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विवेक बंसल
ये एक तरह से अच्छा ही हुआ कि देश में अकबर और राणा प्रताप के बीच महान कौन की बहस छिड़ी। इससे इतिहास की पुस्तकों में पढ़े कुछ स्वर्णिम अक्षर याद आ गये। एक और जहां अकबर, टीपू सुल्तान और औरंगजेब आदि 'महान' बताए जाते थे वहीं इस महानता को पाने के लिए विक्रमादित्य, पृथ्वीराज, राणा प्रताप, शिवाजी और ऐसे कितने ही महापुरुषों के नाम तरसते रहते थे। अकबर के कसीदे गाने वाले इतिहासकार एक बात नहीं बताते कि एक ही समय पर राणा प्रताप और अकबर महान कैसे हो सकते थे, जबकि दोनों एक दूसरे के घोर विरोधी थे?
पुस्तकों में अकबर पर छपे पूरे अध्याय में दो-तीन लाइनें महाराणा प्रताप पर भी होती थीं। वे कब पैदा हुए, कब मरे, कैसे विद्रोह किया और कैसे उनके ही राजपूत उनके खिलाफ हुए आदि। अब अकबर और महाराणा प्रताप का मुकाबला कहां? कहां अकबर, पूरे भारत का सम्राट, अपने हरम में पांच हजार से भी ज्यादा महिलाओं को रखकर उनकी जिंदगी 'रोशन' करने वाला, बीसियों राजपूत राजाओं को अपने दरबार में रखने वाला राजा और कहां राणा प्रताप, जो सब कुछ त्यागकर अपने राज्य के लिये लड़ते रहे, जिनका कोई हरम नहीं और अपने राज्य की रक्षा के लिये वनों में रहकर घास की रोटी खाते रहे। वे राणा प्रताप जो अकबर महान का संधि प्रस्ताव कई बार ठुकरा चुके थे। सच है कि हमारे इतिहासकार किसी को 'महान' यूं ही नहीं कह देते।
राणा ने जब मेवाड़ की सत्ता संभाली, तब आधा मेवाड़ मुगलों के अधीन था और शेष पर अकबर अपना राज जमाने के लिये प्रयासरत था। राजस्थान के कई परिवार अकबर की ताकत के आगे घुटने टेक चुके थे, किन्तु महाराणा अपने वंश को कायम रखने के लिये संघर्ष करते रहे। जंगल-जंगल भटकते हुए घास-पात की रोटियां खाकर गुजर-बसरकर पत्नी व बच्चे को विषम परिस्थितियों में अपने साथ रखते हुए भी उन्होंने कभी धैर्य नहीं खोया। पैसे के अभाव में सेना के टूटते हुए मनोबल को पुनर्जीवित करने के लिए दानवीर भामाशाह ने अपना पूरा खजाना समर्पित कर दिया। तो भी, महाराणा प्रताप ने कहा कि सैन्य आवश्यकताओं के अलावा मुझे आपके खजाने की एक पाई भी नहीं चाहिए। महाराणा के पास साधन सीमित थे, किन्तु फिर भी वे झुके नहीं, डरे नहीं। उनके धैर्य और साहस का ही असर था कि 30 वर्ष के लगातार प्रयास के बावजूद अकबर महाराणा प्रताप को बन्दी न बना सका। महाराणा प्रताप सच्चे क्षत्रिय योद्धा थे, उन्होंने अमरसिंह द्वारा पकड़ी गई बेगमों को सम्मानपूर्वक वापस भिजवाकर अपने विशाल हृदय का परिचय दिया। उनके शासनकाल में अनेक विद्वानांे एवं साहित्यकारों को आश्रय प्राप्त था। अपने शासनकाल में उन्होंने युद्ध में उजड़े गांवों को पुन: व्यवस्थित किया। पद्मिनी चरित्र की रचना तथा दुरसा आढ़ा की कविताएं महाराणा प्रताप के युग को आज भी अमर बनाये हुए हैं। अब एक नजर डालते हैं तथाकथित महान अकबर से जुड़ी कुछ बातों पर और वह भी तथ्यों के साथ। अकबर के जीवन पर सबसे ज्यादा प्रामाणिक इतिहासकार विन्सेंट स्मिथ की अंग्रेजी की किताब 'अकबर-द ग्रेट मुगल' की शुरुआत में है-'अकबर भारत में एक विदेशी था। उसकी नसों में एक बूंद खून भी भारतीय नहीं था। अकबर मुगल से ज्यादा एक तुर्क था।' पर देखिये! हमारे इतिहासकारों ने अकबर को एक भारतीय के रूप में पेश किया है। जबकि हकीकत यह है कि अकबर के सभी पूर्वज बाबर, हुमायूं से लेकर तैमूर तक, सब भारत में लूट, बलात्कार, कन्वर्जन, मंदिर विध्वंस आदि में लगे रहे।
बाबर नशे का शौकीन था और हुमायूं अफीम का। अकबर ने ये दोनों आदतें अपने पिता और दादा से विरासत में लीं। अकबर का दरबारी लिखता है कि अकबर ने इतना ज्यादा मद्यपान करना शुरू कर दिया था कि वह मेहमानों से बात करते करते या नींद में गिर पड़ता था ।
और इतिहास में यह तो पढ़ाया ही नहीं गया कि अकबर आगरा में मीना बाजार लगवाता था। मीना बाजार में खुद महिलाओं के कपडे़ पहनकर जाता था और जो महिला पसंद आती थी उसको ले आता था। ये भी इतिहास है कि बीकानेर की महारानी किरण देवी उस मीना बजार में आई थी और महल से जुड़ीं कुछ महिलाएं उनको बहला-फुसलाकर अकबर के सामने ले गईं। अकबर की बुरी नियत को देखकर महारानी किरण देवी उसे गिराकर उसकी छाती पर छुरा लेकर चढ़ गईं, तब अकबर ने बहाना बनाकर उससे माफी मांगी थी। जहांगीर ने लिखा है कि अकबर लिखना-पढ़ना नहीं जानता था, पर ऐसा दिखाता था जैसे वह बड़ा भारी विद्वान हो।
रणथम्भौर की संधि में अकबर की पहली शर्त यह थी कि राजपूत अपनी स्त्रियों की डोलियों को अकबर के शाही हरम के लिए रवाना कर दें, यदि वे अपने सिपाही वापस चाहते हैं। बैरम खान, जो अकबर का पिता तुल्य और संरक्षक था, उसकी हत्या करके अकबर ने उसकी पत्नी अर्थात अपनी माता तुल्य स्त्री से शादी की। कर्नल टोड ने लिखा है-अकबर ने एकलिंग की मूर्ति तोड़ी और उस स्थान पर नमाज पढ़ी। चित्तौड़ में तीस हजार लोगों का कत्लेआम करने वाला तथा नगरों और गांवों में जाकर नरसंहार कराकर लोगों के कटे सिरों से मीनार बनाने वाले क्रूर आक्रांता को आज 'शान ए हिन्दोस्तां' लिखा जा रहा है।
यह विडंबना ही है कि विश्व को ज्ञान देने वाले भारत को ही दुनिया का सबसे झूठा इतिहास पढ़ाया जा रहा है।
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