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मांझी का इस्तीफा, नीतीश बेनकाब

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Feb 21, 2015, 12:00 am IST
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दिंनाक: 21 Feb 2015 14:32:50

पटना से संजीव कुमार
बिहार में विधायकों की सुरक्षा और सम्मान को देखते हुए जीतन राम मांझी ने विधानसभा सत्र शुरू होने से पूर्व ही 20 फरवरी को इस्तीफा दे दिया। इसके बाद से बिहार विधानसभा को स्थगित कर दिया गया है, लेकिन मांझी नई सरकार के गठन तक कार्यवाहक मुख्यमंत्री बने रहेंगे। इस पूरे प्रकरण में मांझी नीतीश के असली चेहरे को उजागर करने में सफल रहे।

सत्र शुरू होने से पूर्व ही मुख्यमंत्री मांझी ने दिया इस्तीफा
अगले मुख्यमंत्री के पद संभालने तक बने रहेंगे मांझी कार्यवाहक मुख्यमंत्री
बिहार में नीतीश की अवसरवादी राजनीति ने पैदा की अस्थिरता
नीतीश की मनमानी पर न लालू प्रसाद का बयान आया, न लोकतंत्र के 'पक्षधरों' का

मांझी ने अपने संबोधन में कहा, 'बिहार विधानसभा के भीतर लोकतंत्र की मर्यादा तार-तार हो रही थी। मैंने जब विधायकों के बैठने की व्यवस्था देखी तो कई खामियां नजर आईं। विपक्ष के नेता नंदकिशोर यादव को सही जगह नहीं दी गई थी। मुख्यमंत्री होने के नाते मैंने सचेतक के माध्यम से व्हिप जारी कराया जिसे लेकर भी तीखी प्रतिक्रिया की गई। न जाने विधानसभा अध्यक्ष किसके इशारे पर असंवैधानिक कार्य कर रहे थे। वहां तो हालात मारपीट तक होने के बन रहे थे।
 रात में विधायकों को धमकी दी जा रही थी। रामेश्वर पासवान के घर पर बगैर उनकी अनुमति के 10 अज्ञात लोग रह रहे थे। चारों ओर खौफ का वातावरण तैयार किया जा रहा था। ऐसे में विधायकों की सुरक्षा और सम्मान को देखते हुए मैंने इस्तीफा देना ज्यादा उचित समझा। मेरा आज भी दावा है कि अगर गुप्त मतदान हो तो 140 से अधिक विधायक मेरे साथ हैं, लेकिन हंगामे और मर्यादाहीन आचरण के माध्यम से सत्ता में बना रहना अनैतिक है।'
मांझी ने आगे कहा, 'इस पूरे प्रकरण में नीतीश की छवि तार-तार हो गई। उनके आसपास पैसे की राजनीति करने वाले लोगों का जमावड़ा है। मैं सदा उनका सम्मान करता रहा हूं, लेकिन वे जिस प्रकार के लोगों से घिर गए थे उसमें बिहार के विकास के लिए काम करना असंभव था। मैं उनको धन्यवाद देना चाहता हूं क्योंकि मैंने उनसे मुख्यमंत्री बनने के लिए कोई पैरवी नहीं की थी, लेकिन उन्होंने मुझ पर भरोसा किया और मुख्यमंत्री का पद सौंपा।
मैंने भी दो माह तक काफी मिल-जुल कर शासन चलाया, लेकिन जब काम करना असंभव हो गया तो मैंने अपने विवेक से निर्णय लेना शुरू किया और यहीं से हमारे ऊपर आक्रमण होने लगे। नीतीश कुमार भीष्म पितामह की तरह मेरी इज्जत तार-तार होते देखते रहे। जद (यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने गत 6 फरवरी को मुझसे कहा कि इस्तीफा देकर विधायक दल की बैठक में नीतीश का नाम आगे करोे। इस पर मैंने साफ मना कर दिया। मैंने कहा कि किसी सरकारी सेवक को हटाने से पहले स्पष्टीकरण मांगा जाता है। मेरा कसूर क्या है, जो मुझे हटाया जा रहा है?'
