|
अंक संदर्भ : 19 जुलाई, 2015
आवरण कथा 'शक्ति के नए सोपान' से स्पष्ट होता है कि अब समय आ गया है जब भारत को प्रकृति प्रद्त्त ऊर्जा को विकसित करना होगा। कोयला, पेट्रोल, डीजल की ऊर्जा हमेशा साथ नहीं दे सकती क्योंकि अंधाधुंध दोहन से इनके भंडार खाली हो रहे हैं। इन ऊर्जा स्रोतों से देश की अर्थव्यवस्था जुड़ी है। साथ ही इसका एक बड़ा दुष्प्रभाव यह है कि जिन देशों में इन संसाधनों के भंडार हैं उनकी हमें हर गलत-सही बात माननी होती है। इनकी ना-नुकर से देश की अर्थव्यवस्था का गणित पल भर में बिगड़ जाता है। इसलिए जरूरी है कि सूर्य की असीमित ऊर्जा को ऊर्जा का प्रमुख साधन मानकर उसे जनसुलभ बनाना होगा, ताकि वह प्रत्येक व्यक्ति की पहुंच में आ सके।
—शान्तुन कुमार चौरसिया
उज्जैन (म.प्र.)
ङ्म आज अक्षय ऊर्जा की जरूरत दिन-प्रतिदिन महसूस होती जा रही है। देश के हजारों-लाखों गांव अभी ऐसे हैं, जहां आज भी बिजली नहीं पहुंच पाई है। ऐसे में उन गांवों में अभी भी अंधेरा छाया हुआ है। वे 21वीं सदी में आने पर भी कोई प्रगति नहीं कर सके हैं और अंधकार में जीवन बिताने पर मजबूर हैं। इसके पीछे कारण है कि हम इतनी अधिक बिजली उत्पन्न नहीं कर पाते हैं कि देश के सभी गांवों को बिजली उपलब्ध करा सकें। लेकिन अगर हमारे वैज्ञानिक सौर ऊर्जा, पानी, हवा आदि की ऊर्जा पर कार्य करेंगे तो इनसे सभी को बिजली प्राप्त हो सकेगी और जो हम विदेशों से अरबों रुपये का तेल खरीदते हैं उस पर भार कम होगा। धन की बचत अक्षय ऊर्जा के उपयोग में ही विद्यमान है।
—हरिओम जोशी, भिण्ड (म.प्र.)
ङ्म इस अंक में वर्तमान में ऊर्जा संकट और बढ़ती दिनोंदिन खपत पर चिंता जाहिर की गई है, जो स्वाभाविक है। ऊर्जा केन्द्रित विषयों और ग्रामोपयोगी तकनीकी विश्लेषण और तथ्यपरक सामग्री के कारण यह संग्रहणीय अंक है। वर्तमान में हमारे वैज्ञानिकों को ऊर्जा के नए-नए स्रोतों पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि देश का एक बड़ा भाग इस ऊर्जा के कारण अपने जीवन को जिस प्रकार बनाना चाह रहा है, नहीं बना पा रहा है। आज का दौर अत्याधुनिक चीजों का दौर है और सभी चीजें बिजली से ही चलती हैं। सूर्य ऊर्जा के विशाल भंडार को तकनीकी का सहारा लेकर प्रायोगिक ऊर्जा में बदलना होगा। अभी सौर ऊर्जा से चलने वाले संसाधन अत्यधिक कीमती और आम लोगों की पहुंच में नहीं हैं।
—इ. गोविन्द प्रसाद शुक्ल
इन्दिरा नगर, लखनऊ (उ.प्र.)
किसान का हित सर्वोपरि
आज देश का किसान परेशान और हताशा से भरा हुआ है, क्योंकि आएदिन कोई न कोई प्राकृतिक आपदा उसकी कमर तोड़ती है। कभी अत्यधिक वर्षा से तो कभी बिल्कुल वर्षा न होने के कारण किसान की फसल चौपट हो जाती है। वह ऐसे ही रोता-बिलखता रहता है, लेकिन कोई कुछ नहीं करता। हकीकत में वह ही हम सभी का पालनहार है। किसान जो अन्न उपजाता है उसी से हम सब पुष्ट होते हैं। सरकार को चाहिए कि किसानों के हित के साथ किसी भी प्रकार का कोई समझौता न करे। अगर वह खुश रहेगा तो देश का प्रत्येक व्यक्ति खुश रहेगा।
—राममोहन चन्द्रवंशी
टिमरनी, हरदा (म.प्र.)
