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बहुआयामी प्रतिभाओं के धनी, एक वैज्ञानिक, अध्यापक, प्रशासक तथा सबसे बढ़कर एक अच्छे इंसान और मार्गदर्शक डॉ़ ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के निधन से भारत माता ने एक बहुत अच्छे सपूत को खो दिया है। ऐसे लोग बहुत कम पैदा होते हैं, जिन्होंने अपना सारा जीवन राष्ट्र को समर्पित किया हो। जब उनसे कोई पूछता था कि आपने कभी अपना परिवार बसाने का क्यों नहीं सोचा तो वह तुरंत जवाब देते, आप मेरा परिवार हैं, पूरे भारत की जनता मेरा परिवार है।
मेरा उनसे संपर्क तब हुआ जब मेरा चयन भारत सरकार ने राष्ट्रपति के प्रेस सचिव के रूप में किया और राष्ट्रपति कलाम के पद संभालने के 10 दिन बाद 5 अगस्त, 2002 को मैंने कार्यभार संभाला। पहले ही दिन उन्होंने मुझे समय दिया और करीब आधा घंटा अपने 'मिशन' और 'विजन' के बारे में समझाया।
मैंने उनसे कहा कि सर मीडिया और भारत की जनता में आपकी बहुत इज्जत है, आपको मिसाइल मैन कहा जाता है, आपको भारत के अंतरिक्ष और मिसाइल कार्यक्रम का जनक कहा जाता है। आप राष्ट्रपति बनने से पहले भारतरत्न हैं। आपने पोखरन के 1998 के परमाणु प्रक्षेपण में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। इसलिए आपसे जनता और मीडिया को बहुत उम्मीदें हैं, उन्होंने बड़ी विनम्रता परंतु दृढ़ता से जवाब दिया कि मैं भारत की जनता को निराश नहीं करूंगा। मेरा लक्ष्य भारत की सेवा करना है, मेरे लिए राष्ट्रपति का पद देश की सेवा करने का एक और माध्यम है। पहले ही दिन उन्होंने मुझे निर्देश दिया कि मैं और सभी अधिकारी यह देखें कि उनके कार्यकाल में राष्ट्रपति भवन एक किला बनकर न रहे, परंतु ऐसी जगह बने जहां जनता की आवाजाही हो, जनता की आवाज सुनी जाये, जहां वी़ आई़ पी. कल्चर समाप्त हो जाये तथा भारत के संविधान और कानून के अनुसार काम हो। हम लोगों ने ऐसा ही किया और बहुत जल्द राष्ट्रपति भवन जनता एक का भवन बन गया और डा. कलाम 'जनता के राष्ट्रपति'।
भारत की जनता का उनके प्रति प्यार का यह आलम था कि जिस शहर या गांव में जाते हजारों की तादाद में लोग सड़कों पर उनका दीदार करने के लिए एकत्र होते और वह सुरक्षा के निर्देशों को दरकिनार करते हुए जगह-जगह रुककर उनका अभिवादन स्वीकार करते थे।
राष्ट्रपति बनने के कुछ माह बाद ही उन्होंने सब को अचम्भे में डाल दिया, जब सरकार द्वारा प्रस्तुत एक सांसद अयोग्यता अध्यादेश को उन्होंने वापस कर दिया। जिसमें चुनाव के समय कुछ घोषणाएं करने के चुनाव आयोग के फैसले को नकार दिया गया था। जब दोबारा मंत्रिमंडल ने वही अध्यादेश भेजा तो उन्होंने संविधान के प्रावधान के अनुसार उसको मंजूरी दी, परंतु उन्होंने एक संदेश दे दिया कि वह प्रत्येक संवैधानिक फैसले को बड़ी गंभीरता से तथा व्यक्तिगत रूप से देखेंगे। बाद में 2002 से 2007 तक यह प्रथा बन गई कि जब भी कोई अध्यादेश सरकार से आता था तो सम्बंधित वरिष्ठ मंत्री उनसे इसके बारे में विस्तृत चर्चा करने आते थे।
