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सुशान्त पटनायक
सह संस्थापक एस.आई.एफ.
नए-नए आविष्कारों से अक्षम को सक्षम बनाने का सपना साकार करने में जुटे हैं सुशांत पटनायक।
जब मैं कक्षा 6 में पढ़ता था उसी दौरान मुझे जो भी खेल-खिलौने पिताजी लाकर देते थे मैं उसको खोलकर फिर बनाता था। शुरू से मुझे चीजांे को खोलना और बनाना अच्छा लगता था। एक बार पिताजी और माता जी बाजार गए हुए थे उस दौरान मैंने चुपके से अपने घर के टी.वी को खोला और उसके सभी पुर्जों को अलग-अलग करके फिर जोड़ा। जब पिताजी वापस आए तो उन्होंने टी.वी चलाया पर वह नहीं चला। वे समझ गए कि यह काम मेरा ही होगा। उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या आपने टी.वी. को खोला था? मैंने हां में सिर हिलाते हुए स्वीकार कर लिया। यही वह घटना थी जो जीवन में मुझे तकनीकी के क्षेत्र में ले आई। लेकिन जिस घटना ने मुझे आविष्कार के लिए प्रेरित किया वह थी पिताजी के साथ अस्पताल जाते समय। पिताजी प्रत्येक सप्ताह अपना 'ब्लड प्रेशर' परीक्षण कराने के लिए अस्पताल जाते थे। उसी दौरान मेरी नजर एक ऐसे रोगी पर गई जो शारीरिक रूप से पंगु था। न वह बोल सकता था और न ही किसी अंग को उठाकर इशारे में कुछ बता सकता था। वह नर्स से इच्छा व्यक्त कर रहा था, लेकिन नर्स उसे नहीं समझ पा रही थी। इसे देखकर मेरे मन में विचार आया कि काश, ऐसे लोग भी आत्मनिर्भर बन पाते। मैंने तभी मन में ठान लिया कि मैं इन लोगों के लिए एक ऐसी तकनीकी का निर्माण करूंगा जिससे यह आत्मनिर्भर बन जाएंगे। क्योंकि लगवाग्रस्त लोगों का दिमाग ही काम करता है और वह सांस के स्पंदन को महसूस करता है। इसी विचार ने आविष्कार को जन्म दिया। बस फिर क्या था! अस्पताल आने के बाद से मैं लग गया लगवाग्रस्त लोगों के लिए उपकरण बनाने। मैंने किताबों और इंटरनेट की मदद से तकनीकी की जानकारी जुटाना शुरू कर दिया। आखिरकार 2008 को जब 10वीं में था मैंने इसमें सफलता प्राप्त कर ली। मैंने अपना पहला आविष्कार 'ब्रीदिंग सेंसर' नाम से लगवाग्रस्त लोगों के लिए बना दिया। इस उपकरण के जरिये लकवाग्रस्त जब सांस लेगा तो उसी सांस के जरिये यह उपकरण जान लेगा कि वह क्या मांगना चाहता है। इसके जरिए वह पानी व खाने-पीने की चीजों को आसानी से मांग सकता है। दुनिया में यह पहला ऐसा सॉफ्टवेयर है जो सांसों से संचालित होता है। इस आविष्कार के बाद बधाइयों का आना शुरू हुआ और सरकार ने भी उत्साहवर्धन बढ़ाने का काम किया। मैंने इसी के बाद से शोध व तकनीकी के क्षेत्र में जाने का पूरा मन बना लिया। मेरा मन था कि जो सभी करते हैं वह मैं नहीं करूंगा। मैं कुछ अलग करूंगा। क्योंकि यह जरूरी नहीं है कि हर कोई व्यक्ति अनिल अंबानी या अन्य किसी बडे़ या धनवान की संतान हो। लेकिन अपने कार्यक्षेत्र में अगर व्यक्ति ने कुछ ठान लिया तो रास्ते स्वयं निकलते चले जाते हैं। बस शर्त यह है कि आप को हार नहीं माननी है। इस यंत्र के आविष्कार के बाद मेरे मन में अपार आत्मविश्वास आ गया था। इस उपकरण के आविष्कार के लिए मुझे नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन की ओर से युवा आविष्कारक के रूप में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की ओर से पुरस्कार प्रदान किया गया। 11वीं तक आते-आते मैंने कई आविष्कार कर दिये। 12वीं करने के बाद भोपाल के तकनीकी संस्थान में मैंने प्रवेश लिया और यही से आगे इस क्षेत्र में कार्य करना शुरू कर दिया। इसी क्रम में मैंने अब तक 15 उपकरणों का आविष्कार किया है जिनमें- एक्सीडेंटल पू्रफ टेक्नोलॉजी, डाइवर-लेस सीट, लड़कियों की रक्षा के लिए रक्षा बैंड, रूलर लाइट इल्क्ट्रोसिटी सहित अन्य उपकरण हैं। वर्तमान में इंटेंशन एक्टीवेटर पर कार्य कर रहा हूं। इस उपकरण के माध्यम से व्यक्ति जैसा सोचेगा वैसे होने लगेगा।
निर्णायक मोड़
अक्षम को देखकर उसे सक्षम बनाने की चाह पैदा होना । अस्पताल में मैंने जो पीड़ा महसूस की उसने जीवन को बदल दिया।
प्रेरणा
मैं स्वयं से प्रेरणा लेता हूं और अपनी आत्मा को टटोलते हुए जानने की कोशिश करता हूं कि मैं इस भीड़ में कैसे सबसे अलग हूं ।
विजय मंत्र
वर्तमान परिदृश्य में आपको सिर्फ कठिन कार्य से ही लक्ष्य प्राप्ति संभव नहीं है। अपको इसके साथ ही 'स्मार्ट वर्क' भी करना है।
संदेश
नबंर की दौड़ में युवा न भागें। हो सकता है। इन नबंरों से अच्छे विद्यालय में दाखिला मिल जाए लेकिन आपको जो पाना है, वह नबंरों से नहीं मिलता।ाा
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