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ख्वाजा मोहम्मद आसिफ पाकिस्तान के रक्षा मंत्री हैं और रहमान मलिक पूर्व गृहमंत्री। इन दो व्यक्तियों के ताजा बयानों को आस-पास रखें तो एक देश के तौर पर पाकिस्तान का 'धूर्त' चेहरा उभरता है। इसके बाद भी मुल्क की तस्वीर पूरी तरह साफ ना हो तो बात दक्षेस और प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से शुरू कीजिए। काठमांडू में शिखर सम्मेलन के मंच पर जिस समय नवाज शरीफ इन देशों के क्षेत्रीय मसलों में चीनी दखल बढ़ाने की पैरोकारी कर रहे थे संभवत: उसी समय ख्वाजा आसिफ अगले दिन दिए जाने वाले अपने भाषण को अंतिम रूप दे रहे थे।
दक्षिण एशियाई देशों के मंच से ड्रेगन को जोड़ने की पाकिस्तानी मंशा का बेशर्म खुलासा होने के अगले ही दिन आसिफ इस्लामाबाद में यह कहते दिखे कि 60-70 के दशक से दोस्त रहा अमरीका अब और भरोसे के काबिल नहीं रहा। इस्लामी आतंक के खिलाफ अमरीकी अभियानों से व्यथित पाकिस्तान की छटपटाहट को समझने के लिए अब देखिए रहमान मलिक का बयान, जो इसके ठीक एक दिन बाद आया। मलिक के अनुसार, पाकिस्तान में खूंखार आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट की मौजूदगी के दस्तावेजी सबूत हैं और संभव है कि तालिबानी नेताओं में से जल्द ही किसी को इसका पाकिस्तानी प्रमुख नामित किया जाएगा। उन्होंने साथ ही यह तथ्य भी रेखांकित किया कि सरकार इन आतंकियों को पकड़ने के लिए कोई ध्यान नहीं दे रही। यह है पाकिस्तान। धोखा, साजिश और इस्लामी उन्माद का पालना।
अमरीका को दशकों से दोस्त बताते-बताते अचानक पलटी मारना। चीन का पल्लू सिर्फ इसलिए पकड़ना कि भारत के मुकाबले पालेबंदी की जा सके और इस्लामी आतंकवाद से त्रस्त दुनिया में खुद को वहाबी आतंक की पनाहगार बनाए रखना। पाकिस्तान के ये ऐसे चरित्रगत लक्षण हैं जो उसे कभी एक देश के तौर पर व्यवहार करने ही नहीं देते और मुल्क इस्लामी षड्यंत्रकारी की वैयक्तिक भूमिका से ऊपर उठ ही नहीं पाता। जब देश व्यक्ति की तरह व्यवहार करे तो दिक्कत दुनिया के लिए होती है। ऐसे में जरूरी है कि आतंक और अहिष्णुता से परेशान विश्व भी पाकिस्तान का मूल्यांकन एक देश की बजाय सोच के तौर पर करे। पूरी दुनिया के लिए यह वक्त कट्टर, उन्मादी, मानवता विरोधी सोच को खारिज करने और सहिष्णु-सहयोगी सोच को अपनाने का है।
संयोग से एक का प्रतिनिधित्व पाकिस्तान करता है तो दूसरी का भारत। नेपाल, बर्मा, भूटान, श्रीलंका, बंगलादेश और खुद पाकिस्तान की सांस्कृतिक विरासत के सूत्र ऐसे हैं जो इन देशों के समाज को जोड़ने का दम रखते हैं। मगर इस्लामी कट्टरता की चादर फैलाने के लिए बेचैन पाकिस्तान को यह मंजूर नहीं। उसके लिए सभी मत-पंथों का आदर करने वाला सहिष्णु हिन्दू दर्शन खतरा है। भारत उसके लिए खतरा है।
26/11 और वैश्विक आतंकवाद के मुद्दे पर मौन साधे जिस सप्ताह पाकिस्तान की सत्ता दक्षेस के मंच पर संकीर्ण चालें चल रही थी उस वक्त भारत में अनूठा वैश्विक विचार-कुंभ लगा था। दुनिया के लिए यह सृष्टि से साम्य रखने वाली हिन्दू जीवन दृष्टि के साक्षात्कार का मौका था।
दुनिया भर से आए प्रतिभागियों और मीडिया ने हिन्दुत्व के दर्शन को राज और समाज जीवन के विविध आयामों में तौलकर देखा और संतुष्ट हुए। सबको साथ लेकर चलने के आह्वान के साथ हिन्दू कांग्रेस का प्रारंभ हुआ और सबके कल्याण की कामना के साथ विश्व आयोजन संपन्न हुआ। इस त्रिदिवसीय आयोजन के केन्द्र में स्थापित सर्वहितकारी सोच की तुलना 'काफिरों को कत्ल' करने में यकीन रखने वालों से होनी चाहिए। विचार मंथन का अमृत सिर्फ भारत तक ना रहे, एशिया से आगे पूरे विश्व तक मानव कल्याणकारी सोच की ये बूंदें जाएं, यह आवश्यक है।
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