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पिछले कुछ दिनों से गोरखपुर की गीता प्रेस के सम्बंध में मीडिया में कई तरह की बातें आ रही हैं। कोई कह रहा है कि गीता प्रेस बन्द हो गई है, कोई कह रहा है बन्द होने के कगार पर है..। इन खबरों से गीता प्रेस के करोड़ों पाठक, शुभचिन्तक और अध्यात्म जगत चिन्तित, परेशान है। लगभग 45 वर्ष से गीता प्रेस की पुस्तकों के पाठक और भारत सरकार के प्रकाशन विभाग से सेवानिवृत्त अधिकारी विजय कुमार कोहली कहते हैं,'गीता प्रेस की पुस्तकों को पढ़कर मेरा जीवन बदल गया। यदि गीता प्रेस की पुस्तकें नहीं पढ़ता तो शायद मैं कुछ और ही होता। लिखने-पढ़ने का काम तो कतई नहीं करता, लेकिन गीता प्रेस के बारे में जो खबरें आ रही हैं उनसे मैं बहुत ही चिन्तित हूं। गीता प्रेस को किसी भी सूरत में बन्द नहीं होने देना चाहिए। इससे सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार रुक जाएगा। गीता प्रेस कोई साधारण प्रेस नहीं है। इसकी तुलना विश्व की किसी भी प्रेस से नहीं की जा सकती है।' शायद यही कारण है कि गीता प्रेस में घटी छोटी-सी घटना को भी देशी-विदेशी मीडिया अपनी सुर्खियां बना लेता है। दुनिया में रोजाना अनेक छापाखाने बन्द हो रहे हैं, और प्रारंभ भी हो रहे हैं, लेकिन मीडिया में उनकी खबर नहीं बनती है। पर अंग्रेजी और सेकुलर मीडिया गीता प्रेस में मजदूरों द्वारा की गई हड़ताल को भी इस तरह परोस रहा है मानो गीता प्रेस बन्द हो गई।
आखिर सचाई क्या है, यह जानने के लिए पाञ्चजन्य ने गीता प्रेस से सम्पर्क किया। गीता प्रेस के न्यासी ईश्वर प्रसाद पटवारी ने कहा, 'मीडिया में भ्रामक खबरें चलाई जा रही हैं। गीता प्रेस बन्द नहीं हुई है, न ही ऐसी कोई परिस्थिति है और न ही भविष्य में इसे बन्द होने दिया जाएगा। प्रेस को चलाने के लिए धन की कमी नहीं है और यह प्रेस समाज के कल्याण के लिए कार्य करती रहेगी। वेतन सम्बंधी कुछ मांगों को लेकर कर्मचारियों ने हड़ताल की है, इसका मतलब यह नहीं है कि गीता प्रेस बन्द हो गई।' वर्तमान विवाद की पृष्ठभूमि के बारे में उन्होंने बताया, 'अनुशासनहीनता के कारण 16 दिसम्बर, 2014 को प्रेस के तीन कर्मचारियों को बर्खास्त किया गया था। प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद 17 दिसम्बर से कार्य सुचारू रूप से चल रहा था। इसके बाद जून, 2015 में एक बार फिर वेतन में बढ़ोत्तरी को लेकर विवाद शुरू हुआ। तभी से प्रेस प्रबंधन और कर्मचारियों के बीच कई दौर की वार्ता हुई। 4 अगस्त को हुई वार्ता में प्रबंधन ने कहा कि उनके वेतन जरूर बढ़ाए जाएंगे, लेकिन इससे पहले के सारे विवाद कर्मचारियों को निपटाने हांेगे और कोई भी कर्मचारी अपने किसी मुद्दे को न्यायालय तक नहंीं ले जाएगा, लेकिन कर्मचारी इस शर्त को मानने के लिए तैयार नहीं थे। इसी बीच 7 अगस्त को कर्मचारियों की एक टोली ने सहायक प्रबंधक के साथ मार-पीट की। इसके बाद 12 नियमित कर्मचारियों और 5 अस्थाई कर्मचारियों को निलंबित कर दिया गया। उन कर्मचारियों की पुनर्बहाली को लेकर 8 अगस्त से शेष कर्मचारी हड़ताल पर हैं। उम्मीद है कि जल्दी ही यह संकट समाप्त हो जाएगा और प्रेस पहले की तरह काम करने लगेगी।'
