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दिलचस्प संयोग है कि नवरात्र से ठीक पहले एक के बाद एक दो ऐसी फिल्में आई हैं, जो महिला शक्ति का प्रतीक हैं- ह्यमर्दानीह्ण और ह्यमेरी कॉमह्ण। रानी मुखर्जी अभिनीत ह्यमर्दानीह्ण का अंतिम दृश्य इस प्रकार है कि पार्श्व में मां दुर्गा का मंत्रोच्चार हो रहा है। पर्दे पर पीडि़त लड़कियां खलनायक को मां दुर्गा की तरह सबक सिखा रही हैं। दूसरी ओर ह्यमेरी कॉमह्ण की मेरी एक जीवंत महिला शक्ति है।
रानी मुखर्जी बताती हैं, ह्यखुद मुझे भी मर्दानी फिल्म का क्लाइमेक्स बहुत पसंद है। मैं चाहती हूं ,जरूरत पड़ने पर हर महिला इस तरह से दुर्गा बनकर असुरों का संहार करे। मैं खुद भी मंा दुर्गा की अनन्य भक्त हूं। मुझे तो मां दुर्गा के नौ के नौ रूप बहुत ज्यादा प्रेरणादायक लगते हैं। मुझे लगता है कि ये सारे रूप हर महिला में मौजूद हैं। मुश्किल यह है कि हममें से ज्यादातर महिलाएं इसे सही समय पर व्यक्त नहीं कर पाती हैं। अब जैसे कि आज जरूरत इस बात की है कि समाज में मौजूद असुरों का नाश करने के लिए महिलाएं शक्तिरूपेण बन जाएं।ह्ण
प्रियंका चोपड़ा पूरी दुनिया में भारत का गर्व बनीं महिला बॉक्सर मेरी काम से बहुत ज्यादा प्रभावित थीं। मेरी कॉम का जीवन कितना संघर्षमय था, इसका अहसास उन्हें फिल्म की पटकथा पढ़ने के बाद समझ में आया। प्रियंका अब कहती हैं, ह्यमहिला शक्ति के प्रतीक ऐसे किरदार मुझे प्रेरणा देते हैं और ऐसा ही बनने की प्रेरणा देते हैं।ह्ण
शक्ति, सामर्थ्य, साहस और विपरीत परिस्थितियों में अदम्य संघर्षक्षमता की जीती-जागती प्रतीक मेरी कॉम ने हाल में अपनी मुंबई यात्रा के दौरान बताया, ह्यभारतीय नारी उत्पीड़न और मर्दांे की हैवानियत सहने के लिए नहीं बनी है, वह सदा से शक्ति की प्रतीक रही है। हमारे समाज में ऐसे ढेरों उदाहरण हैं आज भी। उन्हें खोजकर सामने लाना तो आपका काम है। मुश्किल तो यह है कि देश में अब तक ऐसे हालात रहे कि कोई मेरी कॉम महिला ताकत के तौर पर सामने आती है, तो उसे सिर्फ दबाने की कोशिश की जाती है।ह्ण
पिछले दिनों मुंबई के एक उपनगर में एक महिला रात के लगभग नौ-दस बजे स्कूटी से अपने घर लौट रही थी। अचानक एक सन्नाटेवाली जगह में चार गुंडों ने उन्हें घेर लिया। जाहिर है, लूट-खसोट के अलावा भी उनके इरादे नेक नहीं थे। ऐसे में बहुत चालाकी के साथ आत्मसमर्पण करते हुए उसने अपना बैग खोल कर उन्हें दिखाने के साथ ही न जाने कहां से रिवाल्वर निकाल कर हवा में फायरिंग कर दी। इसके बाद तो गुंडों ने भागना ही ठीक समझा। बाद में उस महिला ने बताया कि आत्मसुरक्षा के लिए वह पिछले दो साल से यह लाइसेंसी हथियार रख रही हैं। बाद में इस महिला के विशेष सहयोग से ही पुलिस ने उन गुडों को धर दबोचा।
प्रियंका का सुझाव
मैं चाहती हूं कि हर महिला मेरी कॉम जैसी साहसी बने। मेरा ख्याल है कि वह शारीरिक शक्ति के मामले में पुरुषों से पीछे है, अब इस नजरिये को बदलने की कोशिश करनी चाहिए। युवतियों को बाकायदा आत्मरक्षा का प्रशिक्षण भी लेना चाहिए।
आत्मरक्षा सिखाई जाए स्कूलों में
इग्नू में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. इति तिवारी कहती हैं, ह्यआज की लड़कियों को पढ़ाई के साथ-साथ आत्मसुरक्षा की तरफ भी ध्यान देना चाहिए। बल्कि मैं तो यह चाहती हंू कि पढ़ाई के साथ ही हमारे स्कूल-कालेज में लड़कियों के लिए आत्मरक्षा (सेल्फ डिफेंस) की एक कक्षा जरूरी कर दी जाये। हर लड़की रानी मुखर्जी जैसी मर्दानी या मेरी कॉम जैसी बॉक्सर नहीं बन सकती, मगर मार्शल आर्ट्स के साथ-साथ सुरक्षा के दूसरे गुर भी वह आसानी से सीख सकती है। मेरा बेटियों से सिर्फ एक अनुरोध है कि वे फैशनेबल अभिनेत्रियों की देखादेखी अपने जीरो फीगर पर ध्यान देने के बजाय शरीर को मजबूत बनाने की कोशिश करें।ह्ण
बैग में हथौड़ा रखती थीं बिपाशा
अभिनेत्री बिपाशा बसु अपने संघर्ष के दिनों में हमेशा अपने बैग में एक हथौड़ा रखती थीं। उन्होंने बताया कि उन दिनों हथियार के नाम पर मेरे पास सिर्फ यही एक हथौड़ा था, जिसे मैंने दीवार पर कील ठोंकने के काम के लिए लिया था। उन दिनों कई बार रात घर लौटने में देरी हो जाती थी। मैं पेइंग गेस्ट थी। मैंने सुन रखा था कि मुंबई में रात को टैक्सी-ऑटो में अकेली लड़की का सफर करना ठीक नहीं है। इसलिए मैं सुरक्षा के लिए हमेशा अपने पास यह लोहे का हथौड़ा रखती थी। स्कूल में एनसीसी कोर्स के दौरान हमें सिखाया गया था कि कोई शारीरिक आक्रमण होने पर आप सामने वाले व्यक्ति को कैसे एक वार में घायल कर सकती हैं। मुझे लगता है कि लड़कियों को यह ट्रेनिंग किसी-किसी विद्यालय में ही दी जाती है और वह भी बहुत ही छोटे पैमाने पर। इसे और विस्तार मिलना चाहिए।
सिनेमा अगर महिलाओं की सबला छवि को उभारे तो समाज में काफी परिवर्तन आ सकता है और तब देवीपूजन का हमारा पर्व और भी सार्थक हो जाएगा। –मुंबई से असीम चक्रवर्ती
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