मुक्ति का मार्ग दिखाती है रामचरितमानस
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मुक्ति का मार्ग दिखाती है रामचरितमानस

by
Sep 4, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 04 Sep 2015 11:25:41

मध्य प्रदेश के सीधी में गत दिनोंे गोस्वामी तुलसीदास की जयन्ती बड़ी धूमधाम से मनाई गई। इस अवसर पर 'राष्ट्रचिंतक तुलसीदास और हम' विषय पर गोष्ठी भी हुई। इसके मुख्य अतिथि थे नगरपालिका परिषद्, सीधी के अध्यक्ष देवेन्द्र सिंह चौहान। अध्यक्षता की प्रो़ अखिलेश शर्मा ने। गोष्ठी में देवेन्द्र सिंह चौहान ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के रूप में एक वृहद् ग्रंथ हम सबको उपलब्ध कराया। इसमें गोस्वामी जी ने बताया है कि व्यक्ति का सामाजिक जीवन कैसा होना चाहिए। प्रो़ अखिलेश शर्मा ने कहा कि गोस्वामी जी सच्चे राष्ट्रभक्त थे, जिन्होंने सनातन संस्कृति की रक्षा में अपना सम्पूर्ण जीवन व्यतीत किया। मानस वक्ता लाल बहादुर सिंह चौहान ने कहा कि जिसे सनातन धर्म की रक्षा करनी है वह रामचरितमानस को पढ़े। वरिष्ठ पत्रकार रामबिहारी पाण्डेय ने कहा कि कलयुग में मुक्ति का मार्ग दिखाने के लिए गोस्वामी जी ने रामचरितमानस की रचना की। समारोह का संचालन डॉ़ एम़ पी. गौतम और आभार व्यक्त उदयकमल मिश्र ने किया।     -प्रतिनिधि

'आर्य बाहर से नहीं, बल्कि पश्चिमोत्तर भारत से आए थे'
'प्राचीन भारतीय इतिहास का आधार आज भी यहां के पुराणों, रामायण-महाभारत तथा वेद-वेदांगों में भरा पड़ा है। जबकि इसके इतर कुछ वामपंथी इतिहासकार वास्तविकता को झुठलाकर इसे मिटाने की कोशिश में लगे हैं। इस मानसिकता को बदलनी पड़ेगी।' यह बात 31 अगस्त को पटना में आयोजित एक गोष्ठी को सम्बोधित करते हुए अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के  राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. सतीश चन्द्र मित्तल ने कही। उन्होंने कहा कि इतिहास को आधारयुक्त बनाकर उसे भारतीय संदर्भ में लिखने की जरूरत है और इस दिशा में प्रयास जारी है। उन्होंने कहा कि जिस सरस्वती नदी को कुछ इतिहासकार मिथक बता रहे थे वह सेटेलाइट और 'नासा' के जरिए साबित हो गया है कि सलीला नदी के रूप में वह आज भी विद्यमान है।
इस मौके पर नव नालंदा महाविहार, नालंदा के शोध छात्र शत्रुघ्न कुमार ने अपना शोध पत्र प्रस्तुत करते हुए कहा कि विक्रमशिला विश्वविद्यालय पूर्व-मध्यकालीन भारत का एक प्रसिद्ध शिक्षा केन्द्र था। इस विश्वविद्यालय का निर्माण पाल नरेश धर्मपाल ने कराया था। बाद में उन्होंने उसे महाविहार के रूप में विकसित किया और फिर राजकीय विश्वविद्यालय के रूप में इसे संरक्षण प्रदान किया। 13वीं शदी के आरंभ में तुर्कों ने बिहार-बंगाल पर आक्रमण किया और 1205-06 में विक्रमशिला को ध्वंस कर दिया गया।
भारतीय इतिहास संकलन समिति, दक्षिण बिहार के सह संयोजक और गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे डॉ. जयदेव मिश्र ने कहा कि इतिहास में किसी भी बात को कहने के लिए उसका आधार होना चाहिए। इतिहास की गाड़ी तर्क पर नहीं चलती। तीन सौ वर्ष से कहा जा रहा है कि आर्य बाहर से आए थे, लेकिन वे बाहर कहीं से नहीं, बल्कि पश्चिमोत्तर भारत से ही आए थे। अंग्रेजों का नकल करना छोड़ना होगा। हमें नए सिरे से तथ्यों को तलाशना होगा। समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख श्री स्वांत रंजन भी उपस्थित थे।
देहरादून में भी एक ऐसी ही गोष्ठी 30 अगस्त को आयोजित हुई। भारतीय इतिहास संकलन समिति, उत्तराखण्ड द्वारा भारतीय इतिहास संकलन योजना के संस्थापक बाबासाहेब उमाकांत केशव आपटे की जयंती के अवसर पर आयोजित इस गोष्ठी का विषय था 'भारतीय संस्कृति में लोकशक्ति की अवधारणा एवं अस्तित्व'। समिति के पालक अधिकारी श्री लक्ष्मीप्रसाद जायसवाल ने कार्यक्रम की प्रस्तावना रखते हुए कहा कि वर्तमान समय में शिक्षण संस्थानों में पढ़ाए जा रहे इतिहास में काफी गलतियां हैं जिनमें सुधार की आवश्यकता है। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता श्री विघ्नेश त्यागी ने कहा कि भारतीय परम्परा में लोकशक्ति का बहुत बड़ा महत्व है। इसी के कारण हमारा इतिहास और हमारी संस्कृति जीवित है। गोष्ठी की अध्यक्षता डॉ़  रामविनय सिंह ने की।
इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रान्त प्रचारक श्री युद्धवीर, प्रो़ वासुदेव शर्मा, डॉ़ भारती वर्मा बौड़ाई आदि उपस्थित थे।           
   – विश्व संवाद केन्द्र, पटना और देहरादून

