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आप उन्हें करोलबाग इलाके में अब भी किसी के साथ गप मारते हुए देख सकते हैं। वे करोलबाग में आना पसंद करते हैं। इधर उन्होंने तांगा चलाने से लेकर मसाले कूटने के तमाम काम किए। इसे वे एक तरह से तीर्थस्थल ही मानते हैं। हम बात कर रहे हैं एमडीएच मसाला कंपनी के संस्थापक महाशय धर्मपाल गुलाटी की। वे अब करीब 90 साल के हो चुके हैं, पर उनका उत्साह पहले की तरह से बरकरार है।
विभाजन के दौरान पाकिस्तान स्थित सियालकोट से आकर दिल्ली में डेरा जमाने वाले महाशय धर्मपाल ने जिंदगी में कई उतार चढ़ाव देखे हैं। शुरुआती दिनों में उन्होंने सदर बाजार से पहाड़गंज तक तांगा भी दौड़ाया है और उसके बाद उन्होंने धीरे-धीरे अपने को स्थापित कर लिया।
महाशय जी की जिंदगी की कहानी किसी परी कथा जैसी लगती है। कभी दिल्ली के कुतुब रोड पर सवारियों को आवाज देने वाला तांगेवाला़.़.आज दुनियाभर को अपने असली मसालों का जायका पहुंचाकर मसालों के शहंशाह का खिताब पा चुका है। देखा जाए तो उनके जीवन में संघर्ष और सफलता के सभी मसाले हैं जो आम आदमी के लिए बेहतर मार्गदर्शक साबित हो सकते हैं।
एमडीएच का आज कारोबार 900 करोड़ रुपए से अधिक है! वे खुद ही बताते हैं कि उनका मन पढ़ाई मंे तो लगता नहीं था, इसलिए बचपन से ही छोटे-मोटे काम करने लगे। सन 1947 में देश के बटवारे में वे 1500 रुपए लेकर भारत आ गए। वे कहते हैं कि एक दिन वे अपने पिताजी के साथ एक दूकान में गए। वहां मसालों का बड़ा काम होता। उसी दिन उन्होंने तय कर लिया कि मसाला बनाने का धंधा करेंगे। फिर उन्होंने मसाला बनाना प्रारंभ कर दिया अपने करोलबाग के घर में ही। उसे वे खुद ही बेचने लगे दुकान-दुकान जाकर। उसके बाद जो हुआ उसे बताने की जरूरत नहीं है।
मसाले के छोटे से काम से आज उनका काम देश-विदेश में फैल चुका है। महाशय धर्मपाल ने अपने माता पिता के नाम पर कई अस्पताल और अन्य संस्थाए खोली हैं। आज उनकी कंपनी के मसालों का अमरीका , कनाडा ,ब्रिटेन ,यूरोप , जापान समेत अनेक देशों में निर्यात होता है।
उन्हें लंबे समय से जानने वाले जानते हैं कि कठिन संघर्ष और अनोखी सूझ-बूझ से धीर-धीरे इस कारोबार को उन्होंने वह ऊंचाई प्रदान की कि मसाला उद्योग में दूर- दूर तक इनका कोई प्रतियोगी न रहा। एमडीएच ब्रांड मसाले अपनी शुद्घता और गुणवत्ता को लेकर पूरे भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई दूसरे देशों में भी प्रसिद्ध हो गए। वे स्वयंअपनी कंपनी के विज्ञापनों में आना पसंद करते हैं। आपने उन्हें अखबारों और टीवी पर अपने विज्ञापनों में बड़े मस्त भाव से प्रचार करते जरूर देखा होगा। यह उनकी जिजीविषा को ही दर्शाता है।
महाशय धर्मपाल पक्के आर्यसमाजी हैं। वे राजधानी और देश की अनेक संस्थाओं से भी जुड़े हैं। उन्हें हाल ही में दोबारा से आर्य केंद्र सभा का अध्यक्ष चुना गया है। इसमें आर्य सभा के 500 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। मतदान के माध्यम से नए अध्यक्ष का चुनाव निर्विरोध संपन्न हुआ था। वे कहते हैं कि एमडीएच के लाभ का एक बड़ा हिस्सा सामाजिक कायोंर् में खर्च होता है। उनकी मां चन्नन देवी के नाम से राजधानी के जनकपुरी में चलने वाले अस्पताल में गरीब रोगियों का मुफ्त इलाज होता है।
महाशय जी सुबह 4.45 बजे उठ जाते हैं और आधे घंटे के भीतर नेहरू पार्क जाकर योग करने पहुंच जाते हैं। घर आकर एक गिलास दूध पीते हैं , डंबल मारते हैं और पूरे शरीर पर बादाम रोगन की मालिश करवाते हैं। उसके बाद सुबह 8 बजे पूरे परिवार के साथ खुद ही हवन करते हैं और नाश्ते के तौर पर दूध में गोल मखाने , पिसी बादाम गिरी , चने का सत्तू , मिश्री और घर में बने चार बिस्कुट खाकर करीब 9 बजे कीर्ति नगर स्थित मसाला फैक्टरी पहुंच जाते हैं। लंच में दो रोटी और सब्जी खाते है। उनका कहना है कि वह स्वाद के लिए नहीं बल्कि मात्र पेट भरने के लिए खाते हैं। फैक्ट्री से निकलकर वह शाम 7 बजे फिर नेहरू पार्क पहुंच जाते हैं। आधा घंटा सैर करने के बाद रात 9 बजे हल्का खाना लेकर 20 मिनट घर के आसपास सैर करते हैं और कुछ देर धार्मिक चैनल देखकर 10़.30 बजे सो जाते हैं।
महाशय जी मानते हैं कि जिंदगी में कामयाबी के लिए छह मंत्र हैं – ईमानदारी , मेहनत ,ईश्वर में विश्वास , माता पिता का आशीर्वाद , मीठा बोलना और सबका प्यार पाना। वह सामाजिक कार्यक्रमों में खूब भाग लेते हैं और वहां भंगड़ा भी कर लेते हैं। सफेद कपड़े ,लाल पगड़ी और मोती की माला उनके व्यक्तित्व के हिस्से हैं। बेशक,महाशय धर्मपाल गुलाटी का जीवन मिसाल है उन सभी के लिए जो जीवन में अपने लिए नई इबारत लिखना चाहते हैं। ल्ल
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