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गांवों को लेकर लोगों के मन मस्तिष्क में एक अलग ही दृश्य कौंधता है, यह दृश्य होता है गांव में पसरी गंदगी, सुविधाओं की कमी का और ऊबड़-खाबड़ रास्तों का। भारत में गांवों की तस्वीर यही है लेकिन अगर मनुष्य ठान ले तो अपने घर से लेकर समाज तक की तस्वीर बदल सकता है। कुछ ऐसा ही उदाहरण प्रस्तुत किया है वीरमपुरा के ग्रामीणों ने। मध्यप्रदेश के मुरैना में स्थिति वीरमपुरा गांव जिला केंद्र से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। वीरमपुरा जाने के लिए पहले मुरैना पहुंचना पड़ता है। इसके बाद जौरा रोड पर लगभग 11 किलोमीटर चलने के बाद गांव सेठबारी (बागचीनी चौराहे से पहले) से उत्तर दिशा या दाहिने हाथ की तरफ एक पक्की सड़क वीरमपुरा की तरफ जाती है।
हम जब इस गांव में पहुंचे तो यहां की तस्वीर बिल्कुल अलग थी। हमने देखा, सड़कें बनी हुई हैं गंदगी का नामोनिशान तक नहीं है गांव वालों के चेहरे पर प्रसन्नता की चमक स्पष्ट दिखाई दे रही है। भारत में हमेशा मानव प्रगति का आधार गांव ही रहा है, गांव की सनातन काल से चली आ रही एक ऐसी अनवरत परंपरा है जिसकी अनदेखी जहां भी हुई वहां का जनजीवन मृत प्राय: सा हो गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्कारों से प्रेरित होकर कई कार्यकर्ता आज देश के अनेक हिस्सों में गांव के विकास की कहानी को चरितार्थ करते हुए दिखाई दे रहे हैं। ऐसे अनेक गांव हैं जहां संघ की किरण हर घर में दिखाई देती है, वर्तमान के संकुचन भरे वातावरण में जहां हर व्यक्ति केवल अपने तक सीमित होकर रह गया है, वहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने 'मेरा घर, मेरा गांव और मेरा देश की परिकल्पना को सार्थकता प्रदान की है।
श्री नानाजी देशमुख ने अपने बलबूते पर ग्राम विकास की जो अवधारणा देश के समक्ष प्रस्तुत की है, वह अतुलनीय है, साथ ही भारत के भाग्य को उदित करने वाली एक सार्थक राह भी है। गत दो दशकों से संघ स्वयंसेवकों ने ग्राम विकास को केंद्र मानकर ठोस प्रयास प्रारम्भ किए हैं। उनके इस प्रयास को तीन श्रेणियों में विभक्त किया गया है। पहला 'किरण ग्राम' जिसके अंतर्गत गांव में विकास का चिंतन आरंभ हुआ माना जाता है, इसी प्रकार दूसरा 'उदय ग्राम' इसकी परिधि में वे ग्राम आते हैं जहां ग्राम विकास के कार्यों का परिणाम दिखाई देने लगा हो, तथा तीसरे नंबर पर आता है, प्रभात ग्राम। इस प्रकार के गांवों से आसपास के गांव भी प्रेरणा प्राप्त करते हैं और आसपास के ग्राम में भी उसी प्रकार के कार्यों को करने की कोशिश करते हैं। इन ग्रामों की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि यहां के निवासी किसी भी कार्य के लिए सरकार या प्रशासन के भरोसे नहीं रहते, वे स्वयं ही अपने गांव के लिए विकास कार्य करते हैं, चाहे वह आर्थिक सहयोग से किए जाने वाला कार्य हो अथवा शारीरिक श्रम वाला कार्य।
मुरैना जिले के अंतर्गत आने वाले ग्राम वीरमपुरा गांव को भी आज प्रभात ग्राम की सूची में स्थान मिला हुआ है। यह गांव आज पूरी तरह से विवाद मुक्त है। जिस थाना परिधि में यह गांव सूचीबद्ध है, वहां के पुलिसकर्मी भी कई बार आश्चर्य से कहते हैं कि वीरमपुरा गांव हमारे थाने में आता है, लेकिन इस गांव का कोई भी व्यक्ति आज तक हमारे थाने में नहीं आया, इस कथानक को गांव के नागरिक बहुत ही गर्व के साथ सुनाते हैं। गांव के लोग आपसी विवादों को मिल बैठकर सुलझाते हैं। इसके लिए गांव में एक समिति बनी हुई है। जिसमें गांव के बुजुर्ग व सम्मानित लोग बैठकर गांववालों के हितों को ध्यान में रखते उनके विवादों का निपटारा करवाते हैं। वीरमपुरा गांव के निवासियों द्वारा इस प्रकार के कार्यों से प्रेरणा लेकर आसपास के गांवों में भी इसकी पहल होने लगी है। पास ही स्थित गांव हड़वान्सी के नागरिकों ने भी अपने गांव में प्रभात फेरी निकालना प्रारम्भ कर दिया है। अन्य गांवों में व्यापक पहल का सूत्रपात हुआ है। दस वर्ष से संघ शाखा से अनुप्राणित वीरमपुरा गांव के लहलहाते खेतों को देखकर सहज ही उत्कृष्ट और उन्नत कृषि का आभास होता है, जैविक खेती को गांव के विकास का पर्याय मानने वाले रामगोपाल शर्मा ने अपनी जमीन के कुछ हिस्से में जैविक खेती का सफल प्रयोग करके अच्छी और स्वादिष्ट फसल प्राप्त