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मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति में रक्तबीज कैंसर का कारक है जिसके दो रूप हैं चण्ड और मुण्ड। चण्ड रक्त कैंसर का रूप है तथा मुण्ड श्ररीर में बनने वाले गांठयुक्त कैंसर का। मुण्ड का तात्पर्य भी गांठ से है जो रक्त की श्वेत कणिकाओं के जमाव से बनती हैं।
कैंसर प्रोटीन कोशिकाओं का तेजी से विभाजन है जिसके कारक रक्तबीज नामक विषाणु हैं। औषधि स्पृका, मूर्वा, बंघ्याकर्कोटी, असारक, शतावर,माचिका, कमल और गिलोय हैं जिन्हें देवी, अम्बिका, नारायणी, पदिनी कहते हैं।
मार्कण्डेय चिकित्सा प्रणाली में एड्स कालक (माइक) रोग है। जीवन शक्ति को क्षीण कर नि:संदेह मौत दे देता है वही कालक है। इसके कारण शरीर में स्थित रोग रक्षक प्रोटीन कण अपनी रोग रक्षण शक्ति खो बैठते हैं और रोगी मौत का ग्रास बन जाता है। जिनको एड्स हो चुका है या जिनको इसकी शंका है उन्हें दुर्गा कवच में वर्णित सभी दवाओं का प्रयोग क्रमश: अवश्य करना चाहिए। इन दवाओं के साथ शहद में मिला कर आंवले का रस पीना चाहिए।
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