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डा. भरत झुनझुनवाला
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विदेशी निवेशकों का आह्वान किया है कि वे भारत में आकर माल का उत्पादन करें। मैने 15 वर्ष पूर्व अध्ययन किया तो पाया था कि सीधे विदेशी निवेश का मेजबान अर्थव्यवस्था पर तात्कालिक प्रभाव सकारात्मक पड़ता है, परन्तु दीर्घकाल में यह नकारात्मक हो जाता है। जैसे गुड़ खाने से तात्कालिक सुख मिलता है परन्तु समयक्रम में डायबिटिज का रोग धर लेता है। विदेशी निवेश आने के समय फैक्ट्री लगाने के लिये सीमेंट, स्टील और मशीनरी की जरूरत पड़ती है जिससे तत्काल विकास दर में वृद्घि होती है, परन्तु दीर्घकाल में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा रायल्टी तथा लाभांश प्रेषण भारी मात्रा में किया जाता है। इनके द्वारा निवेश करने का उद्देश्य हमारे देश का विकास नहीं बल्कि अपने देश की आय में वृद्घि करना होता है। इनके द्वारा मेजबान देश से गैरकानूनी प्रेषण भी किया जाता है जैसे मुख्यालय से आयात किये गये माल का बिल जादा दाम पर बना दिया जाता है। ये आयात महंगा दिखाते हैंं और निर्यात सस्ता दिखाते हैंं जिससे भारतीय इकाई के खातों में लाभ कम हो जाये और भारत में उत्पादन कर तथा आयकर कम अदा करना पड़े। इनके द्वारा प्रारम्भ में कुछ वषार्ें में माल को सस्ता बेच कर घरेलू कम्पनियों को बर्बाद कर दिया जाता है और इसके बाद वे मनचाहा दाम वसूलती हैं। घरेलू कम्पनियों के बर्बाद होने से घरेलू उद्यमिता नष्ट होती है। इन तमाम कारणों से सीधे विदेशी निवेश का दीर्घकाल में मैने नकारात्मक प्रभाव पाया था।
इस लेख को लिखने के लियेे मैंने पुन: गूगल पर तलाशा। पाया कि पूर्व में किये गये मेरे आकलन की पुष्टि हो रही है। युनिवर्सिटी आफ मिनीसोटा द्वारा किये गये अध्ययन में पाया गया कि सीधे विदेशी निवेश का आर्थिक विकास पर स्वतंत्र प्रभाव नहीं पड़ता है। अर्थ हुआ कि अन्य व्यवस्थायें पूर्ववत् रहें और विदेशी निवेश आना शुरू हो तो विदेशी निवेश का प्रभाव नहीं पड़ता है। यदि साथ-साथ शिक्षा, खुला व्यापार आदि में भी सुधार हो तो कुछ सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। परन्तु यह प्रभाव संदिग्ध रहता है, क्योंकि सकारात्मक प्रभाव विदेशी निवेश का है या खुले व्यापार का यह संशय बना रहता है। श्यामपुर सिद्घेश्वरी महाविद्यालय (कोलकाता) द्वारा दिये गये अध्ययन में कहा गया है कि आर्थिक विकास पहले होता है और इसके कारगर होने पर विदेशी निवेश आता है। आगे घरेलू विकास का घोड़ा चलता है और पीछे विदेशी निवेश की गाड़ी। अत: विकास को बढ़ाने में विदेशी निवेश सहायक नहीं होता है। यूनिवर्सिटी ऑफ एम्स्टरडम द्वारा किये गये अध्ययन में बताया गया है कि विदेशी निवेश का प्रभाव स्रोत पर निर्भर करता है। इंग्लैण्ड से आ रहे विदेशी निवेश का प्रभाव सकारात्मक, जर्मनी तथा अमरीका से आ रहे निवेश का प्रभाव नकारात्मक तथा जापान से आ रहे निवेश का प्रभाव अत्यधिक नकारात्मक पड़ता है। हार्वर्ड बिजनेस स्कूल द्वारा किये गये अध्ययन में पाया गया कि विदेशी निवेश का आर्थिक विकास पर प्रभाव स्पष्ट नहीं है। खनिज आदि क्षेत्रों में प्रभाव नकारात्मक है जबकि निर्माण क्षेत्र में सकारात्मक है। और भी अध्ययनों से यही ध्वनि निकलती है कि विदेशी निवेश का कुल प्रभाव संदिग्ध है। विशेष देशों से एवं विशेष क्षेत्रों में ही यह कारगर है। यहां भी दीर्घकाल में संकट बना रहता है। अत: प्रधानमंत्री को विदेशी निवेशकों द्वारा 'मेक इन इंडिया' का नारा उन विशेष क्षेत्रों तक सीमित कर देना चाहिये जहां प्रभाव सकारात्मक होने के पुख्ता लक्षण उपलब्ध हैं।