की है और वे आगे भी इसकी बढ़ोतरी करना चाहते हैं। गांव के अधिकांश कृषक अपनी खेती के लिए जैविक खाद का उपयोग कर रहे हैं। गांव के उत्थान के लिए समर्पित 'शिवशंकर विकास समिति' के सचिव राजेन्द्र शर्मा का कहना है कि विकास के बारे में सारा गांव एक ही तरीके से सोचता है। जो व्यक्ति आर्थिक सहयोग करने में कठिनाई का अनुभव करते हैं, ऐसे लोग स्वयं प्रेरित होकर श्रम दान करने को सहर्ष तैयार रहते हैं। आज हमारे गांव की कहानी समाचार पत्र अथवा पत्रिका में प्रकाशित होती है, तो मन को प्रसन्नता होती है। हमने आगामी एक वर्ष के लिए ग्राम विकास के कुछ लक्ष्य तय किए हैं, जिसमें हर घर में बायोगैस संयंत्र व हर घर में तुलसी का पौधा अवश्य होगा। हर घर में विद्युत की बचत करने के लिए 'सीएफएल' का उपयोग प्राथमिकता में शामिल है। औषधीय पौधों की जानकारी रखने वाले गांव के ही वैद्य मोहन लाल ने अभी छोटे स्तर पर औषधीय पौधों को लगाकर एक सफल प्रयोग किया है, इतना ही नहीं जिन फलों को उगाने की गांव में कल्पना भी नहीं की जाती, ऐसे पौधे भी उन्होंने उगाए हैं।
इस अवसर पर गांव में लगे मौसमी के पेड़ों की चर्चा जरूर की जानी चाहिए, एक पेड़ से तत्काल तोड़कर मौसमी हमें भी खाने को दी गई। वास्तव में हम जो मौसमी बाजार से लेकर खाते हैं उसकी अपेक्षा वह मौसमी उससे कहीं अधिक अच्छी और भरपूर मिठास वाली थी। इसके अलावा अन्य उल्लेखनीय औषधियों वाले पौधों की श्रृंखला भी उनके छोटे से बगीचे में है। सबसे विशेष बात यह है कि इन्हीं पौधों से औषधि बनाकर वे गांव वालों का उपचार करते हैं। वीरमपुरा गांव के निवासी समय के साथ चलते हुए दिखाई देते हैं। संचार माध्यमों से प्राप्त जानकारियों से इस गांव के निवासी पूरी तारतम्यता बनाए हुए दिखते हैं। वदेश और विदेश की हर घटना की जानकारी रखते हैं, इसके लिए गांव वाले समाचार पत्र खरीदते हैं। गांव के हर घर में डिश टीवी है जिसके माध्यम से वे समाचार चैनलों से समाचार भी सुनते हैं और स्वयं का ज्ञानवर्धन करते रहते हैं। ल्ल
30 साल पहले हुई शुरुआत
यूं तो ग्राम वीरमपुरा को स्वावलंबी बनाने की पहल 30 साल पहले ही हो चुकी थी। जब इस गांव में प्रसिद्ध गांधीवादी एस. एन. सुब्बाराव के कदम पड़े, तब उन्होने इस गांव की स्थिति को देखकर सोचा कि यहां के लोगों को लेकर ही कायाकल्प की रचना करनी होगी। श्री सुब्बाराव जी ने गांव वालों को प्रेरित किया और ग्रामीणों के श्रम पर वीरमपुरा की सड़क तैयार करवाई। इसके बाद लंबे समय तक सुब्बाराव जी इस गांव में नहीं आए, और लोग लगभग निष्क्रिय से हो गए, गांव अपनी पुरानी अवस्था की ओर बढ़ रहा था, अचानक संघ के एक कार्यकर्ता देवेंद्र शर्मा की नजर इस गांव की ओर गई। उन्होने गांव को स्वावलंबी बनाने के प्रयास पुन: प्रारम्भ किए। आज उसके सार्थक परिणाम दिखने प्रारम्भ हो गए हैं। संघ की पहल पर गांव के नागरिक फिर से ग्राम विकास की कल्पना को सार्थकता प्रदान करते दिखाई देते हैं।
धार्मिक गतिविधियों में भी आगे
वीरमपुरा में ग्राम विकास की कल्पना के साथ ही धार्मिक गतिविधियों का संचालन किया जाता है। इसके लिए गांव में भगवान का लेते हुए गांव के लोग ढोल मंजीरे बजाते हुए प्रभात फेरी निकालते हैं। इसके अलावा गांव में नियमित रूप से रामायण का पाठ भी किया जाता है। गांव की महिलाएं भी किसी प्रकार से इसमें पीछे नहीं रहती हैं, वे भी नियमित रूप से भजन कीर्तन करती हैं। सबसे अच्छी बात तो यह है कि गांव वालों ने आपस में ही मिलकर गांव के मुहाने पर एक मंदिर का निर्माण करा दिया है, जिसको भव्य रूप देने का कार्य लगातार जारी है।
वीरमपुरा गांव में हुए कुछ उल्लेखनीय कार्य
अधिकांश घरों में शौचालय
पूरे गांव के लोगों द्वारा नियमित रामायण पाठ
महिलाओं द्वारा प्रति मंगलवार को भजन कीर्तन
पूरी तरह से शराब मुक्त गांव, आपस में कोई विवाद नहीं
समाचार पत्रों का नियमित अध्ययन
अपने घर और खेतों में पांच- पांच पौधे लगाने की परंपरा
घरों में गोबर गैस संयंत्र का उपयोग
गांव की सड़कों और नालियों को अपने श्रम और पैसे से बनवाया
गांव के लोगों ने मिलकर मंदिर का निर्माण करवाया
मुक्ति धाम (श्मशान घाट) का जीर्णोद्धार
गांववालों द्वारा नियमित रूप से निकाली जाने वाली प्रभात फेरी
-सुरेश हिन्दुस्थानी
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