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अंक संदर्भ- 13 सितम्बर, 2015
आवरण कथा ‘हवा हिन्दी की’ से स्पष्ट होता है कि भारत की पहचान हिन्दी से जुड़ी है न कि अन्य भाषाओं से। कुछ अपने लोगों के कारण ही हिन्दी को दोयम दर्जे की भाषा या यूं कहें तो उसे नीचा गिराने का षडयंत्र किया गया। आज हिन्दी का डंका पूरे विश्व में बज रहा है। सभी प्रदेशों की भाषाओं को अपने में समेटते हुए हिन्दी सतत् आगे बढ़ रही है। पाञ्चजन्य ने इस अंक में हिन्दी के विषय में बहुत सी जानकारियां देकर समाज का ज्ञानवर्द्धन किया है।
—स्वामी खुशालनाथ ‘धीर’,
कल्याणपुरा मार्ग, बाड़मेर (राज.)
ङ्म क्षेत्रीय भाषाओं को साथ लेकर हिन्दी भाषा के नेतृत्व में राष्ट्रगौरव और विकास के पथ बढ़ने का उचित समय है। जो कथित समूह हमारे देश की क्षेत्रीय भाषाओं को अंगे्रजी नेतृत्व में हांकने की कोशिश कर रहे हैं उस कोशिश को निष्फल करना हम सभी का लक्ष्य होना चाहिए। आज अगर किसी चीज की जरूरत सबसे ज्यादा है तो वह यह है कि हिन्दी को राजकाज की बजाय कामकाज की भाषा बनाया जाय। सरकारी दफ्तरों में पूर्ण रूप से हिन्दी का प्रयोग बढ़े। न्यायालय की भी भाषा हिन्दी हो। इन कार्योें से हिन्दी का विकास तो होगा ही साथ ही कामकाज की भाषा हो जाने के बाद लोग इसकी ओर ज्यादा आकर्षित होंगे।
—हरिओम जोशी
चतुर्वेदीनगर,भिण्ड(म.प्र.)
ङ्म आज देखने में आता है कि अधिकतर भारतीय अपने बच्चों को अंग्रेजी में शिक्षा देने और कॉन्वेंट स्कूलों में भेजने में गौरव की अनुभूति करते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि बच्चा धीरे-धीरे अपनी संस्कृति और समाज से दूर होता चला जाता है। उसके ऊपर पूरी तरह से पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव आ जाता है। सच तो यह है कि बच्चे को सबसे पहले घर में मां से शिक्षा मिलती है। उसी शिक्षा के दम पर वह आगे चलकर और भी भाषाओं में निपुणता प्राप्त कर लेता है। हकीकत में देखा जाय तो कांग्रेसी मानसिकता और पाश्चात्य देशों के तरफ झुकाव और अपने देश और संस्कृति के प्रति हीन भावना रखने वाले लोगों ने हिन्दी को कमतर आंकने का काम किया। उन्होंने समाज पर अंग्रेजी थोपी। खान-पान, रहन-सहन सब अंग्रेजों जैसा होने लगा। यह सब भाषा के बदलने से हुआ। लेकिन अब समय है जब हम इस व्यवस्था को सुधार सकते हैं और हिन्दी का मान पुन: स्थापित कर सकते हैं।
—महेश सत्यार्थी
पुरानी अनाज मंडी,बदायंू (उ.प्र.)