मेक इन इंडिया का नारा देने के दो कारण हैं-पूंजी तथा तकनीक। विदेशी निवेश के जिन प्रस्तावों में तकनीक के हस्तान्तरण का पुट है, उन्हें स्वीकार करना चाहिये। समस्या उन प्रस्तावों में उत्पन्न होती है जहां तकनीकी पुट कम और पूंजी का पुट जादा होता है जैसे हिन्दुस्तान लीवर द्वारा भारतीय कम्पनी 'टामको' को खरीदने से पूंजी मात्र मिली थी-तकनीक पूर्ववत् रही थी। वस्तु स्थिति यह है कि अपने देश में पूंजी उपलब्ध है और प्रचुर मात्रा में इसका गैर कानूनी प्रेषण हो रहा है। ग्लोबल फाइनेंशियल इंटेग्रिटी द्वारा अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2006 में विकासशील देशों से 858 अरब डालर की पूंजी गैर कानूनी रास्तों से बाहर गई है। विश्व बैंक के अनुसार 2010 में सभी विकासशील देशों को कुल 506 अरब डालर का विदेशी निवेश मिला है। अर्थात् विदेशी निवेश से मिलने वाले 506 अरब डालर के सामने 858 अरब डालर गैर कानूनी रास्तों से बाहर गये हैंं। यदि पूंजी ही चाहिये तो 506 अरब डालर के विदेशी निवेश के पीछे भागने के स्थान पर विकासशील देशों से रिस रहे 858 अरब डालर की रकम को रोकने का प्रयास करना चाहिये।
विशेष यह कि गैरकानूनी रास्तों से बाहर जा रही रकम में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का बड़ा हाथ है। फिनलैण्ड सरकार द्वारा समर्थित अध्ययन में कहा गया है कि विकासशील देशों में टैक्स की चोरी का बड़ा हिस्सा बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के कारण है। बेल्जियम स्थित यूरोडेड संस्था की रपट में कहा गया है कि विकासशील देशों से गैर कानूनी रास्तों से बाहर जाने वाली पूंजी में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा की जा रही टैक्स की बचत प्रमुख है। यानी मेक इन इंडिया के नाम पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को हम न्योता देकर अपनी पूंजी के गैर कानूनी पलायन को प्रोत्साहन दे रहे हैं। राजग सरकार ने देश से वायदा किया है कि विदेशों में जमा काले धन को वापस लाया जायेगा। यानी सरकार मानती है कि देश की बड़ी मात्रा में पूंजी बाहर जा रही है। यदि पूंजी की कमी है तो विदेशी निवेश के पीछे भागने के स्थान पर उस रकम को शीघ्रता से वापस लाना चाहिये। मेक इन इंडिया का सपना साकार होना ही चाहिये। लेकिन इसके लिये विदेशी निवेश को आमंत्रित करना खतरे से खाली नहीं है। विदेशी निवेश का हमारी अर्थव्यवस्था पर प्रभाव संदिग्ध है। जितनी मात्रा में विदेशी निवेश आ रहा है उससे जादा गैर कानूनी रास्तों से जा रहा है अत: इसे रोकना चाहिये।
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को न्योता देकर हम अपनी पूंजी के गैर कानूनी पलायन को बढ़ावा देंगे। जापान से पूंजी मांग कर हम नकारात्मक प्रभाव को न्योता दे रहे हैंै। अत: सरकार को चाहिये कि विदेशी निवेश के प्रस्तावों का तकनीकी आडिट कराये और केवल उन्हीं प्रस्तावों को स्वीकृति दे जिनमें उच्च तकनीकों के हस्तान्तरण की व्यवस्था है। मेक इन इंडिया में दूसरी लाइन जोड़नी चाहिये 'मेड बाई इंडियंस'।ल्ल
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