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विष्णुगुप्त
रियाई बच्चे आयलान और गालिब की मौत की तस्वीरें सामने आते ही यूरोप ही क्यों पूरी दुनिया में मुस्लिम शरणार्थियों के प्रति दया व करुणा का भाव उत्पन्न हुआ है और मुस्लिम शरणार्थियों को मानवाधिकार के नाम पर शरण देने व उनकी जीवन सक्रियता के लिए संरक्षण देने के साथ ही साथ सहायता की अपील भी हुई है। इस अपील का परिणाम यह हुआ कि ब्रिटेन सहित कई यूरोपीय देश अपने यहां शरणार्थियों को बसाने की घोषणा कर चुके हैं। ब्रिटेन ने कहा है कि वह अपने यहां 13 हजार से अधिक सीरियाई मुस्लिम शरणार्थियों को शरण देगा, आस्ट्रिया भी शरणार्थियों को शरण देने के लिए तैयार है। सिर्फ सीरिया ही की बात नहीं है बल्कि जहां भी युद्धग्रस्त क्षेत्र हैं वहां से पलायन जारी है, सुरक्षित जीवन की खोज में लोग जान की भी परवाह नहीं कर रहे हैं। सीरिया, इराक, यमन, लेबनान, सूडान, लीबिया, इथोपिया, नाइजीरिया, सोमालिया जैसे दर्जनों देश ऐसे हैं जहां पर इस्लाम के नाम पर हिंसा और युद्ध जारी है, इन देशों में गाजर-मूली की तरह लोग काटे जा रहे हैं, मानवता न केवल शर्मसार हो रही है बल्कि मानवता नाम की कोई चीज भी नहीं बची है। किसी को यह भी पता नहीं है कि मजहब के नाम पर जारी यह हिंसक-अमानवीय हिंसा व कत्लेआम कब समाप्त होगा? जिस प्रकार की स्थितियां हैं उन्हें देखते हुए यह नहीं कहा जा सकता है कि मजहब के नाम पर जारी हिंसा कुछ वषार्ें में समाप्त हो ही जायेगी। मजहब के नाम पर सत्ता हासिल करने के लिए आतंकवादी-हिंसक खेल छोड़ने के लिए कभी भी तैयार होने वाले नहीं हैं। यूरोप की समस्या यह है कि वह सभी शरणार्थियों को शरण कैसे दे सकता है? यूरोप के पास भी भूमि और आर्थिक समस्या का सवाल है। दस-बीस हजार शरणार्थियों की बात होती तो यूरोप अपने यहां आसानी से शरणार्थियों को बसा सकता था। पर सीरिया, इराक, सूडान, लेबनान, लीबिया, इथोपिया, नाइजीरिया, सोमालिया जैसे देशों से कोई हजार-दो हजार नहीं बल्कि करोड़ों लोग पलायन कर यूरोप में शरण लेने के लिए सक्रिय हैं। ऐसी स्थिति में शरणार्थी समस्या कितनी जटिल है कितनी भयानक है, कितनी खतरनाक है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
जब समस्या बड़ी होती है, विकराल होती है, खतरनाक होती है तब उसके निदान, उसके समाधान के तरीके कोई सतही नहीं होने चाहिए, गंभीर होने चाहिएं, चाकचौबंद होने चाहिए, तात्कालिकता में नहीं खोजे जाने चाहिए, दीर्घकालिकता में खोजे जाने चाहिए। यूरोप अभी-अभी जो तरीके खोज रहा है, उनमें तत्कालिकता है, उनमें भावनात्मकता है। तत्कालिकता व भावनात्मकता में खोजे गए समाधान टिकाऊ नहीं होते हैं। अब यहां यह सवाल उठता है कि शरणार्थी समस्या का सर्वश्रेष्ठ समाधान क्या है?