राष्ट्रपति रहते हुए उनका एक ध्येय था कि वह अपने कार्यकाल में 10 लाख छात्र- छात्राओं से सीधा संवाद कायम करेंगें और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वह जहां भी जाते वहां एक कार्यक्रम छात्र-छात्राओं के लिए अवश्य रखते। जिससे हजारों बच्चेे सम्मलित होकर उनसे सीधा वार्तालाप करते। इस कार्यक्रम में एक ही संदेश होता, सपने देखो, ऊंचा लक्ष्य रखो और उसको पाने के लिए कठिन परिश्रम करो। वह कहते थे कि छोटा लक्ष्य एक अपराध है और कठिन परिश्रम का कोई विकल्प नहीं है।
डॉ. कलाम अपना 'पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन' स्वयं तैयार करते थे और सभी महत्वपूर्ण वार्ता, सेमीनार तथा अंतरराष्ट्रीय मुलाकातों में इसी माध्यम से अपनी बात रखते थे। उन्होंेने अमरीका के राष्ट्रपति जॉर्ज बुश को अचंभे में डाल दिया, जब भारत की एनर्जी आवश्यकताओं पर 'पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन' कर अपनी बात रखी और पाक राष्ट्रपति मुशर्रफ को भारत और पाकिस्ताान की गरीबी के विरुद्ध संयुक्त लड़ाई लड़ने की बात समझाई। राष्ट्रपति बुश और राष्ट्रपति मुशर्रफ दोनों का वक्तव्य मुझे याद है, जब उन्होंने कहा कि इसको समझने के लिए एक वैज्ञानिक बनना पडे़गा।
उन्होंने अपने कार्यकाल में 16 राष्ट्रों का सरकारी दौरा किया। इन सभी राष्ट्रों ने उनको एक बडे़ वैज्ञानिक के रूप में देखा और इन यात्राओं को बहुत महत्व दिया। मुख्यत: यह देश थे- रूस, यू़ ए़ ई़, तन्जानिया, सूड़ान, दक्षिण अफ्रीका, स्विटजरलैंड तथा अन्य। उन्होंने यूरोपीयन यूनियन संसद तथा अफ्रीकी यूनियन संसद को संबोधित किया, जिसका भरपूर स्वागत किया गया और उनको 'स्टान्डिंलग ओवेशन' दिया गया। स्विीटजरलैंड ने उनके सम्मान में देशभर में विज्ञान दिवस मनाने की घोषणा की।
मेरी उनसे अंतिम मुलाकात 22 जुलाई, 2015 को हुई, जब मैं उन्हें ईद की मुबारकबाद देने उनके निवास स्थान राजाजी मार्ग गया। जो करीब 40 मिनट रही। मैं उनसे उनकी प्रथम तल पर बनी स्ट्डी में मिला, जहां वह अपने सहयोगियों के साथ निरंतर काम में व्यस्त रहते थे। उन्होंने विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की कि सरकार में क्या हो रहा है, संसद में क्या हो रहा है। मेरे विभाग के बारे में पूछा कि कैसा काम हो रहा है। अपने शिलांग के आने वाले दौरे के बारे में बताया, जहां उनको 27 जुलाई को जाना था और जहां उन्होंने छात्रों को पढ़ाते हुए अंतिम सांस ली। उनका अंत उनके सबसे प्रिय कार्य को करते हुए हुआ। मैं जब भी मिलता था सदैव यह कहते थे कि जो भी करो इमानदारी देश से करो, मेहनत से करो तथा अपनी पहचान उस जगह छोड़ कर जाओ और कुछ नया करो। हम सब भारतीयों को यह दृढ़ प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि हम सिर्फ उनको याद ही न करें वरन उनके बताये हुए रास्ते पर चलकर भारत को 2020 तक एक विकसित राष्ट्र बनाने का उनका मिशन पूरा करने में सहयोग दें।
मुझे एक मशहूर शेर याद आ रहा है जो डॉ. कलाम साहब की सही अक्कासी करता है-
हजारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पर रोती है,बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा॥
एस़ एम़ खान-लेखक महानिदेशक भारत के समाचारपत्रों के पंजीयक का कार्यालयभूतपूर्व प्रेस सचिव राष्ट्रपति
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