीं हैं। वे किसी डर की आशंका से सहमे हुए हैं। तभी उनके मुंह से कुछ भी निकल रहा है और यह उनके लिए ही ज्यादा नुकसानदायक सिद्ध हो सकत है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक ही दिन (8 अक्तूबर) में चार-चार रैलियां (बेगूसराय, नवादा, समस्तीपुर और मुंगेर) कर लालू और नीतीश के सेकुलर बयानों का बड़े ही तार्किक ढंग से जवाब दिया है। प्रधानमंत्री ने लालू के गोमांस वाले बयान पर पूछा कि ‘शैतान को लालू का पता किसने दिया?’ प्रधानमंत्री की प्रभावी बातें और विकास का एजेंडा लोगों के दिल में उतर रहा है। खासकर युवा मतदाता प्रधानमंत्री से बहुत प्रभावित हैं। पटना में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले अभिषेक कुमार का कहना है कि युवा मोदी जी के कायल हैं। उनकी रैलियों में उमड़ती भीड़ विरोधियों को सुहा नहीं रही है। तभी वे प्रधानमंत्री के लिए स्तरहीन भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री की रैलियों में जहां डेढ़ से दो लाख लोग उमड़ रहे हैं, वहीं सोनिया, राहुल, लालू, नीतीश की रैलियों में लाख कोशिश करने के बाद भी 10 से 15 हजार लोग बमुश्किल जुटते हैं। पिछले दिनों भागलपुर के कहलगांव में कांग्रेस की राष्टÑीय अध्यक्ष सोनिया गांधी की सभा में मुश्किल से कुछ हजार लोग ही दिखाई दिए। बिहार विधानसभा चुनाव में पहली बार हिस्सा ले रहे एआईएमआईएम के नेता अकबरुद्दीन ओवैसी की सभा 4 अक्तूबर को किशनगंज के कोचाधामन में हुई। हालांकि मीडिया ने चुनाव के लिहाज से इसे काफी तूल दिया, लेकिन ओवैसी की सभा में मुश्किल से 5 हजार लोग ही पहुंचे। महागठबंधन के नेता भले ही अपनी जीत का दावा कर रहे हों लेकिन उनके चेहरे की हवाइयां उड़ी हुई हैं। खेमा खिसियाहट में ऊल-जलूल बयानबाजी पर उतर आया है। उधर भाजपा के राष्टÑीय अध्यक्ष अमित शाह अपनी विशेष शैली में बड़ी रैली कर कार्यकर्ताओं की टीम को भी प्रोत्साहित कर रहे हैं। अमित शाह ने सुपौल में कहा कि नीतीश लालू की जोड़ी ने बिहार पर 25 वर्षों तक शासन किया और राज्य को बदहाल कर दिया। नीतीश के कंधे पर एक तरफ भ्रष्टाचार तो दूसरी तरफ जंगलराज बैठा हुआ है।
नीतीश कुमार भले ही छिछले बयान नहीं दे रहे हैं, लेकिन उनके हाव-भाव और चेहरे पर उभरी चिंता की लकीरें बता रही हैं कि वे हताशा में हैं। वहीं उनके ‘बड़े भाई’ लालू प्रसाद नित्य नये अनर्गल बयानों से विवाद पैदा कर रहे हैं। उन्होंने अपने पहली चुनावी सभा में यदुवंशियों का आह्वान करते हुए कहा था कि कमंडल को फोड़ने का समय आ गया है। उनके इस बयान पर चुनाव आयोग ने संज्ञान भी लिया। अभी यह मामला शांत भी नहीं हुआ था कि लालू ने दूसरा बयान दे डाला। कहा कि हिन्दू भी ‘बीफ’ यानी गोमांस खाते हैं। उनके अनुसार मांस खाने वालों के लिए बकरे और गाय के मांस में कोई फर्क नहीं है। विदित हो कि लालू स्वयं भी मांसाहारी हैं। बीच में कुछ समय के लिए उन्होंने मांसाहार बंद कर दिया था। लालू ने यह काम एक तांत्रिक के कहने पर किया था। उस समय लालू प्रसाद चारा घोटाले के मामले के चलते बहुत परेशान थे। राज्य की सत्ता अपनी पत्नी को सौंप वे न्यायालय और जेल के चक्कर लगा रहे थे। जेल में ही उन्होंने मांसाहार त्याग किया। उन्होंने तब पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा था कि रात में शंकर भगवान ने उन्हें स्वप्न में कहा कि मांसाहार छोड़ दो। लेकिन बिहार में जब सत्ता परिवर्तन हुआ और राज्य में राजग की सरकार बनी तो लालू प्रसाद ने उसे अपने राजनैतिक वनवास का प्रारंभ माना, लेकिन दैवयोग से केंद्र में उन्हें रेलमंत्री का पद प्राप्त हो गया। 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद अपने जीवन के सबसे खराब दौर में चले गये। उनकी पार्टी इतनी सीटें भी न जीत सकी कि पार्टी को विधानसभा में विपक्ष का दर्जा प्राप्त हो सके। बहरहाल लालू के गोमांस वाले बयान ने बिहार के चुनावी माहौल को और भी गरमा दिया है। बताया जा रहा है कि सोनिया गांधी भी लालू से खफा हैं।