सर्वश्रेष्ठ समाधान तो सिर्फ यही है कि किसी भी व्यक्ति को शरणार्थी जीवन जीने के लिए अभिशप्त ही किया जाए। पर यह संभव हो ही नहीं सकता है। न हिंसा समाप्त होगी, न मजहब के नाम पर जारी आतंकवाद समाप्त होगा। जब तक हिंसा-आतंकवाद जारी रहेगा तब तक जीवन को सुखमय बनाने और जीवन को सक्रिय रखने वाली वस्तुओं और संसाधनों का विकास भी संभव नहीं होता है, शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति नाजुक और खतरनाक होती है। अफ्रीका और अरब के जिन देशों में हिंसा है, आतंकवाद है, मजहब के नाम पर गृहयुद्ध जारी है उन देशों के नागरिक भूख के शिकार हैं, कुपोषण के शिकार हैं, अशिक्षा के शिकार हंै, उनका जीवन नर्क के समान है।
यूरोप में शरणार्थियों को लेकर विरोध का वातावरण भी तेजी से विकसित हुआ है। यूरोप की सरकारें जहां शरणार्थी समस्या के लिए मानवीय आधार पर शरणार्थियों को बसाने के लिए जगह देने के लिए तैयार हैं वहीं पर यूरोप के राष्ट्रवादी लोग बेहद खफा हैं और शरणार्थियों को किसी भी कीमत पर अपने यहां कोई जगह देने के खिलाफ हैं। उनका तर्क है कि यह शरणार्थी समस्या हमारे लिए 'आबादी आक्रमण' के समान है और हम 'आबादी आक्रमण' के जाल में फंस रहे हैं। यूरोप के राष्ट्रवादी लोग शरणार्थी समस्या को आबादी आक्रमण क्यों मान रहे हैं, इसके पीछे उनकी अवधारणा क्या है! उनकी जो अवधारणा है वह कितनी सच और कितनी झूठ है! राष्ट्रवादियों की अवधारणा है कि अरब और अफ्रीका से दो तरह के शरणार्थी यूरोप आ रहे हैं। एक शरणार्थी वे हैं जो मुस्लिम आतंकवाद से पीडि़त हैं, जिनकी जान-माल की कोई सुरक्षा नहीं है, जिनका जीवन नर्क बन चुका है और दूसरे शरणार्थी वे हैं जो कट्टरपंथी हैं, कट्टरपंथी मानसिकता के प्रचार-प्रसार के लिए यूरोप भेजे जा रहे हैं। यूरोप को दूसरे प्रकार के शरणार्थियों से बहुत बड़ी समस्या उत्पन्न होगी, कट्टरपंथी जब शरणार्थी के वेश में आएंगे तब हमें उन्हें पहचानना मुश्किल होगा, पर धीरे-धीरे कट्टरपंथी मानसिकता के शरणार्थी न केवल हमारी भूमि, हमारी संस्कृति, हमारे लोकतंत्र को कलंकित करेंगे, बल्कि हमारी आर्थिक स्थिति को भी चौपट करेंगे। यूरोप के राष्ट्रवादियों का यह भी मानना है कि आईएस, अलकायदा, बोकोहरम जैसे आतंकवादी संगठन एक साजिश के तहत शरणार्थियों के वेश में कट्टरपंथियों की जमात ही नहीं बल्कि दुर्दांत आतंकवादियों को भी यूरोप में घुसा रहे हैं। यूरोप के राष्ट्रवादियों का यह आरोप सच भी हो सकता है। इसलिए कि आतंकवादी संगठन अपने दीर्घकालिक आतंकवादी मंसूबों के लिए कट्टरपंथियों और आतंकवादियों को शरणार्थियों के वेश में यूरोप के अंदर घुसा सकते हैं और यूरोप के बहुलतावाद के सामने खतरनाक चुनौती खड़ी कर सकते हैं।
हम इस बात से इन्कार नहीं कर सकते हैं यूरोप ने कभी बहुलतावाद के नाम पर अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए अरब और अफ्रीका की मुस्लिम आबादी को आमंत्रण दिया था। अरब और अफ्रीका की एक बड़ी आबादी यूरोप में जाकर बसी थी। यूरोप के उदारवाद ने अरब और अफ्रीका की मुस्लिम आबादी को फलने-फूलने का अवसर दिया था। धीरे-धीरे मुस्लिम आबादी मजबूत हुई। पर जैसे ही मुस्लिम आबादी मजबूत हुई वैसे ही यूरोप के अंदर कट्टरपंथियों की एक फौज खड़ी हो गयी। आतंकवाद की पक्षधर जमात तैयार हो गयी। यूरोप के उदारवाद में कट्टरपंथ की हवा हावी हो गयी। यूरोप से सैकड़ों नहीं बल्कि हजारों मुस्लिम युवक इराक, लीबिया और सीरिया जाकर आतंकवादी संगठन आईएसआईएस की ओर से लड़ाई लड़ रहे हैं। शरणार्थी के रूप में जो मुस्लिम आबादी आ रही है वह मुस्लिम आबादी भविष्य में यूरोप की लोकतांत्रिक सरकार पर काबिज हो सकती है और भविष्य में यूरोप को इराक, लीबिया, सोमालिया, सीरिया जैसी स्थिति में खड़ा कर सकती हैं।
फिर भी शरणार्थियों के लिए यूरोप के दरवाजे बंद नहीं होने चाहिएं। शरणार्थियों को मानवीय सहायता उपलब्ध होनी चाहिए। पर यूरोपीय देशों में भी मतभेद खड़े हो रहे हैं। जर्मनी ने काफी शरणार्थियों को जगह दी है पर अब जर्मनी ने कहा है कि उसकी शरणार्थी नीति का गलत फायदा नहीं उठाया जाना चाहिए, यानी कि अब जर्मनी आंख-मूंदकर शरणार्थियों को जगह नहीं देगा। इधर हंगरी ने भी कहा है कि आस्ट्रिया अब अपनी सीमा को सील कर शरणार्थियों की बाढ़ को रोके।
जर्मनी और हंगरी के रुख से यह साफ पता चलता है कि इराक, लीबिया, सीरिया से आने वाले मुस्लिम शरणार्थियों की आबादी को कितनी भयंकर चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। यूरोप के देश या फिर पूरी दुनिया के लोग शरणार्थियों को बसाने की जगह ऐसी व्यवस्था करते जिससे किसी को भी शरणार्थी बनने के लिए बाध्य ही नहीं होना पड़ता। मुस्लिम देशों में जारी गृहयुद्घ को समाप्त करना एक बड़ा विकल्प हो सकता है। पर समस्या यह है कि हिंसक समूह शांति और सद्भाव व विकास की बात कहां सुनता है?
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