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किसी देश की भावी पीढ़ी को गढ़ने का काम करता है एक शिक्षक। वह पीढ़ी, जिसके हाथों में देश की बागडोर जानी है उसके सर्वगुण संपन्न होने की अपेक्षा होती ही है। और शिक्षक वह रचनाकार है जो बालकों को एक कुशल मूर्तिकार की तरह गढ़ता है, उन्हें श्रेष्ठ मानव बनाता है, समाज जीवन के विभिन्न आयामों में अपना अमूल्य योगदान देने लायक नागरिक बनाता है। शिक्षक का साधन होती है शिक्षा। वह शिक्षा जो संस्कृति, संस्कार और सरोकार की त्रयी के सूत्र बताती है, शिक्षक उन्हें व्याख्यायित करता है।
लेकिन आज भारत में शिक्षा और शिक्षकों की स्थिति कैसी है? क्या हमारे शिक्षकों का आज भी वैसा ही सम्मानित स्थान है जैसा करीब दो दशक पहले था? क्या शिक्षा अपने उद्देश्य की पूर्ति कर रही है? शिक्षा की आड़ में कहीं कोमल मनों को दूषित करने का षड्यंत्र तो नहीं चल रहा? क्या शिक्षक ही अपने कर्तव्य को भली प्रकार निभा रहे हैं?
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस 5 सितम्बर को हम शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं लेकिन क्या इस दिवस को मनाने के पीछे छिपे भाव के साथ हम, हमारा समाज, हमारी सरकारें न्याय कर पा रही हैं? इन्हीं सब बिन्दुओं को स्पर्श करता है शिक्षक दिवस पर डॉ. राधाकृष्णन की स्मृति को नमन करता हमारा यह विशेष आयोजन।
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