मांझी का कहना था कि बिहार में वंचितों के साथ हमेशा भेदभाव होता रहा है। उनसे पूर्व भोला पासवान शास्त्री तीन-तीन बार मुख्यमंत्री बने। रामसुंदर दास भी मुख्यमंत्री बने, लेकिन उनकी तरह उन लोगों को भी अपमानित होकर पद छोड़ना पड़ा था। वे जब मुख्यमंत्री बने थे तो सामाजिक न्याय के पैरोकार बनने वाले लालू प्रसाद यादव ने प्रसन्नता जाहिर करते हुए कहा कि वंचित का बेटा मुख्यमंत्री बना है, लेकिन पिछले 15 दिनों से उनके बोल सुन लिजिए। लिहाजा आज उन्होंने विधायकों की गरिमा और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सुबह साढ़े दस बजे राज्यपाल को इस्तीफा दे दिया।
उल्लेखनीय है कि गत 6 फरवरी से बिहार की राजनीति में शुरू हुआ 'हाई-वोल्टेज ड्रामा' 20 फरवरी को एक महत्वपूर्ण पड़ाव पर आ गया। नीतीश कुमार को ईमानदार एवं स्वच्छ छवि का राजनेता माना जाता है, लेकिन लोकतांत्रिक प्रक्रिया अपनाने वाले नीतीश का अंदरूनी चेहरा कितना विद्रुप है, यह इस पूरे प्रकरण में सामने आया। गत अक्तूबर माह से दोनों के रिश्तों में खटास आने लगी। मांझी ने नीतीश के साये से निकल कर फैसला लेना शुरू किया तो विवाद और बढ़ा। आदतन नीतीश ने उनसे बात करना छोड़ दिया और जद (यू) के प्रवक्ताओं के माध्यम से उन पर हमला बोलना शुरू किया। जद (यू) प्रवक्ता डॉ़ अजय आलोक ने बिहार के वरिष्ठ समाजवादी नेता तथा राज्य के कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह को भाजपा में शामिल होने की नसीहत दे डाली। वहीं साधु यादव के घर मकर संक्रांति के दिन चूड़ा-दही खाने पर नीरज कुमार ने मांझी को जमकर खरी-खोटी सुनाई।
जनवरी में मुख्यमंत्री मांझी ने नीतीश के कई करीबी अधिकारियों को उनके पद से हटा दिया। पिछले नौ वषार्ें से गृह-सचिव पद पर काबिज आमिर सुभानी को हटाना नीतीश पर एक बड़ा हमला माना गया जिससे नीतीश बौखला गए। इससे बिहार में जद (यू) दो फाड़ हो चुकी थी। एक खेमा नीतीश के तानाशाही रवैये के खिलाफ बगावत पर आमादा था, वहीं दूसरा नीतीश के सहारे अगली विधानसभा चुनाव की नैया पार करने का भरोसा पाले विधायकों का दल था। पराकाष्ठा तब हुई जब मांझी ने नीतीश कुमार के सबसे करीबी राज्य के पथ निर्माण विभाग मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को झटका देना शुरू किया। पहले उन्होंने ललन सिंह के विभागीय सचिव की छुट्टी की और जनता दरबार में पथ निर्माण विभाग के कार्य पर असंतोष जाहिर किया।
'डैमेज कंट्रोल' के तहत नीतीश के इशारे पर शरद यादव पटना पहंुचे और मांझी को हटाने की कोशिश शुरू हो गई। मुख्यमंत्री ने जद (यू)के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव को ठेंगा दिखाते हुए पलटवार शुरू किया। शरद यादव द्वारा विधायक दल की बैठक बुलाने के औचित्य पर सवाल लगाते हुए मांझी ने कैबिनेट की बैठक में विधानसभा भंग करने की अनुशंसा कर डाली। इसके पूर्व उन्होंने मंत्री ललन सिंह एवं पर्यावरण, वन, योजना एवं विकास मंत्री पी़ के. शाही को बर्खास्त करने की अनुशंसा की तो नीतीश खेमे ने मुख्यमंत्री को ही पार्टी से बर्खास्त कर दिया। शेष सात मंत्रियों को भी जद (यू) ने गत 17 फरवरी को पार्टी से निलंबित कर दिया।
इधर भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने नीतीश पर हमला बोलते हुए कहा कि मंत्रियों को खरीदने में विफल रहने पर जद (यू) ने उन्हें पार्टी से निलंबित किया। जद (यू) देश की पहली पार्टी है, जिसने अपने ही मुख्यमंत्री, मंत्रियों और विधायकों को बर्खास्त करने का इतिहास रचा है। 

 

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