गीता प्रेस के एक कर्मचारी संजीव उपाध्याय ने पाञ्चजन्य से कहा,'हड़ताल खत्म करवाने के लिए प्रबंधन हर तरह की नीति अपना रहा है। हम लोगों की मांग है कि महंगाई के इस युग में हमारी मजदूरी बढ़ाई जाए। यहां 20-25 वर्ष से काम करने वाले मजदूरों को भी बहुत कम वेतन मिलता है। किन हालातों में हम लोग घर चला रहे हैं, इसका अंदाजा बाहर के लोगों को नहीं हो सकता है।' एक अन्य कर्मचारी बलराम तिवारी (परिवर्तित नाम) ने कहा, 'हिन्दू धर्म के प्रचार-प्रसार में गीता प्रेस का कोई मुकाबला नहीं है। यहां काम कर रहे कर्मचारियों को इस बात का भी गर्व है कि वे अपने धर्म के प्रचार में अहम भूमिका निभा रहे हैं, लेकिन भूखे पेट यह कब तक चलेगा? यहां काम करने वाले कर्मचारियों को इतनी तनख्वाह नहीं मिलती है कि वे अपने परिवार का ठीक से गुजर-बसर कर सकें। फिर भी गीता प्रेस का कोई भी कर्मचारी नहीं चाहता है कि जहां से उसका और उसके परिवार का पालन-पोषण हो रहा है वह बन्द हो जाए, उन्हें परिवार चलाने लायक वेतन तो मिलना ही चाहिए।'
निलंबित कर्मचारी मुनिवर मिश्रा 1992 से गीता प्रेस में कम्प्यूटर ऑपरेटर हैं। उन्होंने पाञ्चजन्य से कहा, 'जब मेरी नियुक्ति हुई थी उस समय वेतन के रूप में 1230 रु. मिलते थे। आज 23 वर्ष बाद भी केवल 9000 रु. मिलते हैं। इसी में से पी.एफ. आदि की कटौती भी होती है। घर में वृद्ध माता-पिता, पत्नी और दो बच्चे हैं। दोनों बच्चे कॉलेज में पढ़ाई कर रहे हैं। बड़े बेटे की पढ़ाई का खर्च उसके मामा उठाते हैं। पत्नी का हाल ही में ब्रेन ट्यूमर का ऑपरेशन हुआ है और पिताजी भी अस्वस्थ रहते हैं। इतनी महंगाई में घर कैसे चलेगा? इसका जवाब कोई दे सकता है? हम लोगों की मांग कोई गलत नहीं है।'
35 वर्ष से गीता प्रेस की पुस्तकों का अध्ययन करने वाली दिल्ली निवासी कैलाशी देवी मजदूरों की हालत से आहत हैं। उन्होंने कहा ,'श्रमिकों को उचित मजदूरी तो जरूर मिलनी ही चाहिए। गीता प्रेस का उद्देश्य है समाज का कल्याण। इसलिए उसे अपने श्रमिकों के कल्याण के बारे में तो सोचना ही चाहिए। इसके लिए गीता प्रेस अपनी पुस्तकों का दाम भी बढ़ाए तो चलेगा। गीता प्रेस का कोई भी पाठक ऐसा नहीं होगा जो दाम बढ़ाने से उसकी पुस्तकें नहीं खरीदेगा। आखिर वे श्रमिक भी तो अपने ही हैं।'
ऐसे करोड़ों पाठक हैं, जो गीता प्रेस के साथ डटकर खड़े हैं। उनका कहना है कि यदि गीता प्रेस अपनी पुस्तकों की कीमतें बढ़ा भी दे तो भी अन्य प्रकाशनों की अपेक्षा वह सस्ती ही होंगी। इसलिए पाठकों पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
कुछ विशेषताएं
– गीता प्रेस सरकार या किसी भी अन्य व्यक्ति या संस्था से किसी तरह का कोई अनुदान नहीं लेता है।
– गीता प्रेस में प्रतिदिन 50 हजार से अधिक पुस्तकें छपती हैं।
