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मुजफ्फर हुसैन
इस कड़वे सच को स्वीकार करना ही पड़ता है कि मुस्लिम जगत जितना चिल्लाकर इस्लामी एकता की डींगें हांकता है उतना ही वह अपने मजहबी देश से लड़ता है, शायद ही कोई मुस्लिम देश होगा जिसके अपने पड़ोसी मुस्लिम राष्ट्र से मधुर सम्बंध हों? शिया-सुन्नी, अरब-अजम का संघर्ष जग विख्यात है। सीमा के झगड़े इतने अधिक हैं कि उनके शासकों को एक क्षण की भी राहत नहीं मिलती। खनिज तेल की आय से करोड़ों की कमाई करते हैं किन्तु उसका कितना प्रतिशत वे अपनी जनता अथवा देश के विकास के लिए खर्च करते हैं, ये सवाल बार-बार उठते रहते हैं। उनके यहां खनिज तेल का खजाना है लेकिन उसकी आय या तो सत्ताधीशों की अय्याशी पर खर्च होती है या फिर अपने पड़ोसी से चली आई पुरानी स्पर्द्धा पर। उनमें इतना अलगाव और आपसी घृणा है कि देश की कुल कमाई का 50 से 60 प्रतिशत उसी पर खर्च हो जाता है। अपने पड़ोसी देश की जासूसी करवाना उनका नित्य का कार्य होता है। यही कारण है कि दुनिया में बनने वाले कुल हथियारों का 60 प्रतिशत हिस्सा यहीं पर खर्च होता है। पश्चिमी राष्ट्र इनसे धड़ल्ले से कमाई करते हैं। इसी दिशा में पिछले दिनों एक चौंकानेे वाला समाचार मिला है। इस बात की सुगबुगाहट है कि अब दुनिया का सबसे अधिक तेल उत्पादन करने वाला सऊदी अरब अपनी रक्षा के लिए पाकिस्तान से एटम बम खरीदने का निश्चय कर चुका है। पाठकों को याद दिला दें कि पिछले दिनों सीरिया में अल बगदादी ने अपने दाइश नामक आतंकवादी संगठन के माध्यम से मध्य-पूर्व के देशों में जो हाहाकार मचाया उससे यूरोप और अमरीका ने मिलकर यह तय किया है कि इस प्रकार के आतंकवाद को जब तक समाप्त नहीं किया जाता है, दुनिया चैन से नहीं रह सकती। अमरीका और पश्चिम के अनेक देशों ने भारी जोखिम उठाकर इस अभिशाप को सात हाथ जमीन में दफन करने के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाएं तैयार की हैं। इनमें एक योजना है जिसके अंतर्गत प्रभावित देशों की हर प्रकार की सहायता करनी है। बगदादी मर चुका है या फिर जीवित है, यह गुत्थी अब तक हल नहीं हुई है। आश्चर्यजनक बात तो यह है कि बगदादी जीवित है तो कहां है और यदि मारा गया है तो उसका सबूत क्या है?
सऊदी अरब सीरिया से सटा हुआ है इसलिए उसकी पहली चिंता अल बगदादी जैसा आतंकवादी है। यदि बगदादी जैसा सरफिरा सऊदी जैसे देश में घुसपैठ कर लेता है तो उस जैसे सम्पन्न और खनिज तेल से लबालब देश के लिए यह एक बहुत बड़ी चुनौती हो सकती है। पिछले दिनों जब यह समाचार आया कि दाइश अफगानिस्तान तक पहुंचने में सफल हो गया है, ऐसे में सऊदी शासकों का चिंतित होना स्वाभाविक हो सकता है। अपनी राजगद्दी और खनिज तेल की रक्षा के लिए सऊदी शासकों का चिंतित होना स्वाभाविक था। वह अणु शस्त्रों से लैस होकर अपनी सुरक्षा करने पर विचार करने लगा। सऊदी और ईरान दिखावे के लिए भले ही मित्र और इस्लाम का दम भरते हों लेकिन उनकी अरब और अजम की लड़ाई जग विख्यात है। केवल इतना ही नहीं, अब न मात्र शिया-सुन्नी विवाद बल्कि इस्लामी जगत का नेतृत्व करने की स्पर्द्धा भी एक-दूसरे के लिए चुनौती बनी हुई है इसलिए सऊदी येन-केन प्रकारेण अपने बलबूते पर अपनी साख को टिकाए रखना चाहता है।
लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि सऊदी अरब अमरीका को अपना सबसे भरोसेमंद मित्र मानता है। तो फिर वह अमरीका से एटम बम न खरीदकर पाकिस्तान से क्यों खरीदना चाहता है? पहली दृष्टि में कोई यह कह सकता है कि पाकिस्तान सऊदी अरब को सस्ते में यह हथियार दे सकता है। लेकिन सऊदी अरब जैसे देश के लिए महंगा और सस्ता दोयम दर्जे की बात है। इसके पीछे मुख्य बात यह है कि अमरीका पाक को एटम बम तो दे सकता है लेकिन अपनी सेना नहीं दे सकता। जबकि पाकिस्तान अमरीका को अपनी सेना और साथ में अणु शस्त्रों के विशेषज्ञों की भी आपूर्ति कर सकता है। पाकिस्तान और सऊदी दोनों ही सुन्नी देश हैं। इसलिए वह उसके लिए विश्वसनीय भी है और तुलनात्मक रूप से अपने लिए सुरक्षित भी। बताया जाता है कि सऊदी