ङ्म देश की आजादी के 68 वर्ष बाद भी भारत विदेशी भाषा, संस्कृति और सभ्यता का गुलाम हैं। देश अपनी व्यवस्था को भूलकर विदेशी व्यवस्था के प्रति आकर्षित हो रहा है। इसका मुख्य कारण है कि हम लोगों ने ही अंग्रेजी बोलने और जानने वाले लोगों को विद्वान और हिन्दी बोलने वाले लोगों को सामान्य व्यक्ति की नजरों से देखा और अंग्रेजी वाले का हौसला बढ़ाया, हिन्दी जानने वाले को अपमानित करने पर मजबूर कर दिया। जबकि सत्य है कि अपनी भाषा में हमारी संस्कृति और सभ्यता झलकती है। इसलिए केन्द्र सरकार भारत को एक सूत्र में पिरोने के लिए राष्ट्रभाषा हिन्दी को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान दे।
—देशबंधु
संतोष पार्क, उत्तम नगर (नई दिल्ली)
ङ्म शिक्षा महज जानकारी बढ़ाने वाली, रोजगार देने वाली ही नहीं, बल्कि हमारी सनातन संस्कृति का संस्कार देने वाली होनी चाहिए। लेकिन आजादी के बाद से इस बात को भुलाया गया और अंग्रेजी-अंग्रेजियत को थोपा गया। इसका प्रभाव यह हुआ कि देश के कई राज्यों में ईसाई मिशनरियों ने शिक्षा के नाम पर हमारी संस्कृति को नष्ट-भ्रष्ट करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। इस विषय पर राज्य सरकारों का मौन शर्म की बात है। यह दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक है कि इस ज्वलंत मुद्दे पर चर्चा करना साम्प्रदायिक समझा जाता है।
—मनोहर मंजुल
पिपल्या-बुजुर्ग,प.निमाड (म.प्र.)
समाज जागरण
पाञ्चजन्य द्वारा बाबा साहेब आंबेडकर के विराट व्यक्तित्व पर जो अंक प्रकाशित हुआ उसने समाज में जागरण का काम किया है। ऐसे अंक के प्रकाशन की वर्तमान में महती आवश्यकता थी। समाज में आंबेडकर के बारे में तमाम तरह की निरर्थक बातें सुनने में आती रहती हैं। लेकिन वे किस परिस्थिति में रहे इसके बारे में समाज नहीं जानता था। लेकिन इस अंक ने उनके बारे में अधिक से अधिक विवेचन कर उनके जीवन के महत्वपूर्ण दिनों पर प्रकाश डाला है।
अमित कुमार,
बांसवाड़ा (राज.)
सही जगह चोट
लेख ‘एक दांव में कांग्रेस पस्त’ अच्छा लगा। सच पूछा जाय तो कांग्रेस ने अपनी गलतियों को छुपाने के लिए इतना शोरगुल करके संसद को हंगामे की भेंट चढ़ा दिया। विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने जिस प्रकार उनके काले कारनामों को उजागर किया वह वास्तव में तारीफ के काबिल है। देश ने अब जान लिया है कि कांग्रेस अपनी गलतियों को छुपाने के लिए भाजपा पर दोषारोपण कर रही है और इसलिए उसने संसद को चलने नहीं दिया। ताकि वह लोगों को दिग्भ्रमित करे कि केन्द्र में काबिज भाजपा सरकार ने अपने शासनकाल में कुछ काम नहीं किया। लेकिन उनकी मंशा धरी की धरी रह गई। उनके इस कुचक्र को देशवासी जान चुके हैं।
—राममोहन चन्द्रवंशी
टिमरनी, जिला-हरदा (म.प्र.)
