अपनी बात:विकास और विश्वास की भूमि
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अपनी बात:विकास और विश्वास की भूमि

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Oct 5, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 05 Oct 2015 10:58:43

धूप खिली है। कैलिफोर्निया के मेनलो पार्क स्थित फेसबुक मुख्यालय परिसर मेंभारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विश्व की इस सबसे बड़ी सोशल मीडिया कंपनी के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग के सामने हैं। चालीस हजार सवालों में से चार प्रश्न छांटे गए हैं।
हर प्रश्न से पहले मेनलो पार्क स्थित परिसर से जिज्ञासा की तरंग उठती है और वैश्विक रूप ले लेती है।
इसके बाद आता है उत्तर। सटीक, सारगर्भित और अंत में बेहद भावनात्मक। हर उत्तर के साथ जिज्ञासाएं पीछे रह जाती हैं। संतोष, आश्वस्ति और संभावनाओं के नए क्षितिज दिखने लगते हैं। चेहरों पर मुस्कान की रेखाएं गहरी होती हैं। धूप कुछ और सुनहरी होती जाती है।
क्या है यह? सिर्फ दो लोगों, मोदी और जुकरबर्ग का वार्तालाप?
नहीं।
सौदे और मुनाफे को साधती कारोबारी संभावनाओं की टटोल? सिर्फ इतना भी नहीं।
मोदी सोशल मीडिया पर डिजिटल इंडिया के संकल्प को व्यक्त करती तिरंगी 'डिस्प्ले पिक्चर' (डीपी) डालते हैं, जुकरबर्ग भी ऐसा ही करते हैं। तिरंगे के इसी फ्रेम में हजारों-लाखों लोग उभरते जाते हैं। क्या यह घटना भविष्य के भारत और भारत के साथ अपना भविष्य देखने की वैश्विक अकुलाहट के तौर पर दर्ज की जा सकती है?
चीनी और अमरीकी कंपनियों की भारत में निर्माण इकाइयां लगाने की उत्सुकता इस सवाल का केवल आर्थिक पक्ष है। दरअसल, यह सवाल बहुआयामी है। अर्थ, समाज और संस्कृति को समेटे यह प्रश्न भारत की थाती से जुड़ा है। मार्क्सवादी संघर्षांे से लहूलुहान और पूंजीवादी शोषण से निचुड़ी दुनिया बेचैनी से एक खास दिशा में देख रही है। अनुभवों से सीख रही है। एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स यह अनुभव पहले ले चुके थे। बेचैनी से उबरने, खुद को पहचानने का मंत्र भारत से मिलेगा, यह बात जुकरबर्ग को उन्होंने ही बताई।
विश्व खुद को पहचानने की प्रक्रिया में है। अपने 'स्व' को सृष्टि में व्याप्त चेतना के 'भाव' को तलाशने की प्रक्रिया दुनिया को भारत की ओर खींच रही है। यह सिर्फ पूंजी की खनक नहीं, इसमें आध्यात्मिकता पर टिकी संस्कृति का चुंबकीय आकर्षण भी है। पूंजी और विकास ठीक है, लेकिन यह खेल कितना टिकाऊ होगा? सकल घरेलू उत्पाद की धौंकनी ओजोन परत का क्या करेगी? सकल प्रसन्नता सूचकांक की कसौटी पर दुनिया कहां ठहरेगी?
ये ऐसे प्रश्न हैं जिनके उत्तरों की भूमि भारत है।
एक ऐसा अनूठा देश जो टिकाऊ दर्शन और परंपराओं की भूमि है। जो प्रगति के लिए प्रतिबद्ध दिखता है और जिसने अपनी आत्मिक-आध्यात्मिक शांति के सबक भी संजो कर रखे हैं। जहां सोशल मीडिया पर डिजिटल इंडिया की तिरंगी डीपी लगाने वाले लाखों हैं और नासिक कुंभ में डुबकी लगाने वाले भी इतने ही। जिसकी संस्कृति से फूटा एकात्म मानव दर्शन विश्व को नई दिशा देने की शक्ति रखता है।
मोदी के उत्तरों में सिर्फ निवेशकों को दिया जाने वाला आश्वासन नहीं है। जुकरबर्ग के चेहरे पर सिर्फ मुनाफे की मुस्कान नहीं है। एक और शून्य के मेल से अपार डिजिटल समीकरण रचती दुनिया एक नए दौर की दहलीज पर है, जहां भारत उसके लिए ज्यादा महत्वपूर्ण हो उठा है।
डिजिटल इंडिया की इस बाइनरी चमक में अनंत संभावनाओं से भरे शून्य की गहराई देखिए, एकात्म मानव दर्शन का प्रकाश तलाशिए। यह भारत ही है जो दुनिया के हृदय में समाया है।
 

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