बिहार कांग्रेस के प्रवक्ता एच.के. वर्मा ने लालू के बयान से किनारा करते हुए कहा कि चुनाव में कौन व्यक्ति क्या बोलता है इससे कांग्रेस को कोई मतलब नहीं। लालू एक पार्टी के प्रमुख हैं। उन्होंने किस कारण से यह बयान दिया है, यह वे ही समझें। जब विवाद बढ़ा तो लालू ने कह दिया कि उनके मुंह से शैतान ने यह बात कहलवाई। इसके बाद उन्होंने फिर बेतुका बयान दे डाला। भाजपा सांसद एवं केंद्रीय पेयजल एवं स्वच्छता राज्यमंत्री रामकृपाल यादव ने लालू प्रसाद पर कटाक्ष करते हुए कहा कि परिवार और कुर्सी के लिए वे स्वयं धृतराष्टÑ बन गये हैं। परिवार और कुर्सी के लिए बेचैन धृतराष्टÑों का राजनैतिक वध करने के लिए भाजपा के पांडव-नंदकिशोर यादव, हुकुमदेव नारायण यादव, रामकृपाल यादव, नित्यानंद राय एवं ओमप्रकाश यादव तैयार हैं। उन्होंने गोमांस मामले पर लालू-नीतीश और सोनिया, तीनों को बिहारी समाज को जवाब देने की भी बात कही। केंद्रीय राज्यमंत्री गिरिराज सिंह ने भी अपने ट्वीट में कहा कि लालू के गोमांस वाले बयान पर नीतीश की चुप्पी इस ओर इशारा करती है कि वे हिन्दू को जबरन गोमांस खिलायेंगे। नीतीश को जवाब देना पड़ेगा।
लालू प्रसाद के बेटे तेजप्रताप और तेजस्वी चुनाव लड़ रहे हैं। तेजप्रताप महुआ सीट से तथा तेजस्वी राघोपुर से राजद के प्रत्याशी हैं। वैसे तो तेजप्रताप तेजस्वी से उम्र में बड़े हैं लेकिन हलफनामे में तेजस्वी ने अपनी उम्र 26 साल लिखवाई जबकि बड़े भाई तेजप्रताप ने अपनी 25 वर्ष। हलफनामे के मुताबिक तेजस्वी नौवीं पास हैं जबकि तेजप्रताप इंटर तक पढ़े हैं। राजद प्रत्याशियों का सच भी सामने आने लगा है। काराकाट के राजद उम्मीदवार संजय सिंह यादव विक्रमगंज थाना में तैनात जमादार लक्ष्मण राम के साथ मारपीट के आरोप में जेल में बंद हैं। 2013 के इस मामले में फरार चल रहे संजय यादव ने अपना नामांकन भी दाखिल कर दिया लेकिन पुलिस उन्हें गिरफ्तार नहीं कर सकी। जब मीडिया में काफी हंगामा हुआ तब 3 अक्तूबर को इस राजद नेता ने अदालत में समर्पण किया। इसी प्रकार गया के बेलागंज से राजद प्रत्याशी व विधायक सुरेंद्र यादव के खिलाफ वारंट और कुर्की जारी करने पर न्यायालय में विचार चल रहा है। पहले चरण में 583 प्रत्याशियों में 174 पर आपराधिक मामले हैं। 130 पर गंभीर मामले हैं। महागठबंधन के 18 प्रत्याशियों पर गंभीर मामले दर्ज हुए हैं। बेगूसराय के मटिहानी से जदयू प्रत्याशी नरेन्द्र सिंह पर पंद्रह मामले दर्ज हैं। दूसरे चरण में महागठबंधन के 22 प्रत्याशियों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। डेहरी से राजद प्रत्याशी इलियास हुसैन पर 9 गंभीर मामले दर्ज हैं। लालू के कार्यकाल में इलियास हुसैन मंत्रिमंडल की शोभा बढ़ाते रहे। पथ निर्माण विभाग के मंत्री के रूप में वे राजद के लिए धन जुटाते थे। जदयू के प्रत्याशियों की कहानी तो और विचित्र हैं। लालू राज के कई कद्दावर इन दिनों दल बदलकर चुनाव लड़ रहे हैं। नीतीश कुमार के राज्य में अनंत सिंह का वही स्थान हुआ करता था जो लालू प्रसाद के राज्य में साधु और सुभाष यादव का होता था। पटना में अनंत सिंह ने अकूत संपत्ति बटोरी। लालू प्रसाद का राजनैतिक कारणों से जब दबाव बढ़ा तो अनंत सिंह जेल की सलाखों के पीछे गये। इस बार उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में चुनावों में कूदने का मन बना लिया है। जदयू के निवर्तमान विधायक बाहुबली सुनील पांडेय दल बदलकर लोजपा से चुनाव लड़ने को तैयार बैठे हैं। तीसरे मोर्चे की अगुआई समाजवादी पार्टी कर रही है लेकिन उसके प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र सिंह यादव भूमिगत हो गये। उन पर पैसा लेकर टिकट नहीं देने का आरोप पार्टी के ही कुमार वेंकटेश्वर ने लगाया है। उल्लेखनीय है कि बिहार की जनता राजनैतिक रूप से सबसे सजग मानी जाती है।
बिहार में राजनैतिक बदलाव के लिए वोट दिये जाते हैं। कांग्रेस जैसी अपराजेय मानी जाने वाली पार्टी को शिकस्त देने की कवायद बिहार से ही शुरू हुई थी। बिहार में आज फिर बदलाव का मन बनता दिख रहा है। जनता इस बदलाव को अपने मतों से लाने का संकेत भी दे रही है। विभिन्न चुनाव सर्वेक्षण भी इस ओर इशारा कर रहे हैं। जी न्यूज और ‘जनता का मूड’ सर्वे में यह बात स्पष्ट रूप से सामने आयी है कि राजग 147 सीटों पर जीत हासिल करेगा। बिहार की जनता 8 नवंबर का बेसब्री से इंतजार कर रही है। संजीव कुमार
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