सराहनीय जानकारी
लेख ‘विकास की आस में पंचनदा’ सांस्कृतिक पर्यटन के अंतर्गत पढ़कर एक नए पर्यटन स्थल के बारे में जानकारी प्राप्त हुई। साथ ही लेख में सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण एवं विकास कैसे हो उसकी भी जानकारी दी गई है जो सराहनीय है। लेकिन देश में जो विभूतियां इस क्षेत्र में कार्य कर रही हैं उनका सम्मान होना चाहिए।
—जी.एस.पाण्डेय
डी-302,वसंतनगरी,पालघर (महाराष्ट्र)
जोड़तोड़ की राजनीति के माहिर
बिहार चुनाव में एक बार फिर प्रदेश के लोगों को बरगलाने का कार्य कुछ दलों और नेताओं द्वारा किया जा रहा है। लालू-नीतीश जो जाति और मत-पंथ की राजनीति करके पहले से ही बिहार को गर्त में पहुंचा चुके हैं एक बार फिर साथ मिलकर तैयार हुए हैं। बिहार के लोगों ने देखा की किस तरह राजद के शासन काल में प्रदेश में जंगलराज का माहौल हो गया था। आज फिर इसी माहौल को पुन: लाने के लिए लालू-नीतीश ने गठबंधन किया है। आपस में एक दूसरे को लड़ाकर बारी-बारी से प्रदेश की सत्ता पर राज करना इन नेताओं की एक चाल रही है। विकास के नाम पर बिहार की दशा देखने वाली है। इसलिए प्रदेश की जनता जागरूक होकर ऐसे नेता को चुने जो प्रदेश को विकास के पथ पर अग्रणी रखे।
—नवीन साहू
वाल्मीकि मंदिर, बदली (बिहार)
हिन्दूहित में हो संपत्ति का उपयोग
लेख ‘भगवान की तिजोरी और सेकुलर चोरी’ से स्पष्ट होता है कि किस प्रकार हिन्दू मंदिरों के धन को लूटकर निरर्थक कार्योंं में लगाया जा रहा है। इस लेख ने मंदिर की संपत्ति के एकाधिकार को हिन्दू समाज के सदुपयोग में लगाने की जो प्रेरणा दी है वह बहुमूल्य है।
देश के बड़े-बड़े मंदिरों के धन का
एक बड़ा हिस्सा सरकारें राजकोष में जमा करवाती हैं और अल्प से अल्प हिस्से से मंदिर की सेवा की औपचारिकताएं पूरी की जाती हैं। यहां तक कि केरल और कर्नाटक राज्य की सरकारें मंदिरों के धन से न सिर्फ मुसलमानों के वोट बैंक को मजबूत कर रही हैं बल्कि उस धन को मुसलमानों के विकास पर अंधाधुंध लुटा रही हैं। आखिर मंदिरों का ही धन खैरात में क्यों लुटाया जाता है? क्यों चर्च और मस्जिदों का धन नहीं लुटाया जाता? इस प्रकार के कार्य को तत्काल बंद किया जाना चाहिए। मंदिर की संपत्ति को सिर्फ और सिर्फ मंदिर से जुड़े कार्यों और हिन्दू हित के कार्योंं में लगाया जाना चाहिए।
—अमित कुमार राजवंशी
सतना (म.प्र.)
मुगलों के हिमायती
नई दिल्ली नगर पालिका द्वारा औरंगजेब मार्ग का नाम बदलकर भारतरत्न डॉ.ए.पी.जे. अब्दुल कलाम प्रशंसनीय कार्य है। परन्तु इस अच्छे कार्य के भी विरोध में आजम खान और ओवैसी जैसे मुगलों के पैरोकार खड़े हो गए। क्या उन्हें इतिहास का ज्ञान नहीं है। भारत का मध्यकालीन इतिहास गवाह है कि औरंगजेब एक क्रूर, अत्याचारी मुसलमान शासक था। उसके लगभग 50 वर्षीय शासनकाल में ही सबसे ज्यादा हिन्दुओं पर अत्याचार हुए, लाखों हिन्दुओं का कत्ल किया गया और लाखों को इस्लाम में कन्वर्ट किया गया। नौवें सिख गुरु गुरु तेगबहादुर तथा उनके सैकड़ों शिष्यों सहित अनेक लोगों की हत्याएं औरंगजेब ने स्वयं ही करवायी थीं। शायद औरंगजेब के इन्हीं गुणों के कारण इन कट्टरपंथी नेताओं को वह पसंद है। जबकि हकीकत यह है कि डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम अपने राष्ट्रवादी चरित्र और भारतीय सोच के कारण ही मुस्लिम कट्टरपंथियों की आंख में सदा चुभते रहे।
—डॉ. सुशील गुप्ता
बेहट बस स्टैण्ड, सहारनपुर (उ.प्र.)
