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सावन यानी शिव का माह। इसी महीने गांव के छोटे मंदिर से लेकर कैलाश मानसरोवर तक सिर्फ बम-बम भोले और हर-हर महादेव की ही गूंज सुनाई देती है। इस पवित्र महीने में महादेव का साक्षात्कार करने और उनके दर्शन करने के लिए देश-विदेश से लोग खिंचे चले आते हैं। आस्था का यह महाकुंभ गली-कूचे से लेकर चौराहों और बड़े-बड़े राजमागोंर् तक पर स्वाभाविक रूप से देखा जा सकता है। इस महापर्व पर भगवान आदिनाथ भोले के भक्त सुदूर क्षेत्रों से अनेक संकटों को सहते हुए देश के प्रमुख शिवालयों व खासकर द्वादश ज्योतिर्लिंगों पर जलाभिषेक के लिए एकत्र होते हैं। शिव को जलाभिषेक करने के लिए लाखों की तादाद में कांवडि़यों का जनसैलाब शायद ही विश्व में कहीं देखने को मिलता हो। हर भक्त अपने-अपने तरीके से भगवान को खुश करने का प्रयास करता है। कोई उन्हें खुश करने के लिए जल से अभिषेक करता है तो कोई दुग्ध-दही से। कोई उन्हें बिल्व पत्र चढ़ाकर ही अपना बना लेता है। सावन का महीना भगवान को क्यूं प्रिय है, इसेक पीछे धार्मिक मान्यता है। पौराणिक महत्व के अनुसार इस मास में समुद्र मंथन हुआ था। मंथन से ही हलाहल विष निकला,जिसको देवाधिदेव महादेव ने ग्रहण किया था। विष का प्रभाव भगवान शंकर पर न हो इसके लिए देवताओं ने शिव का जलाभिषेक किया। तब से ही उन्हें नीलकंठ के नाम से पुकारा जाता है।
आकर्षण का केन्द्र डाक कांवड़
श्रावण माह में कांवड़ का अति महत्व है। इसमें भगवान भोले के भक्त भगवा वस्त्र धारण करके पवित्र नदियों के जल को कांवड़ में बांधकर पैदल चलकर भगवान भोले का रुद्राभिषेक करते हैं। कांवड़ बांस का बना होता है और उसके दोनों ओर जल की मटकी बांधते हैं। इस पूरी कांवड़ को भोले के भक्त सुंदर रूप से सजाते हैं। भोले के भक्त पैदल चलकर पास के मंदिर में या फिर प्रमुख ज्योतिलिंर्गों तक बड़ी ही श्रद्धा के साथ जलाभिषेक करते हैं। बच्चे से लेकर वृद्ध तक इस यात्रा में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं। ऐसे ही एक श्रद्धालु वाराणसी के दिवाकर सिंह हैं, जो वषोंर् से कांवड़ लाते हैं। इस बार वे अपने कुछ साथियों के साथ वैद्यनाथ धाम से जलाभिषेक कर लौटे हैं। उनसे जब बात की और जानने का प्रयास किया कि आखिर इस यात्रा में क्या आनन्द आता है और प्रेरणा कहां से मिलती है कि भक्त भोले की ओर खिंचे चले जाते हैं, तो वे बताते हैं,'सनातन संस्कृति, जिसका हम बचपन से अध्ययन करते आए हैं, वहीं से देवाधिदेव महादेव के विषय में जानने को मिलता है और वहीं से प्रेरणा मिलती है। बचपन से ही बताया गया कि महादेव ही ऐसे भगवान हैं, जो अपने भक्त से पल भर में ही प्रसन्न हो जाते हैं। उनके लिए विशेष प्रकार की पूजा-अर्चना करने की कोई जरूरत नहीं। वह एक तरीके से औघड़दानी हैं। रही आनन्द की बात तो जब एक साथ हजारों की संख्या में कांवडि़ए चलते हों और बम-बम भोले, हर-हर महादेव के जयकारे लगते हों तो उस स्थान पर आनन्द ही आनन्द होता है।' वे आगे कहते हैं, 'बचपन से ही मेरा कांवड़ यात्रा में सम्मिलित होने का सिलसिला चलता आया है। पहले अपने पास के गांव में स्थापित सकाहा महादेव मंदिर में गंगा जी से जल लाकर जलाभिषेक करते थे, लेकिन अब जब नौकरी के कारण काशी आना हुआ तब से बाबा विश्वनाथ और वैधनाथ में जलाभिषेक करता हूं।'
आस्था के इस महाकुंभ में डुबकी लगाने और अपने जीवन को भगवान शिव के प्रति समर्पण करने के उद्देश्य से लगभग 15 वषोंर् से दिल्ली से नीलकंठ तक पैदल कांवड़ यात्रा करते आ रहे नीलेश गुप्ता यात्रा के बारे में बताते हुए कहते हैं,'यात्रा से एक आत्म संतुष्टि मिलती है। आज के दौर में जिसमें काम के सिवाय और कुछ नहीं दिखाई देता। उस व्यस्त दिनचर्या में भगवान के लिए कुछ समय निकालना यानी कुछ समय के लिए अपने को भगवान के प्रति समर्पण करना ही है। वे आगे कहते हैं,'यात्रा करते समय पैदल चलना, भूखे रहना, थकान जैसी चीजें शरीर को छूती तक नहीं हैं। हजारों कांवडि़यों को देखकर मन में अपार शक्ति मिलती है।'
संकल्प का नहीं कोई विकल्प
'ऊबड़-खाबड़ रास्ता… अनेक प्रकार के भय… न खाने की चिंता न पीने की… यहां तक कि ऑक्सीजन की कमी के चलते जान तक जाने का भय… लेकिन इस सब भय को दरकिनार करते हुए मन में सिर्फ एक संकल्प कि कैसे भी बाबा श्री अमरनाथ के दर्शन हो जाएं।' यह कहना है जम्मू-कश्मीर के निवासी स्वामी रामेश्वर दास जी महाराज का। वे वर्तमान में महामंडलेश्वर भी हैं और उनके आश्रम से ही प्रतिदिन सैकड़ों साधु श्री अमरनाथ के लिए प्रस्थान करते हैं। श्री अमरनाथ यात्रा से मिलने वाले आनन्द के विषय में वे कहते हैं,'इस प्रकार की पर्वतारोही यात्राओं से अन्त:करण को सुख मिलता है। यह सुख इसलिए मिलता है क्योंकि भक्त को इष्ट के दर्शन होते हैं। यात्रा से मिलने वाली प्रेरणा पर वे कहते हैं, 'यह अध्यात्म की दृष्टि से श्रेष्ठ माह है। इस पवित्र मास में भगवान के प्रति जीवात्मा के अंदर शिवभाव प्रबल होता है, क्योंकि हर तरह सावन की फुहार से वातावरण मनोरम हो जाता है। ऐसे में अंदर से भगवद्भक्ति की प्रेरणा मिलती है।'
