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श्री अटलबिहारी वाजपेयी का भाषण
लखनऊ। 'कांग्रेस के दु:शासन से त्रस्त जनता को सुराज्य,राष्ट्रीय एकात्मता तथा आर्थिक समता की महान त्रिवेणी का साक्षात्कार कराने के लिए भारतीय जनसंघ बद्धपरिकर है।'ये शब्द भारतीय जनसंघ के मंत्री श्री अटलबिहारी वाजपेयी ने लखनऊ में भारतीय जनसंघ के चतुर्थ वार्षिक अधिवेशन के अवसर पर भाषण करते हुए कहे।
उन्होंने कहा कि भारतीय जनसंघ के प्रधान पं.प्रेमनाथ डोगरा के कुछ दिन पूर्व हुए अद्वितीय स्वागत-समारोह ने सिद्ध कर दिया कि जनसंघ की जड़ें जन-जीवन में गहरी जम चुकी हैं। सत्तारूढ़ कांग्रेस दल की गलत तथा मनमानी रीति नीतियों पर अंकुश लगाने का विरोधी दल का कार्य जनसंघ ही सफलतापूर्वक कर सकता है।
कम्युनिस्ट किंकर्तव्यविमूढ़
इस सम्बन्ध में प्रजा समाजवादी दल तथा कम्यूनिस्ट पार्टी की असफलता का उल्लेख करते हुए आपने कहा कि जहां एक ओर प्रजा समाजवादी दल की वैचारिक भ्रामकता तथा पारिवारिक फूट प्रसिद्ध है। वहां दूसरी ओर पंडित नेहरू की रूस यात्रा तथा रूसी नेताओं की भारत यात्रा के बाद से भारत की कम्युनिस्ट पार्टी की किंकर्तव्यविमूढ़ता भी भलीभांति स्पष्ट है। कम्युनिस्टों को समझ में नहीं आ रहा है कि वो क्या करें। नेहरू सरकार का विरोध करें तो दिल्ली-मास्को की मित्रता पर असर पड़ता है। और न करें तो भी काम नहीं बनता है। इस प्रकार उनकी स्थिति बिल्कुल त्रिशंकु जैसी है।
राष्ट्रवादी संस्थाओं का विलय
श्री अटल जी ने कहा कि ऐसी स्थिति में जनसंघ ही मैदान में बचता है जो जनता को उसका मनोवांछित लक्ष्य प्राप्त करा सकता है। हिन्दू महासभा,रामराज्य परिषद् तथा भारतीय जनसंघ को मिलाकर एक नया दल बनाने का प्रयास इसी दृष्टि से चल रहा है। जनसंघ अपने स्वतंत्र अस्तित्व का मोह छोड़ने को तैयार है। यदि हिंदू महासभा तथा रामराज्य परिषद् के लोग भी इस विलय को तैयार हों।…
एकात्मक शासन और आर्थिक समता
आपने कहा कि हमारी दो ही प्रमुख मांगें हैं- एकात्मक शासन और आर्थिक समता। राष्ट्र की एकता और अखंडता की रक्षा यह हमारी मुख्य राजनीतिक मांग है। और सबको काम यह हमारी आर्थिक मांग है। जनसंघ की ये मांगें जनता की मांगें हैं। एकता का भाव जनता के हृदय का भाव है,जनता अलग-थलग राज्य नहीं चाहती। वह तो केवल चहती है- सुराज्य,सुशासन,अच्छा शासन,शुद्ध शासन।…
भारतीय जीवन के साक्षात्कार की आवश्यकता
रूस द्वारा 'सह-अस्तित्व'की स्वीकृति साम्यवाद की पराजय
महामंत्री श्री उपाध्याय का भाषण
लखनऊ। 'साम्यवादी रूस का प्रयोग असफल सिद्ध हुआ है। उसे अपनी नीति में परिवर्तन करने के लिए विवश होना पड़ा है। सोवियत रूस द्वारा सह-अस्तित्व के सिद्धान्त की स्वीकृति साम्यवाद की सबसे बड़ी पराजय और भारतीय संस्कृति के समन्वयवाद की महान विजय है।'ये शब्द अ.भा.जनसंघ के महामंत्री श्री दीनदयाल उपाध्याय ने लखनऊ मे उत्तरप्रदेश भारतीय जनसंघ के चतुर्थ वार्षिक अधिवेशन का उद्घाटन करते हुए कहे।