अरब अब ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर बेहद परेशान है। इसलिए उसे करारा जवाब देने के लिए स्वयं को इस हथियार से लैस करना चाहता है। ऐसा कहा जा रहा है कि इस मामले में सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच गुप्त समझौता भी हो चुका है। सऊदी सरकार को यह खतरनाक हथियार मिल चुका है या नहीं, इस सम्बंध में पिछले सप्ताह न्यूयार्क टाइम्स में सऊदी प्रिंस तुर्की अल फैजल का बयान प्रकाशित हुआ था कि जब पश्चिमी राष्ट्र ईरान को परमाणु हथियारों से लैस करने सम्बंधी निर्णय पर अटल हैं तो फिर सऊदी अरब ने पाकिस्तान की परमाणु बम परियोजना में काफी बड़ी रकम लगा रखी है। इतना ही नहीं, वह जब चाहे इन हथियारों को प्राप्त कर सकता है। लेकिन इसके उपरांत भी सऊदी अरब ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया था लेकिन अब इस मामले में उसकी आतुरता और उतावलेपन को समझा जा सकता है।
इसका मूल कारण खाड़ी के देशों में उठ रहा शिया-सुन्नी विवाद जान पड़ता है। पिछले कुछ समय से ईरान के मार्गदर्शन में शिया ताकतें तेजी से उभर रही हैं। अनेक स्थानों पर शिया दावेदारी बढ़ती और फैलती दिखलाई पड़ रही है। इसका नतीजा यह आता है कि सऊदी अरब भी अपने पांव फैलाता जा रहा है। सुन्नी-शिया विवाद, जो कल तक धरातल के नीचे था, वह उभरकर ऊपर आता दिखलाई पड़ रहा है। यमन में शिया हौसी विद्रोहियों के विरुद्ध उसने एक गठबंधन बनाकर अपनी वायुसेना की पूरी ताकत झोंक दी है। इस बात का भी अनुमान लगाया जा रहा है कि अलकायदा और आईएसआईएस जैसे सुन्नी उग्रवादी संगठनों की भी वह चुपचाप सहायता कर रहा है। अब यदि उसने पाकिस्तान से परमाणु हथियार प्राप्त कर लिए तो उनका उपयोग सुन्नी-शिया के आधार पर किया जा सकता है। जबसे खाड़ी क्षेत्र में शिया-सुन्नी संघर्ष तेज हुआ है और ईरान के नेतृत्व में शिया ताकतें अपनी दावेदारी बढ़ा रही हैं, तबसे सऊदी अरब भी सुन्नियों के समर्थन में आकर खड़ा हो गया है। अनुमान लगाया जा रहा है कि वह अल कायदा और आईएसआईएस जैसे सुन्नी आतंकी संगठनों को भी चुपचाप सहायता दे रहा है। अब उसने यदि पाकिस्तान से परमाणु हथियार प्राप्त कर लिए तो फिर उनका उपयोग साम्प्रदायिक तरीके से किया जा सकता है।
यह बात तो सारी दुनिया जानती है कि जबसे पाकिस्तान ने एटम बम बनाया है उसके गलत हाथों में जाने की शंका अनेक स्थानों पर अनेक देशों ने व्यक्त की है। भारत ने उक्त मुद्दा अनेक बार अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर उठाया है। पाकिस्तान के एटमी हथियारों पर निगरानी रखने के लिए दुनिया में बार-बार आवाज बुलंद होती रही है। आतंकी गुटों के हाथों तक इसके पहुंचने की सम्भावना भी अनेक बार व्यक्त की जाती रही है। अब पाकिस्तान उसे सऊदी अरब तक नहीं पहुंचने देगा, इसकी क्या गारंटी है? पाकिस्तान की जनसंख्या का एक बड़ा वर्ग यह मानता है कि पाकिस्तान ने अपना एटम बन बनाया ही इसलिए है कि वह इस्लामी ताकत के बलबूते पर विश्व में अपना वर्चस्व कायम कर सके। इसलिए कोई यह समझे कि पाकिस्तान किसी के दबाव में आकर ऐसा नहीं करेगा तो वह यथार्थ की दुनिया से दूर है।
इस्लाम में पापियों और काफिरों के लिए कोई स्थान नहीं है। पाकिस्तान की सेना का एक बड़ा वर्ग काफिरों और गैर मुस्लिमों को बड़ी से बड़ी सजा देने के पक्ष में है। परवेज मुशर्रफ फिर से सक्रिय हो रहे हैं, ऐसे वातावरण में क्या हो सकता है इसका आकलन करना कठिन नहीं है? पाकिस्तान का बचकाना रवैया सऊदी हितों के भी विरुद्ध है लेकिन भारत उसका पहला निशाना बन सकता है। पाकिस्तान जैसा गैर-जिम्मेदार देश सऊदी को अपने साथ लेकर अब अमरीका जैसे देश को भी आंखंे दिखाने लगा है। सम्पूर्ण विश्व इस समय पाकिस्तान और सऊदी अरब की नादानी से दु:खी है। पश्चिमी एशिया में जब टकराव बढ़ेगा उस समय यह खेल खेला जाएगा। सऊदी पेट्रो डालर और पाकिस्तान के जंगी इरादे पश्चिमी एशिया की शांति के साथ-साथ भारतीय उपखंड के लिए हर समय लटकती तलवार की तरह हैं।
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