समस्या का हो समाधान
लेख ‘किसने कहा बंद हो गई गीताप्रेस’ पढ़कर आश्चर्य हुआ। लगभग 25-30 वर्षोंं से सतत् प्रकाशित इसके दुर्लभ ग्रन्थ पढ़ रहा हूं। यह जानकर दु:ख हुआ कि संस्थान के कर्मचारियों को वेतन नहीं मिल रहा है। लेकिन कुछ भी हो इस अमूल्य धरोहर को सहेजने के लिए संस्थान और कर्मचारियों को मिल बैठकर बीच का एक रास्ता निकालकर सदा के लिए ऐसे किसी भी विवाद को शान्त कर देना चाहिए।
—कजोड़राम नागर
बी-120, दक्षिणपुरी (नई दिल्ली)
संकीर्ण मानसिकता
भारत का गौरव स्व. डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम अब हमारे बीच नहीं रहे। उनके निधन से देश को अपूरणीय क्षति हुई। लेकिन कुछ लोगों ने उनके निधन के बाद निम्नस्तर की टिप्पणियां कीं। जबकि जिस विषय पर वह टिप्पणी कर रहे थे उस विषय पर कभी भी डॉ. कलाम ने कुछ नहीं बोला। देश ने ही उनके अभूतपूर्ण कार्यों से उन्हें महान व्यक्ति की संज्ञा देकर सुशोभित किया। भारत के 11वें राष्ट्रपति के रूप में पांच वर्ष तक देश की सेवा करके डॉ. कलाम न केवल भारतीय जनता के लिए महामानव साबित हुए बल्कि पूरे विश्व ने उनके कार्योंं और उनकी राजनीतिक समझ को सराहा। जो लोग उनके जाने के बाद कुछ निरर्थक टिप्पणियां करते हैं उनके लिए जवाब है कि स्व. कलाम को राष्ट्रभक्त देशवासियों का सबसे अधिक प्यार मिला। जीवित अवस्था में शायद ही किसी ने उनका एवं उनके कार्यों का विरोध किया हो। फिर उनकी मृत्यु के बाद उनके महान योगदान पर प्रश्नचिह्न लगाने वाले कुछ लोग किस घृणा भाव का परिचय दे रहे हैं!
स्व. कलाम एक सच्चे देशभक्त थे। उन्होंने भारत की सुरक्षा के लिए अपना संपूर्ण जीवन अर्पित कर दिया। बाहरी शत्रुओं से बचाने के लिए उन्होंने भारतीय सेना को अत्याधुनिक हथियारों से लैस करने में अपना सर्वोच्च योगदान दिया। आज देश के लिए कलाम साहब प्रेरणास्रोत हैं। देशवासियों को उनके चरित्र से प्रेरणा लेनी चाहिए। अपने जीवन में उन्होंने सदैव जात-पात,पंथ-मजहब और क्षेत्रीयता से ऊपर उठकर बात की, कोई मतभेद नहीं किया। उनके लिए देश का प्रत्येक व्यक्ति समान था। फिर चाहे वह किसी भी पंथ, मजहब का हो। इसलिए देश ने उनके निधन पर आंसू बहाए। स्व. कलाम ने देश के विरोध में उठने वाले प्रत्येक स्वर का करारा जवाब दिया। उन्होंने इसमें कभी भी अपने मजहब को आड़े नहीं आने दिया।
—मो.जाहिदुल दीवान
45 ई, बह्मपुत्र छात्रावास, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (नई दिल्ली)
बुद्धि पर तरस
सूत कपास कहीं नहीं, मगर भिड़े लठबाज
उनकी बुद्धि पर तरस, आता हमको आज।
आता हमको आज, जरा देखो तो पढ़कर
मोहन जी क्या बोले, बांचो पृष्ठ पलटकर।
कह ‘प्रशांत’ बिन सोचे बना दिया है हौआ
मानो उनका कान ले गया कोई कौआ॥
-प्रशांत
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