प्रतिनिधियों को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि आप लोग अपने कर्तव्य का पालन करने के लिए इस अधिवेशन में आये हैं। उत्तरप्रदेश का भारतीय जीवन में अपना स्थान है। राम और कृष्ण की अवतार भूमि है। … भौतिकवादी अमरीका और रूस विश्व का मार्गदर्शन नहीं कर सकते । यह गुरुतर कार्य तो भारत ही कर सकता है। भारत के जीवनदर्शन की ही यह विशेषता है कि वह सत्य के साक्षात्कार के भिन्न-भिन्न रास्तों को स्वीकार करता है। भारतीय संस्कृति के समन्वयवाद की यही आधारशिला है। भारत की सनातन सहिष्णुता तथा उदारता क ा यही रहस्य है। …
नवनिर्माण का आधार भारतीय संस्कृति
श्री दीनदयाल जी ने कहा कि संसार के अन्य अनेक प्राचीन कहे जानेवाले देशों में उनकी पुरातन संस्कृति के दर्शन नहीं होते। उदाहरणार्थ चीन में आज उसकी प्राचीन संस्कृति विद्यमान नहीं है, किन्तु भारत में आज भी प्राचीन संस्कृति और गौरवपूर्ण परम्परा के दर्शन किए जा सकते हैं। अभी भी काफी लोगों की उस पर श्रद्धा है। किन्तु यह बात दूसरी है कि वह जितनी मात्रा में चाहिए, उसका अभाव है। हमारी वर्तमान अनेक समस्याओं का भी यही मूल कारण है। उन्होंने कहा कि आज नवनिर्माण की तो सर्वत्र चर्चा हो रही है किन्तु उसके मूल आधार पर विचार नहीं किया जा रहा। भारतीय जीवन दर्शन तथा संस्कृति के आधार पर ही हम अपने राष्ट्र का वांछित विकास कर सकते हैं। इसके लिए भारतीय संस्कृति तथा आदर्शों की श्रेष्ठता पर पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास की आवश्यकता है।
भारतीय जीवन का साक्षात्कार
उन्होंने कहा कि विचार करने पर पता चलेगा कि एक ही रास्ता है,सब समस्याओं का एक ही हल है। और वह है भारतीय जीवन के सच्चे स्वरूप का साक्षात्कार करना। राष्ट्रोन्नति का अन्य कोई उपाय नहीं है। हमारी वर्तमान अनेकानेक समस्याओं का यही कारण है कि कांग्रेस नेतृत्व देश की समस्याओं का हल भारतीय जीवन के भीतर न ढूंढ़कर उसके बाहर ढूंढ़ने का निरर्थक प्रयास कर रहा है। हमारे विकास के मार्ग में एक ही अड़चन आ रही है। वह यह है कि हम आत्मसाक्षात्कार तो करते ही नहीं बल्कि दूसरों की परित्यक्त तथा तिरस्कृत रीति-नीतियों का अन्धानुकरण करने का निष्फल प्रयत्न करते हैं।…
ध्येयसिद्धि के लिए संपूर्ण समर्पण : श्री गुरुजी
एक साधारण प्रश्न कई बार अपने मन में उठता है कि अंतर्राष्ट्रीयता आदि की इतनी ऊंची-ऊंची बातें करने के पश्चात् केवल कबड्डी और दक्ष-आरम् से क्या होगा? यदि युद्ध में खड़ा होना पड़ गया,तो रायफलों के सामने लाठी से क्या होगा? परंतु रायफल के पीछे जो मनुष्य रहता है,उसी का सामर्थ्य लड़ता है,रायफल का नहीं। यदि मनुष्य का सामर्थ्य योग्य रूप में रहा तो हाथ भर की लकड़ी क्या,नि:शस्त्र प्रजा ही सफलता पाने की पात्रता रखती है। अब तक का यही अनुभव है। इस अनुभव को आंखों के सामने से ओझल नहीं होने देना चाहिए। इसी बात पर अपना आग्रह है। अत: कार्यविस्तार की आवश्यकता होने के कारण एवं उनके अतिरिक्त कोई निष्कर्ष न होने के कारण,इस बात पर अविचल बुद्धि से आगे बढ़ना चाहिए। आगे चलते समय अधूरेपन से काम नहीं चलेगा।…
(श्रीगुरुजी समग्र : खण्ड 2 ,पृष्ठ 194)
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