गायकों को सिखाई गयी गायकी की कला
गत दिनों पटना स्थित विश्व संवाद केन्द्र में संस्कार भारती के तत्वावधान में सात दिवसीय संगीत कार्यशाला आयोजित हुई।  कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बौद्धिक प्रमुख श्री स्वांत रंजन ने कहा कि जीवन में शास्त्रीय संगीत और लोककला का विशेष महत्व है। कलाविहीन व्यक्ति पशु के समान होता है। इस अवसर पर शास्त्रीय गायक पंडित रामप्रकाश मिश्र ने वर्षा ऋतु में गाए जाने वाले मल्हार की प्रस्तुति दी और उपस्थित बच्चों को इसके गायन के गूढ़ रहस्य सिखाए। तृतीय सत्र में श्रीमती रंजना झा ने लोेकगीतों में एक प्रमुख कजरी गीत जिसके बोल थे, 'लागे वृंदावन मन भावन सजनी, सावन पावन ना', की प्रस्तुति दी। समारोह की अध्यक्षता संस्कार भारती के दक्षिण बिहार प्रांत अध्यक्ष प्रो़ श्याम शर्मा ने की। सात दिवसीय इस कार्यशाला में कलाकारों ने संगीत की अनेक विधाओं की जानकारी प्राप्त की।                          – प्रतिनिधि

इन्दौर में सेवाव्रती युवाओं का संगम
23 अगस्त को इन्दौर में 'यूथ फॉर सेवा' सेवा नाम से सेवा कार्य करने वाले युवाओं का संगम आयोजित हुआ। इसका उद्देश्य था मालवा प्रांत में अपने प्रयासों से छोटे या बड़े सेवा के कार्य चलाने वाले युवा एक स्थान पर एकत्रित आएं, एक-दूसरे के कायार्ें को जानें और अपने अनुभवों को साझा करें। संगम में 175 सेवाव्रती युवा आए।  रा़ स्व़ संघ के प्रांत प्रचारक श्री पराग अभ्यंकर उद्घाटन सत्र के मुख्य वक्ता थे। मंच पर भैयाजी दाणी सेवा न्यास के अध्यक्ष श्री लक्ष्मणराव नवाथे और 'यूथ फॉर सेवा' के प्रमुख श्री विनय कासट भी उपस्थित थे। संगम को सम्बोधित करते हुए श्री पराग अभ्यंकर ने कहा कि  इस देश की रक्षा और पुनर्निर्माण में सदा ही युवाओं ने प्रमुख भूमिका निभाई है। युवाओं ने ही देश को विभिन्न चुनौतियों से निकाला है और आज भी यह देश युवाओं के ही भरोसे है।
अगले सत्र में सभी युवा बंधु तीन समूहों (शिक्षा, स्वास्थ्य, अन्य सेवा कार्य) में बैठे। युवाओं ने अपने-अपने कार्यों का प्रभावी प्र्रकार से वर्णन किया। सेवा कार्य की प्रेरणा कहां से मिली, चुनौतियां क्या आती हैं, सेवा कार्य के परिणाम क्या आ रहे हैं आदि बिंदुओं पर सभी ने अपनी जानकारी रखी। इन युवाओं का उत्साह बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सेवा प्रमुख श्री सुहासराव हिरेमठ, क्षेत्रीय प्रचारक श्री अरुण  जैन, श्री लक्ष्मण राव नवाथे, श्री स्वप्निल कुलकर्णी, श्री विनोद  बिड़ला आदि वरिष्ठ कार्यकर्ता उपस्थित रहेेेे।  
समापन सत्र की अध्यक्षता जैन सेवा समिति के अध्यक्ष श्री विमल नाहर ने की। इस अवसर पर श्री सुहासराव हिरेमठ ने कहा कि हम भारतीयों का मूल गुण ही 'सेवा' है। सेवा कार्य के लिए धनवान होना जरूरी नहीं। इस देश में आपदा-विपदा आने पर गरीब, भिखारी भी सेवा कार्य के लिए दान करता है, किंतु 'व्रत' के रूप में सेवा यह परिश्रम का कार्य है, समर्पण का कार्य है, नि:स्वार्थ बुद्धि से किया जाने वाला कार्य है, समाज को दिशा देने का कार्य है।
कार्यक्रम का समापन सहभोज के साथ हुआ।     -प्रतिनिधि

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