– 92 वर्ष के इतिहास में मार्च, 2014 तक गीता प्रेस से 58 करोड़, 25 लाख पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इनमें गीता 11 करोड़, 42 लाख। रामायण 9 करोड़, 22 लाख। पुराण, उपनिषद् आदि 2 करोड़, 27 लाख। बालकों और महिलाओं से सम्बंधित पुस्तकें 10 करोड़, 55 लाख। भक्त चरित्र और भजन सम्बंधी 12 करोड़, 44 लाख और अन्य 12 करोड़, 35 लाख।
– मूल गीता तथा उसकी टीकाओं की 100 से अधिक पुस्तकों की 11 करोड़, 50 लाख से भी अधिक प्रतियां प्रकाशित हुई हैं। इनमें से कई पुस्तकों के 80-80 संस्करण छपेे हैं।
– यहां कुल 15 भाषाओं (हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम, गुजराती, मराठी, बंगला, उडि़या, असमिया, गुरुमुखी, नेपाली और उर्दू) में पुस्तकें प्रकाशित होेती हैं।
* यहां की पुस्तकें लागत से 40 से 90 प्रतिशत कम दाम पर बेची जाती हैं।
* पूरे देश में 42 रेलवे स्टेशनों पर स्टॉल और 20 शाखाएं हैं।
* गीता प्रेस अपनी पुस्तकों में किसी भी जीवित व्यक्ति का चित्र नहीं छापती है और न ही कोई विज्ञापन प्रकाशित होता है।
* गीता प्रेस से प्रकाशित मासिक पत्रिका 'कल्याण' की इस समय 2 लाख, 15 हजार प्रतियां छपती हैं। वर्ष का पहला अंक किसी विषय का विशेषांक होता है।
* गीता प्रेस का संचालन कोलकाता स्थित 'गोबिन्द भवन' करता है। मीडिया में भ्रामक खबरें चलाई जा रही हैं। गीता प्रेस बन्द नहीं हुई है, न ही ऐसी कोई परिस्थिति है और न ही भविष्य में इसे बन्द होने दिया जाएगा।
-ईश्वर प्रसाद पटवारी, न्यासी, गीता प्रेस
गीता प्रेस का कोई भी कर्मचारी नहीं चाहता है कि जहां से उसका और उसके परिवार का पालन-पोषण हो रहा है वह बन्द हो जाए, उन्हें परिवार चलाने लायक वेतन तो मिलना ही चाहिए।
-बलराम तिवारी (परिवर्तित नाम), कर्मचारी, गीता प्रेस
गीता प्रेस की पुस्तकों को पढ़कर मेरा जीवन बदल गया। यदि गीता प्रेस की पुस्तकें नहीं पढ़ता तो शायद मैं कुछ और ही होता। गीता प्रेस कोई साधारण प्रेस नहीं है। इसकी तुलना विश्व की किसी भी प्रेस से नहीं की जा सकती है।
-विजय कोहली, पाठक, गीता प्रेस
गीता प्रेस का उद्देश्य है समाज का कल्याण। इसलिए उसे अपने श्रमिकों के कल्याण के बारे में तो सोचना ही चाहिए। इसके लिए गीता प्रेस अपनी पुस्तकों का दाम भी बढ़ाए तो चलेगा। गीता प्रेस का कोई भी पाठक ऐसा नहीं होगा जो दाम बढ़ाने से उसकी पुस्तकें नहीं खरीदेगा। आखिर वे श्रमिक भी तो अपने ही हैं।
-कैलाशी देवी, पाठक, गीता प्रेस
गीता प्रेस ने हमारी महान सांस्कृतिक विरासत, हमारे ऋषि-मुनियों के चिन्तन और हमारे ज्ञानियों की सांस्कृतिक रचनाओं को अक्षरदेह देने का कार्य किया है।
-नरेन्द्र मोदी, प्रधानमंत्री, गोरखपुर की एक रैली में
गीता प्रेस के लोग आध्यात्मिकता की बुनियादी सेवा कर रहे हैं और भारतीय धरोहर की कुछ इस प्रकार रक्षा कर रहे हैं, जिसका विश्व के इतिहास में उदाहरण मिलना मुश्किल है।
– न्यायमूर्ति दोरैस्वामी राजू
पूर्व न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय
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