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मदर टेरेसा पर उठा विवाद अभी थमा भी नहीं है कि एक ईसाई संगठन से जुड़े कैथोलिक पादरी पी़ बी़ लोमियो की हाल ही में आई पुस्तक 'ऊंटेश्वरी माता का महंत' ने ईसाई समाज के अंदर चर्च की कार्यशैली पर कई गंभीर सवाल उठा दिये हैं।
'ऊंटेश्वरी माता का महंत' पुस्तक एक (सोसाइटी ऑफ जीसस) कैथोलिक पादरी की है, जिन्होंने अपने जीवन के 38 वर्ष कैथोलिक चर्च की भेड़शालाओं का विस्तार करने में लगा दिए। यह चर्च की मतान्तरण संबंधी नीतियों का परत दर परत खुलासा करती है। साथ ही चर्च नेतृत्व का फरमान न मानने वाले पादरियों और ननों की दुर्दशा को बड़ी ही बेबाकी से उजागर करती है। इसमें कैथोलिक चर्च व्यवस्था, रोमन कूरिया, जेसुइट कूरिया पर कई सवाल खड़े करते हुए उत्तरी गुजरात के कुछ हिस्सों में चर्च द्वारा अपनी भेड़शालाओं को बढ़ाने का चौंकाने वाला खुलासा भी किया गया है।
लोमियो लिखते हैं कि फादर एंथोनी फनांर्डीज को वनवासियों व मूल निवासियों को 'यीशूपंथी' बनाने के काम पर लगाया गया था। उन्होंने जब वस्तुस्थिति का सामना किया तो उन्हें मिशनरियों की कुटिलता और धोखेबाजी का आभास होता गया। फादर एंथोनी इस तथ्य से बहुत आहत थे कि विदेशी मिशनरियों का मुख्य उद्देश्य, उत्तरी गुजरात के वनवासियों और अनुसूचित जातियों का कन्वर्जन करवाना ही था, चाहे इसके लिए कोई भी नीति क्यों न अपनानी पड़े। जबकि जिस सेवा और विकास की बात वे करते हैं उससे उन्हें कोई भी लेना -देना नहीं है। सभी योजनाएं, चाहे वे समाज सेवा, शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाएं ही क्यों न हों केवल वनवासियों को अपने पाश में लेने के ही साधन हैं। उत्तरी गुजरात का अधिकतर क्षेत्र कम वर्षा वाला रहता है। यहां के गरीब किसानों और वनवासियों को 'कन्वर्ट' करने के लिए मिशनरियांे को बड़ी तादाद में जुटा दिया गया। लेकिन जब उन्हें इन देशी-विदेशी मिशनरियों की साजिशों का पता चला तोे उनका पुरजोर विरोध करने के उपाय तलाशने शुरू कर दिए।
ईसाइयत की शुरू से ही इच्छा रही है कि वह पूरी दुनिया समेत भारत में भी पोप का साम्राज्यवाद स्थापित करे और उनका यह कार्य सतत चल रहा है। भारत में अगर कोई पादरी या नन ईसाई व्यवस्था के विरुद्ध कोई टिप्पणी करते हैं तो उनका हाल भी फादर एंथोनी फनांर्डीज जैसा ही होता है, क्योंकि चर्च व्यवस्था में मतभिन्नता के लिए कोई स्थान नहीं है। इसी कारण भारत में कैथोलिक चर्च को छोड़ चुके सैकड़ों पादरी और नन चर्च व्यवस्था के उत्पीड़न से बचने के लिए 'कैथोलिक चर्च रिफॉर्मेशन मूवमेंट (केसीआरएम) का गठन कर रहे हैं। केरल में पिछले दिनों पूर्व पादरियों और ननों ने एक बड़ा आंदोलन करके चर्च के मठाधीशों के विरुद्ध आक्रोश प्रकट किया। फादर एंथोनी फनांर्डीज को भी ईसा की तरह सलीबी पर लटकाने का लम्बा षड्यंत्र चल पड़ा। इस संघर्ष में वह अकेले थे। उनके साथ कोई कारवां नहीं था। ईसा के शिष्य भी उन्हें शत्रुओं के हाथ सौंप कर भाग गये थे और जिस यहूदी मत के उद्धार के लिए वे सक्रिय थे वही जनता रोमन राज्यपाल पिलातुस से ईसा को सलीब पर चढ़ाये जाने के लिए प्रचण्ड आन्दोलन कर रही थी। यही हुआ था ऊंटेश्वरी माता के इस महंत फादर फनांर्डीज के साथ।