नदी की व्यथा
लेख 'एक नदी की शोक यात्रा' रपट से यमुना की बदहाल स्थिति का आकलन स्वत: हो जाता है। कितनी विडंबना है कि जो यमुना दिल्ली की पानी की जरूरत को अधिक से अधिक पूरा करती है, वह आज यहीं लगभग मृतप्राय अवस्था में है। पानी तो है लेकिन संपूर्ण रसायन युक्त। नदी के नाम पर वह किसी नाले से कम नहीं है। दिल्ली में प्रवेश करते ही यमुना के गंदे व बदबूदार पानी को देखा जा सकता है। पिछली सरकारों में भी यमुना की सफाई पर करोड़ों रुपये बर्बाद किए, यह पैसा कहां गया किसी को कुछ नहीं पता। वर्तमान सरकार ने गंगा और यमुना की सफाई का बीड़ा उठाया है और देश के लोगों को पूरा विश्वास है कि यह सरकार अपने काम में सफल होगी। साथ ही हम सभी को भी इसके लिए लगना होगा क्योंकि सरकार के साथ-साथ हमारी भी जिम्मेदारी बनती है कि हमारी नदियां स्वच्छ रहें।
—कमलेश कुमार ओझा
पुष्प विहार (नई दिल्ली)
ङ्म यमुना नदी का प्रदूषण गंभीर चिंता का विषय है। उद्योग-धंधों का प्रदूषित जल तथा सरकार और समाज की उदासीनता एक बड़ी नदी की दुर्दशा का कारण है। यह बड़ा ही दुर्भाग्य का विषय है कि पिछली सरकारों में इस विषय को गंभीरता से लेना तो दूर इस ओर ध्यान तक नहीं दिया गया। वे शायद चाहते ही थे कि कैसे गंगा और यमुना, जो भारत की परंपरा को अपने साथ जोड़े हुए हैं, का अस्तित्व समाप्त हो जाए। काफी हद तक वे इस कुचक्र में सफल भी हुए। मौजूदा समय में यमुना सहित अन्य नदियों की सफाई तभी हो सकती है, जब यमुना के रास्ते में पड़ने वाली राज्य सरकारें युद्ध स्तर पर इसकी स्वच्छता का अभियान चलाएं। कागजी खानापूर्ति की बजाए धरातल पर गंभीरता से काम करें, तभी इनकी निर्मलता, पवित्रता बनी रह सकती है। महज योजना बनाकर कार्यक्रम को कागजों तक सीमित करने से कुछ नहीं होने वाला।
—मनोहर मंजुल
पिपल्या-बुजुर्ग (म.प्र.)
भेदभाव को दें तिलांजलि
लेख 'सेल्फी में लाडली' अच्छा लगा। पहले के समय को देखें तो समाज बेटियों को अलग नजर से देखता था, लेकिन आज बेटियों ने अपने को साबित करके दिखा दिया है कि उनका समाज में एक महत्वपूर्ण स्थान है। वर्तमान दौर में बेटियां किसी भी मायने में बेटों से कम नहीं हैं। इसलिए हम सभी को बेटों और बेटियों में किसी भी प्रकार का अन्तर न रखते हुए एक समान व्यवहार करना है और उनको भी बेटों की तरह ही शिक्षा से लेकर अन्य क्षेत्रों में आगे बढ़ने के मौके प्रदान
करने है।
—ए.के.सिंहल, लुधियाना (पंजाब)
ङ्म प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बेटियों के लिए देश में जो अभियान चलाया है, उसकी चहुंओर प्रसंशा होनी चाहिए। हाल ही में प्रधानमंत्री ने 'सेल्फी विद डॉटर' अभियान चलाया, जिसको सोशल मीडिया में जमकर सराहना मिली और देश सहित विश्वभर के लोगों ने इस अभियान से जुड़ते हुए अपनी बेटियों के साथ फोटों साझा कीं। इससे एक बात का अनुभव यह हुआ है कि समाज अब बेटियों के महत्व को स्वीकारने लगा है। खास बात यह कि हरियाणा प्रदेश में बेटियों के प्रति जो उपेक्षा का भाव था वहीं से नरेन्द्र मोदी ने बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ की मुहिम की शुरुआत की। यह तो आज सर्वविदित है कि बेटियां शिक्षा क्षेत्र समेत अनेक क्षेत्रों में परचम लहरा रही हैं। लेकिन ऐसी सफलताओं के बाद भी बेटियों के प्रति उपेक्षा का भाव समझ से परे है।
—महेन्द्र स्थापक,करेली (म.प्र.)
हज के नाम पर लूट
लेख 'हज यात्रा के नाम पर करोड़ों की लूट' लेख अच्छा लगा। लेख में हज यात्रा के नाम पर जो लूट हो रही थी, उसको उजागर करने काम किया गया है। लेकिन आश्चर्य की बात है कि सऊदी राजा अब्दुल अजीज के इन गैर इस्लामी और गैर इंसानी हरकतों के विरुद्ध कोई भी मुस्लिम या इस्लामिक संस्था अपना मुंह खोलना तो दूर विरोध तक नहीं करती है। खुलेआम यह राजा मनमानी करता है। भारत सरकार को चाहिए कि वह हज यात्रा पर मिलने वाली छूट तत्काल बंद करे, क्योंकि मजहबी यात्रा पर करोड़ों रुपये की छूट देना समझ से परे है।
—प्रमोद वालसंगकर
दिलसुख नगर (हैदराबाद)
स्वयं हों जागरूक
देश की जनता स्वयं कुछ भी नहीं करना चाहती है। वह यही चाहती रहती है कि हमारा काम सरकार कर दे। जनता अपने कर्तव्यों को भुला देती है और फिर सरकार की ओर आस लगाकर देखती है। जनता को जो काम करना चाहिए वह आज सरकार कर रही है, जैसे- स्वच्छता अभियान। देश की जनता को अब समझना चाहिए कि भारत की ओर संपूर्ण विश्व की निगाहंे हैं और लोग आशाभरी नजरों से देख रहे हैं। इसलिए हमें स्वयं समझना होगा और अच्छा से अच्छा कार्य करना होगा।
—डॉ. टी.एस.पाल
सम्भल (उ.प्र.)
