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अंक संदर्भ: 3 मई, 2015
आवरण कथा 'फसल मरी, राजनीति लहलहाई' से स्पष्ट हो गया है कि एक तरफ देश में किसानों पर प्राकृतिक आपदा का कहर टूटा हुआ है तो दूसरी ओर राजनीतिक दल इसकी आड़ में अपना राजनीतिक हित देखकर स्वार्थ साध रहे हैं। आआपा और कांग्रेस सहित तमाम राजनीतिक दल किसानों को कठिन परिस्थिति में धैर्य बंधाने के बजाए उन्हें भड़काने का कार्य कर रहे हैं। यह सभी राजनीतिक दल चाह रहे हैं कि कैसे भी देश के किसानों को ऐसा बरगला दिया जाए जिससे वे केन्द्र सरकार के विरोधी हो जाएं। लेकिन सवाल उठता है कि क्या वास्तव में राजनीतिक दल किसानों के आंसू पोंछना चाहते हैं या वे घडि़याली आंसू बहा कर राजनीति चमकाना चाह रहे हैं?
—हरिओम त्रिपाठी ँ३१्रस्रं३ँ्र458@ॅें्र'.ूङ्मे
ङ्म सच है कि इस बार की प्राकृतिक आपदा ने किसानों की कमर तोड़कर रख दी है। वर्तमान में अन्नदाता परेशान और हताशा से भरा हुआ है। उसके लिए एक मात्र सहारा कृषि चौपट हो गई है। इस आपदा से पूरा देश आहत है। लेकिन ऐसी विषम परिस्थिति में राजनीतिक दल मदद करने के बजाए उन्हें भड़काने में लगे हुए हैं और मौजूदा सरकार को बेवजह घेरना चाह रहे हैं। लेकिन तह में जाएं तो पाते हैं कि पिछली सरकारों ने किसानों के हित में कोई भी ऐसी नीति नहीं बनाई थी जिससे इस प्रकार की दैवीय आपदा से राहत मिल सके। अब गलती किसकी है? देश को इस तथ्य से अवगत होना चाहिए। लेकिन दुख की बात यह है कि आज वही दल झूठे आंसू बहा रहे हैं जो दसों वर्ष सत्ता में रहे और जब उनको किसानों के लिए कुछ करना चाहिए था तब वे सो रहे थे। लेकिन अब वे वोट बैंक के लालच में किसानों को बरगलाने में लगे हुए हैं।
—राममोहन चंद्रवंशी
टिमरनी,जिला-हरदा (म.प्र.)
ङ्म जरूरत से ज्यादा पानी बरसने से किसान की तैयार फसल उसकी पहुंच से दूर हो गई। पहले से ही कर्ज के बोझ से दबा किसान प्राकृतिक आपदा आने से किंकर्त्तव्यविमूढ़ है। कुछ मन से हारकर मौत को गले लगा रहे हैं तो कुछ परेशान और हताशा से भरे हैं। लेकिन किसानों को ऐसी विषम अवस्था में अपने ऊपर काबू रखना होगा। यह सच है कि आपदा बहुत बड़ी है लेकिन ऐसा नहीं है कि सभी रास्ते बंद हो गए हैं। कुछ न कुछ प्रकाश की किरण अवश्य नजर आयेगी और फिर से अन्नदाता प्रसन्न होगा।
—रामदास गुप्ता
जनता मिल (जम्मू-कश्मीर)
ङ्म यह सत्य है कि देश का प्राणतत्व हमारा किसान है। हमने विश्व को कृषि का ज्ञान दिया लेकिन फिर ऐसा क्या हो गया कि हमारा किसान आज गरीब हो गया या विपन्न अवस्था में आ गया। वर्तमान में देखने में आ रहा है कि कई प्रदेशों में किसान प्राकृतिक आपदा से कष्ट में आकर आत्महत्या कर रहे हैं। कारण साफ है कि हमने पश्चिम की सभ्यता का अंधानुकरण किया और अपनी कृषि पद्धति को भुलाया। हमारे किसानों और हमारी कृषि को अगर खुशहाल बनाना है तो अपनी पारम्परिक कृषि पद्धति को फिर से अपनाना होगा। तब ही भारत और भारत के किसानों का कल्याण होगा।
—बादा ठाकुर, संगम नगर, इंदौर (म.प्र.)
ङ्म केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने आपदा की घड़ी में किसानों की पीड़ा और दुख-दर्द को बांटा है और संकटमोचक की अवस्था में आकर खड़े हो गई हैं। राजग सरकार ने किसानों के दुख को समझते हुए राष्ट्रीय आपदा कोष से राज्य सरकारों को उचित सहायत प्रदान की है और मुआवजे की राशि में भी बढ़ोतरी कर दी है। साथ ही यह भी आश्वासन दिया है कि मोदी सरकार किसानों के साथ हरदम कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हुई है। लेकिन दुख इस बात है कि कांग्रेस सहित अन्य दल जो अपने को किसानों का इस समय सबसे बड़ा मददगार साबित करने की होड़ में लगे हुए हैं । वे बताएं कि उन्होंने देश के किसानों के हित मे क्या किया? सिर्फ बयानबाजी और किसानों को गलत तथ्य देकर भड़काना कहां तक उचित है?
—मनोहर मंजुल
पिपल्या-बुजुर्ग,पं.निमाड (म.प्र.)
कन्वर्जन के अनुयायी
लेख 'औरंगजेब सा काम, दिया संत का नाम' लेख समाज में उन लोगों की आंखों को खोलता है जो लोग ईसा को भगवान समझते हैं। जिस प्रकार देश में औरंगजेब ने हिन्दुओं के मानबिन्दुओं पर कुठाराघात करके उनको नष्ट किया उसी प्रकार ईसा के कुछ अनुयायी संत के चोले में भारत की संस्कृति को नष्ट करने का कार्य कर रहे हैं। आज समूचे भारत में ईसा के नुमायिंदे घूम-घूम कर लोगों को डरा-धमकाकर और लालच देकर अपने पाश में लेकर कन्वर्जन का खेल खेल रहे हैं। भारत का ऐसा कोई भी वनवासी क्षेत्र नहीं होगा जहां ये लोग आज नहीं पहुंच गए हों और सेवा के बाने में कन्वर्जन का खेल न खेलते हों।
—हरिओम जोशी
चतुर्वेदीनगर, भिण्ड (म.प्र.)
सहोदर बना सहारा
नेपाल में आए भयंकर भूकंप में भारत ने बिल्कुल देर न करते हुए पड़ोसी की पीड़ा को अपनी पीड़ा समझते हुए हरसंभव मदद की । देश के प्रधानमंत्री द्वारा आपदा की इस घड़ी में तत्परता से नेपालवासियों के लिए सेवा का जो हाथ बढ़ाया उसकी तारीफ पूरे विश्व में हुई। भारत ने प्राकृतिक आपदा की घड़ी में साबित कर दिया कि नेपाल से हमारे संबंध सिर्फ पड़ोसी के नहीं हैं बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक हैं। साथ ही भारतवासियों ने भी नेपाल की पीड़ा को अपने भाई-बंधुओं की पीड़ा समझते हुए हरसंभव मदद की, वह भी बिना किसी स्वार्थ के और सिद्ध कर दिया कि मानव होकर अगर मानव की मदद न की तो मानव कैसा?
—हरेन्द्र प्रसाद साहा
नयाटोला,कटिहार (बिहार)
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