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मनुष्य और भाषा का रिश्ता अत्यंत गहरा है। मनुष्य के चिंतन को भाषा संवाद में बदलती है। संवाद लोकतंत्र का प्राण है। भारत में सच्चा लोकतंत्र केवल भारतीय भाषाओं के जरिये ही स्थापित और मजबूत हो सकता है,अंग्रेजी के जरिए कदापि नहीं। अंग्रेजी का ज्ञान रखना बुरा नहीं है, बुरा ये है कि इस विदेशी और मात्र दो प्रतिशत जनता को समझ में आने वाली भाषा को सार्वजनिक कामकाज की भाषा के रूप में अपनाने में गर्व महसूस करना।
इसे आजाद भारत की त्रासद बिडम्बना ही मानना होगा कि भारत में अंग्रेजी राज के खातमे के बाद भी भारत के नये कांग्रेसी हुक्मरानों ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 351 के जरिये अंग्रेजी भाषा के मायाजाल में फंसकर वर्ष 1965 तक के लिए भारतीय राज्य व्यवस्था का संचालन इसी विदेशी भाषा के माध्यम से करने की व्यवस्था कर दी। इस प्रपंच के पीछे अंग्रेजी भक्त कांग्रेसी हुक्मरानों की यह देश विरोधी दुर्भावना छिपी हुई थी कि यदि आजाद भारत के शुरुआती दौर में 18 सालों तक देशी भाषाओं पर अंग्रेजी भाषा की गुलामी लाद दी जाए तो फिर इतने वर्षों तक अंग्रेजी का टॉनिक पीकर बलवती हो जाने वाली अंग्रेजी भाषा हमेशा के लिए देशी भाषाओं पर इतराते हुए राज करती रहेगी। आज पूर्ण बहुमत वाली गैर कांग्रेसी सरकार एवं भारतीय सभ्यता-संस्कृति तथा जीवन दर्शन के लिए समर्पित नई भारत सरकार से हरेक देशभक्त हिन्दुस्थानी की यह अपेक्षा बिल्कुल उचित है कि वह कांग्रेसियों के कुच्रकों द्वारा लादी गई इस भाषा व तमाम क्षेत्रों मे उनके कानूनों को हटाकर भारत के मूल अस्तित्व को प्रतिष्ठित करें। आखिरकार यही वह कसौटी होगी जिस पर भारतीय गण्राज्य के नये हुक्मरानों को कसा जाए।
विनोद कोचर,लालबर्रा (म.प्र.)
पाक को कड़ा जवाब
दुष्ट पाक को मिला, ऐसा कड़ा जवाब
सूजे दोनों गाल हैं, सहला रहे जनाब।
सहला रहे जनाब, समझ करके रसगुल्ला
मचा रहे थे सीमा पर फिर हल्ला-गुल्ला।
कह ह्यप्रशांतह्ण दे रहे मर अब जगत दुहाई
नहले पर जब आ दहले ने चोट लगाई॥
-प्रशान्त
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