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राम मनोहर लोहिया ने कभी न सोचा होगा कि आजाद भारत में उनके मानसपुत्र कभी अंग्रेजों की शान की सवारी समझी जाने वाली विक्टोरिया बग्घी में बैठकर अंग्रेजों की परंपरा के अनुसार केक काटेंगे। यह सब कर दिखाया खुद को उनका शिष्य बताने वाले मुलायम सिंह यादव ने, वे लोहिया की विरासत का एकमात्र उत्तराधिकारी होने का दावा करते हुए खुद को 'छोटा लोहिया' कहते या
कहलाते हैं।
डॉ. लोहिया जीवनभर आडंबर व पाखंड का विरोध करने के लिए ही जाने गए। अब ऐसे व्यक्तित्व से रिश्ता जोड़ने वाला और उनके आदर्शों पर चलने का दावा करने वाला शख्स आजम खां जैसे व्यक्ति के मोह में फंसकर जन्मदिन के विलासितापूर्ण जीवनशैली के कुचक्र्र में उलझ जाए तो इस तरह की बहस शुरू होनी तय है। आजम खां ने इस जन्मदिन पर पूरी सौदेबाजी की। आयोजन को सांप्रदायिक रंग से रंगनेे में कोई कसर नहीं छोड़ी। खर्च पर सवाल हुआ तो 'मोस्ट वांटेड' दाऊद व अबू सलेम से पैसा मिलने का उत्तर देकर उन्होंने मुसलमानों को यह संदेश देने की कोशिश की कि हिन्दुस्थान में मुसलमानों का कोई संरक्षक है तो सिर्फ आजम व मुलायम ही हैं। यह कहकर उन्होंने मुसलमानों को यह उलाहना देने की कोशिश की है कि सपा को दाऊद व सलेम जैसे आतंकी चेहरा बनने वाले मुसलमान तक प्रिय हैं।
आजम अब सफाई दे रहे हैं कि विक्टोरिया बग्घी उनकेे भांजे ने इंग्लैंड से भिजवाई थी, लेकिन डॉ. लोहिया के शिष्य ने यह साबित कर दिया कि वह समाजवादी नहीं बल्कि अवसरवादी व सत्तावादी हैं। बसपा की मुखिया मायावती के जन्मदिन पर खर्च होने वाले करोड़ों रुपये उन्हें गरीबों के पेट का निवाला छीनने का काम लगता है, लेकिन जब सत्ता में आते हैं तो बग्घी पर सवार होकर लोकतांत्रिक देश में राजशाही दिखाने में गर्व महसूस होता है। कुछ समय पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की अनुपस्थिति में आजम बिना मुख्यमंत्री को बताए या मंत्रिमंडल का भरोसा लिए कार्यवाहक राज्यपाल कुरैशी के पास जा पहुुंचे। उन्हें रामपुर स्थित मौलाना अली जौहर विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक दर्जा देने और आजम खां को आजीवन कुलाधिपति नियुक्त करने वाली पत्रावली ही नहीं सौंपी, बल्कि उसे मंजूरी भी दिला लाए। मुख्यमंत्री सहित कई प्रमुख लोग आजम की इस कार्यशैली से नाराज भी हुए। इसके बावजूद सपा मुखिया ने आजम की पत्नी तजीम फातिमा को राज्यसभा भेजा। आजम ने यह भी कहा है कि ताजमहल को उत्तर प्र्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड को सौंपा जाए। उनका तर्क है कि मुमताज बेगम सुन्नी थीं। जो आजम इतिहास की घटनाओं का तर्क देकर ताजमहल को वक्फ बोर्ड को सौंपने की मांग कर रहे हैं वही आजम श्री राम जन्मभूमि के मामले में इतिहास को स्वीकार करने से इनकार कर चुके हैं।
विधानसभा के भीतर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेयी के सवाल पर आजम बता चुके हैं कि उ. प्र. वक्फ बोर्ड अधिनियम (1960) बाद में बना और ताजमहल के संरक्षण का केन्द्रीय कानून पहले (1920) बना। किसी केन्द्रीय कानून के अंतर्गत आने वाली ऐतिहासिक इमारत को राज्य के कानून के अधीन वक्फ बोर्ड में कानूनन नहीं दिया जा सकता। -धीरज त्रिपाठी
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