वैसे कैलास मानसरोवर की यात्रा भी इसी पवित्र माह के मध्य में पड़ती है। हाल में ही कैलास मानसरोवर की यात्रा करके लौटे नई दिल्ली के राजीव गुप्ता यात्रा के अनुभव और आनन्द को साझा करते हुए कहते हैं,'देवस्थान की यात्रा हमारी प्राचीन परंपरा का अंग है। इस पूरी यात्रा में जो आन्नद मिलता है उसे शब्दों में बताना संभव नहीं है। सिर्फ आनन्द को स्वयं में महसूस किया जा सकता है। कैलास पर्वत के समक्ष पहुंचने पर ऐसा लगा कि साक्षात् शिव का दर्शन हो रहा है। ऐसा सुख और मनोरम दृश्य भोले के दरबार में ही हो सकता है अन्यत्र कहीं नहीं।'
द्वादश ज्योतिर्लिंग
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग सौराष्ट्र (गुजरात) में स्थित है। यह पृथ्वी का पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। इसके बारे में मान्यता है कि जब चन्द्रमा को दक्ष प्रजापति ने श्राप दिया था तो चन्द्रमा ने इसी स्थान पर तप करके श्राप से मुक्ति पाई थी। ऐसा भी कहा जाता है कि इसकी स्थापना स्वयं चन्द्रदेव ने की थी। विदेशी आक्रान्ताओं ने इसे 17 बार नष्ट किया, लेकिन हर बार यह बिगड़ता और बनता रहा है।
त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग
श्री त्रयंम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र प्रान्त के नासिक जिले के पंचवटी के निकट गोदावरी के किनारे है। पुराणों में इसका अत्यधिक महत्व है।
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग झारखंड राज्य में संथाल परगना क्षेत्र में देवघर नामक स्थान पर है। लोक मान्यता के अनुसार यहां जो भी व्यक्ति पूजा करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु प्रान्त के रामनाड स्थान पर है। यह सुन्दर शंख आकार का द्वीप है। यहां लंका विजय से पूर्व भगवान श्रीराम ने भगवान शिव की पूजा की थी। इसे श्रीरामलिंगेश्वर भी कहा जाता है। रामेश्वर मंदिर स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण है।
घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के दौलताबाद के पास बेरूल के निकट स्थित है। ऐसा माना जाता है कि भगवान यहां साक्षात् लोक कल्याण के लिए निवास करते हैं। इसका दर्शन लोक-परलोक के लिए अमोघ फलदाई है।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग गुजरात के बड़ौदा शहर के पास स्थित है। मान्यता है जो भी इस स्थान पर शिव की पूजा और दर्शन करता है उसे शुत्र भय नहीं सताता है या शत्रुओं का नाश हो जाता है।
द्वादस ज्योतिलिंग
काशी विश्वनाथ
काशी विश्वनाथ ज्योतिलिंर्ग द्वादश ज्योतिलिंर्गों में से एक है और उ.प्र. में स्थित है। काशी के विषय में मान्यता है कि प्रलय आने पर भी यह स्थान बना रहेगा। इसकी रक्षा के लिए स्वयं शिव इस स्थान को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेंगे और प्रलय के टल जाने पर काशी को पुन: उसी स्थान पर स्थापित कर देंगे।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिलिंर्ग महाराष्ट्र के पुणे जिले के सह्याद्रि नामक पर्वत पर स्थिति है। इस मंदिर के विषय में माना जाता है कि जो इसके दर्शन करता है उसके सात जन्मों के पाप दूर हो जाते हैं और स्वर्ग के मार्ग खुल जाते हैं।
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड राज्य में स्थित है। यह तीर्थ भगवान शंकर को अतिप्रिय है। जिस प्रकार का महत्व कैलास का है ठीक वही महत्व इस स्थान को भगवान शिव ने दिया है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के इन्दौर के समीप नर्मदा के तट पर स्थित है। पहाड़ी के चारों ओर नदी का बहाव ऊं का आकार बनाता है। यह ज्योतिर्लिंग ऊं का आकार लिए हुए है।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित है। यह एक मात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है। यहां प्रतिदिन की जाने वाली भस्मारती विश्व प्रसिद्ध है। महाकालेश्वर की आराधना विशेष रूप से आयु वृद्धि और जीवन पर आए संकटों को टालने के लिए की जाती है।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम् नाम के पर्वत पर स्थित है। कैलाश के समान ही इसका भी उतना ही महत्व पुराणों में वर्णित है।
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