इस पुस्तक में स्पेनिश मिशनरियों द्वारा अपनाई गई ऊंट की चोरी करने की नायाब तरकीब बताई गई है। इस चोरी की विधि में केवल ऊंट ही नहीं चुराया जा सकता है अपितु ऊंटपालकों की जर-जमीन, मान-मर्यादा, मत-संस्कृति आदि सभी पर हाथ साफ किया जा सकता है। यहां तक की आदिकाल से चली आई सामाजिक एकता और समरसता को भी आसानी से विभाजित किया जा सकता है।
पुस्तक में चर्च के साम्राज्यवाद का जिक्र जिस तरीके से किया गया है उसे पढ़कर भारतवासियों की आंखें खुल जाएंगी। पुस्तक बताती है कि भारत में वेटिकन की 'समानान्तर सरकार स्वतंत्रता से पूर्व 1945 में ही स्थापित हो गई थी (तब यहां कैथोलिक बिशप्स कान्फ्रेंस ऑफ इण्डिया का गठन हो गया था तथा वेटिकन का राजदूत नियुक्त हो गया था)। भारत सरकार और राज्य सरकारों तथा उच्चाधिकारियों पर इसकी कितनी मजबूत पकड़ है, यह भी इस पुस्तक में स्पष्ट रूप दिख सकता है। समाज सेवा, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा के खेल द्वारा यह समानान्तर सरकार जनता द्वारा चुनी गई सरकारों को अपने जेब में किस तरह और किस ठसक से रखती है, इसकी कल्पना करना मुश्किल है। इस कार्य में मीडिया भी अपना अहम रोल अदा करता है। पुस्तक उन लोगों को अवश्य ही पढ़नी चाहिए जो राष्ट्रीयता, स्वाभिमान और सार्वभौमिकता के मायने समझते हैं और जो पंथों-मतों की चारदीवारी में कैदी जीवन बिता कर कूपमण्डूक स्थिति में जीवित रहकर, स्वयं को सार्वभौम समझे हैं। यह सत्य है कि आज देश में ईसाई मिशनरियां वनवासी क्षेत्रांे में कन्वर्जन का कार्य खुलेआम कर रही हैं। लालच,भय या शिक्षा, चिकित्सा के नाम पर लोगों को कन्वर्ट किया जा रहा है। इस पुस्तक में उन ईसाइयों की भी चर्चा है जिनकी देश में स्थिति दयनीय है। जो मिशनरियां सेवा की बात को डंके की चोट पर कहती हैं, वे अपनी बात आने पर मुंह सिल लेती हैं। पुस्तक के एक खंड में मतान्तरित ईसाइयों की दयनीय स्थिति और चर्च नेतृत्व एवं विदेशी मिशनरियों द्वारा भारत में कन्वर्जन के लिए अपनाई जाने वाली घातक नीतियों और चर्च के राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क का खुलासा करती है तो आज की परिस्थितियों का सही आकलन भी इसमें है।
पुस्तक का नाम – ऊंटेश्वरी माता का महन्त
लेखक – पी.बी. लोमियो
प्रकाशक – जे.के इन्टरप्राईिजज
डब्ल्यू बी 27, प्रथम तल शकरपुर, दिल्ली -92
मूल्य – 300 रु.
पृष्ठ – 184
फादर फर्नांडीज लिखते हैं कि मत-पंथ की स्थापना, मानव समाज को विस्फोटक स्थिति से बचाए रखने के लिए हुई है। लेकिन जब यह 'सेफ्टी डिवाइस' (रक्षा उपकरण) गलत और अहंकारी लोगों की निजी संपत्ति बन जाते हैं, तो मानवता के लिए खतरा बढ़ जाता है। वर्तमान समय में, ऐसे ही स्वयंभू मजहबी और पांथिक माफियाओं की जकड़ में प्राय: प्रत्येक मत और मजहब आ गए हैं। पुस्तक उन लोगों को जरूर पढ़नी चाहिए जो मानते हैं कि देश में ईसाई मिशनरियां सेवा कर रही हैं। इस पुस्तक के पढ़ने के बाद उनको मिशनरियों की कथित सेवा और उसके पीछे के षड्यंत्र का पता चल जायेगा। आर.एल.फ्रांसिस
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