सुख का खजाना
अभी कई शोध आए और उन सबका निष्कर्ष निकला कि उन बच्चों का भविष्य बेहतर होता है, जो संयुक्त परिवार में पले- बढ़े होते हैं। इस प्रकार के बच्चे प्रत्येक क्षेत्र में आगे रहते हैं। लेकिन फिर भी लोग संयुक्त परिवार से भाग रहे हंै और उससे दूर होना चाहते हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि घर के बड़े-बुजुर्ग हाशिये पर चले गए हैं। जबकि प्रत्येक नवयुवक और युवती समझती है कि एक दिन हमको भी इसी अवस्था में आना होगा और तब उनको भी इसका फायदा होगा। उस समय संयुक्त परिवार के लोग ही काम आएंगे। लेकिन फिर भी वे इस सुखद माहौल को नकार रहे हैं। इससे ज्यादा दु:खद और क्या हो सकता है।
—कृष्णमोहन गोयल
बाजार रोड, अमरोहा (उ.प्र.)
खुलती इस्लाम की कलई
एक समय था जब अल्लामा इकबाल की पंक्ति 'मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना' को आपसी सौहार्द का मंत्र माना जाता था। इसका जादू भी कुछ वषोंर् तक देखने को मिला या यूं कहें कुछ छद्म सेकुलर लोगों का यह तकिया कलाम ही हो गया था। पर आज जिस प्रकार विश्व में इस्लामवादियों ने मार-काट मचा रखी है, उससे नहीं लगता है कि इन पंक्तियों का अब कोई मतलब रह गया है। जिस इस्लाम के 'भाईचारे' की तारीफ में लोग कसीदे पढ़ते हुए नहीं अघाते थे, आज वे बुरी तरह आहत हैं। इस्लामिक आतंकवाद पर दृष्टि डालते हैं तो ऐसी-ऐसी विकराल, वीभत्स और विरोधाभासी चीजें सामने आती हैं, जिनका सही चित्रण कर पाना बहुत कठिन है। आतंकवादियों के पैशाचिक कृत्यों के नित नए समाचार न केवल खून से सने हुए होते हैं, अपितु इंसानियत को शर्मसार करने वाले हैं। दुनिया के अनेक स्थानों पर इनके कारनामों को देखने मात्र से ही दिल दहल उठता है। मजहबी पागलपन से ग्रस्त जिहादी उन्माद के नशे में ऐसे चूर हैं कि उन्हें मानवता या अन्य किसी से कुछ मतलब नहीं रह गया। वे मजहबी तालीम को हर जगह लागू कराना चाहते हैं। इस लिए इसे स्थापित करने के लिए मार-काट कर रहे हैं। समाचार के दर्पण में अगर इस्लामिक आतंकवादियों की निन्दनीय करतूतों को देखें तो आईएस और बोकोहराम जैसे आतंकी संगठन जिहाद की आड़ में कहर बरपा रहे हैं। खासकर महिलाओं के साथ खौफनाक, दर्दनाक और शर्मनाक सलूक कर रहे हैं, जिसे सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं और उनकी कारगुजारियों से खून खौल उठता है। अलकायदा, लश्कर ए तैयबा, आईएस, अलशबाब, बोकोहराम, हिजबुल मुजाहिद्दीन, इंडियन मुजाहिद्दीन, लश्कर ए झांगबी, हमास, हक्कानी आदि अनेक आतंकी संगठन विश्वभर में जिहाद के नाम पर मारकाट कर रहे हैं। भारत में भी ऐसे अनेक गुट हैं, जो विद्रोही स्वभाव के लिए जाने जाते हैं। बरेलवी, देवबंदी, रजबी, सकलैनी आदि। लेकिन कुछ भी हो आज इस्लाम का जो वास्तविक चरित्र है, उसे पूरी दुनिया देख रही है और इनकी कलई खुल रही है। अभी तक जो भाईचारे का बाना ओढ़े आ रहे थे उससे अब परदा उठने लगा है।
—ओम प्रकाश मंजुल
कामायनी, कायस्थान, पूरनपुर
जिला-पीलीभीत (उ.प्र.)
दिया करारा जवाब
आतंकी करने लगे, फिर से अपने वार
लेकिन भारत देश भी, है अबकी तैयार।
है अबकी तैयार, सभी को मार गिराया
हुए शहीद जवान, देश का कर्ज चुकाया।
कह 'प्रशांत' है मौका, सावधान हो जाए
वीरभूमि पंजाब न घायल होने पाए।।
-प्रशांत
टिप्पणियाँ