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विवेक शुक्ला
क्या आपने भी महसूस किया कि अचानक से समूचे उत्तर भारत में भगवती जागरण के आयोजन कम हो रहे हैं़.़ ये जागरण विशाल ही होते थे। छोटे के लिए कोई जगह नहीं थी। कुल मिलाकर हर पोस्टर का संदेश यह रहता था कि 'मेरा जागरण, तेरे जागरण से बड़ा'। पोस्टर में भगवती मां का एक चित्र। उसके बाद जागरण स्थल,समय और जागरण पार्टी की जानकारी। सबसे नीचे जागरण में सहयोग देने वालों के नामों की लंबी कतार।
वक्त करवट ले रहा है। और अब बीते पांच-छह सालों से तो चैत्र और शारदीय नवरात्रों में भी ये किसी भी इलाके में कम ही होने लगे हैं। इनकी संख्या तेजी से कम हो रही है। भगवती के गुणगान के लिए रतजगा ने स्थान ले लिया है या कहें कि ले रहे हैं मां की चौकी ने या साईं संध्या ने। साईं संध्या का असर चौतरफा है। इन दोनों का श्रीगणेश शाम 6.30 बजे के आसपास शुरू होता है और 9.30 बजे तक भोग लगने का माहौल बनने लगता है। उसके बाद डिनर।
भगवती जागरण नेपथ्य में कैसे धकेल दिए गए? क्यों भगवती जागरण की दशकों से चल रही बादशाहत देखते ही देखते खत्म होने लगी? प्रख्यात समाजशास्त्री और नाटककार डा़ प्रताप सहगल को भी इस बदलाव से हैरत है वे बीते पचास सालों से जागरण या जगराते के उभार से उतार के दौर को करीब से देख रहे हैं।
डा़ सहगल कहते हैं कि 60 के दशक से राजधानी में पंजाबी समाज ने देश को एक प्रकार से तोहफा दिया जागरण का। तीस-पैंतीस सालों तक जागरण रूपी इस धार्मिक अनुष्ठान को कहीं से कोई चुनौती नहीं मिली। इसका एकछत्र राज रहा। अखंड रामायण या सुंदरकांड इसके असर के सामने कभी नहीं टिक पाए। हरेक शुभ कार्य से पहले या किसी मन्नत के पूरा होने पर जागरण का आयोजन होने लगा।
नौजवानों की घटती दिलचस्पी
पर आर्थिक उदारीकरण के बाद देश बदला। शहर बड़े होते गए, फैलते गए। नौकरियों का चरित्र भी बदल गया। सुबह 10 से पांच बजे की नौकरियां सिकुड़ने लगीं। जागरण के दौरान किसी भक्त को माता के आने से लेकर जागरण टोली की अरदास के नाम पर लूट और इस तरह के बहुत से कारणों के चलते लोगों के पास रतजगा करने का वक्त घटता गया।
नए भारत के नौजवानों को तो इसमें कभी भी खास दिलचस्पी नजर नहीं आ रही थी। दिल्ली, हरियाणा, पंजाब वगैरह में अपनी जागरण पार्टी के साथ बीते दशकों से जागरण और अब माता की चौकी के कार्यक्रम कर रहे महंत इंदरजीत मलिक ने माना कि नौजवान पूरी रात जागरण में नहीं बैठते। अब तो जागरण में रात 11 बजे के बाद परिवार के सदस्य ही रह जाते हैं। हालांकि वे जागरण के आयोजनों में कमी के लिए पुलिस को भी दोषी मानते हैं। 'पुलिस हमें 10-11 बजे के बाद लाउडस्पीकर बजाने ही नहीं देती। इसलिए चौकी का चलन शुरू हो गया है।' वे हमें समझाते हैं।
बहरहाल,बदले दौर में इस बात की संभावना कम है कि भगवती जागरण के लिए पुराना दौर लौटेगा। अब बीच-बीच में तो जागरण होते रहेंगे पर विशाल भगवती जागरण की परम्परा समाप्ति की तरफ है। डा़ प्रताप सहगल कहते हैं कि हालांकि वैष्णो देवी के दर्शनों के लिए जाने वालों की तादाद बढ़ रही है, पर भगवती जागरण को लेकर भगवती के भक्तों के दूर होने से साफ है कि इसमें आ गईं गड़बडि़यों और सडांध के चलते ही श्रद्घालुओं ने दूसरी तरफ रुख कर लिया है।
श्रद्धा के दाम
भगवती जागरण- 15 हजार रुपये से पांच लाख रुपये। जितना बड़ा कलाकार उतनी मोटी उसकी फीस। अगर उसका संबंध बॉलीवुड से है तो मान कर चलिए कि बात लाखों रुपये तक पहुंच जाएगी। अगर अनुराधा पौडवाल, सोनू निगम, नरेन्द्र चंचल, सुखविंदर जैसे कलाकार आएं तो मोटे खर्चे के लिए तैयार रहे। ये वैसे पूरी रात नहीं गाते। दो-ढाई घंटे के बाद निकल जाते हैं। कुल मिलाकर ये किसी जागरण में दो-तीन घंटे के लिए आते हैं। शेष समय स्थानीय टोली ही रहती है। ये ही 'आर्केस्ट्रा' से लेकर दरबार की व्यवस्था करती है।
माता की चौकी के दाम 10 हजार रुपये से एक लाख रुपये तक रहते हैं। हां, बड़ा कलाकार आपका खर्च बढ़ा सकता है। साईं संध्या में भाग लेने वाली टोलियों के भाव माता की चौकी वाले ही होते हैं। दरअसल, वक्त के साथ इन टोलियों ने समझौता कर लिया।
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