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छात्र किसी भी राष्ट्र, सभ्यता और संस्कृति की ऊर्जा के अक्षय भंडार हैं। छात्र ही देश का वर्तमान और भविष्य होते हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीति का अपना महत्व होता है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में छात्र राजनीति छात्रों के लिए एक ऐसा ही मंच होती है जहां से वे लोकतंत्र के मार्ग पर चलने का सलीका सीखते हैं। छात्रों की यही ऊर्जा विकास के पथ को प्रशस्त करती है। जिस तरह जागरूक जनता मतदान करके अपने लिए शासन सुनिश्चित करती है, उसी तरह छात्र भी मतदान करके अपने लिए प्रतिनिधि रूप में छात्र नेता सुनिश्चित करते हैं, जो उनकी बातों को आगे लेकर आते हैं और उनकी समस्याओं का समाधान करवाते हैं। दिल्ली विवि में हर वर्ष छात्रसंघ के चुनाव होते हैं, लेकिन इस बार का चुनाव हर वर्ष के चुनावों से हटकर था। इस बार दिल्ली विश्वविद्यालय में चारों सीटों पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने जीत हासिल की है। 17 साल बाद फिर से अभाविप ने इतिहास को दोहराया है। इससे पहले 1997-98 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने चारों सीटों पर कब्जा जमाया था। दिल्ली विवि. छात्र संघ के अध्यक्ष मोहित नागर बने हैं। उन्हें 20718 मत हासिल हुए। उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी एनएसयूआई के गौरव तुषार को 914 मतों से हराया। उपाध्यक्ष पद पर अभाविप के प्रवेश मलिक ने एनएसयूआई की मोना चौधरी को 7859 मतों से हराया। सचिव पद पर अभाविप की कनिका शेखावत ने एनएसयूआई के अमित सिद्धू को 3022 मतों से हराया। जबकि संयुक्त सचिव पद पर अभाविप के आशुतोष माथुर ने एनएसयूआई के अभिषेक चौधरी को सबसे बड़े अंतर 11068 मतों से पराजित किया
एफवाईयूपी का हटना भी जीत का कारण
इस वर्ष दिल्ली विवि. छात्रसंघ का चुनाव अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के उत्तर पश्चिमी क्षेत्र के क्षेत्रीय संगठन मंत्री उमेशदत्त शर्मा के नेतृत्व में लड़ा गया। छात्रसंघ चुनाव में चारों सीटों पर जीत को लेकर उनका कहना था कि किसी भी मामले को विवादास्पद बनाने के लिए राजनीतिक विचारधाराओं से प्रेरित राजनीतिक दलों व उनके नेताओं का महत्वपूर्ण योगदान होता है। हमारे देश में भी राजनीतिक दलों की यही परंपरा रही है। कभी-कभी सामान्य सी बात को इतना तूल देकर प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया जाता है जिसकी कोई जरूरत नहीं होती। बुद्धिजीवी वर्ग भी खेमों में बंटा हुआ है वह भी अपनी राजनीतिक विचारधारा के अनुसार किसी भी मुद्दे का आंख मूंदकर समर्थन या विरोध करने लग जाता हैं। ऐसा ही मामला दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा छात्रों पर थोपे गए एफवाईयूपी (चार वर्षीय पाठ्यक्रम) का था। जिसका छात्रों ने जमकर विरोध किया। चारवर्षीय पाठ्यक्रम को वापस लेने के लिए प्रदर्शन किए गए और विश्वविद्यालय प्रशासन को झुकने पर मजबूर कर दिया। नतीजतन दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन को फिर से तीन वर्षीय पाठ्यक्रम लागू करना पड़ा। छात्र चाहते थे कि ऐसा हो। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने एफवाईयूपी के लागू होने के बाद से ही इसका विरोध शुरू कर दिया था। छात्र एफवाईयूपी खत्म किए जाने के बाद से खुश थे। वे जानते थे कि यह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रयासों से ही संभव हुआ है। इसलिए उन्होंने अभाविप के पक्ष में मतदान किया।
90 प्रतिशत छात्रों से की निजी मुलाकात
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय मंत्री रोहित चहल का कहना है कि अभाविप ऐसा छात्र संगठन है जहां चुनाव के लिए छात्रों का चयन नेताओं के फोन से नहीं होता, न ही धन बल और बाहुबल से छात्रों को चुनाव में खड़ा किया जाता है। हमारे कार्यकर्ता वर्षभर छात्रों के बीच रहकर काम करते हैं और उनकी समस्याओं का समाधान कराने की भरसक कोशिश करते हैं। एफवाईयूपी के मुद्दे को लेकर दिल्ली विवि. के 90 प्रतिशत छात्रों से हमने सीधे तौर पर मुलाकात की, जिसका फायदा छात्रसंघ चुनावों में हमें मिला।
देशभर में कई महाविद्यालयों में जीती अभाविप
विद्यार्थी परिषद के अखिल भारतीय मीडिया एवं जनसंपर्क प्रमुख श्रीरंग कुलकर्णी का कहना है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के अलावा देश के दूसरे विश्वविद्यालयों में भी अभाविप का प्रदर्शन बेहतर रहा है। छत्तीसगढ़ के 11 विश्वविद्यालयों में से 10 में विद्यार्थी परिषद ने जीत हासिल की है। यहां पर खास बात यह है कि नक्सल प्रभावित इलाकों जैसे सुखमा, दंतेवाड़ा आदि क्षेत्रों में आने वाले विश्वविद्यालयों में भी विद्यार्थी परिषद जीती है। देहरादून स्थित डीएवी महाविद्यालय में लगातार आठवीं बार विद्यार्थी परिषद जीती है। इस महाविद्यालय में 35 हजार छात्र पढ़ते हैं। इसके अलावा राजस्थान में पांच विश्वविद्यालयों में अभाविप के छात्र नेता भारी बहुमत से चुने गए हैं। असम और पूर्वोत्तर राज्यों में भी विभिन्न कॉलेजों में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के उम्मीदवार जीते हैं। विभिन्न विश्वविद्यालयों में विद्यार्थी परिषद के जीतने का कारण वर्ष भर उसकी छात्रों के बीच सक्रियता है। जबकि अन्य छात्र संगठन सिर्फ चुनावों के दौरान ही सक्रिय होते हैं।
राजनीति नहीं राष्ट्रहित सर्वोपरि
विद्यार्थी परिषद् के प्रदेश मंत्री साकेत बहुगुणा का कहना है कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद छात्र राजनीति करने में विश्वास नहीं रखती। हमारे लिए राष्ट्रहित सर्वोपरि है। देश का युवा अब जान चुका है कि बाकी छात्र संगठन किसी न किसी राजनीतिक दल से जुड़े हैं। उनका उद्देश्य सिर्फ राजनीति होता है राष्ट्रहित नहीं, इसलिए वामपंथी विचारधारा रखने वाले छात्र संगठनों को दिल्ली विवि. में छात्रों ने सिरे से नकार दिया है।
वामपंथियों के गढ़ में जोरदार टक्कर
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भी इस वर्ष अभाविप का प्रदर्शन पिछले वर्ष के मुकाबले बहुत बेहतर रहा। पिछले वर्ष की तुलना में अभाविप के उम्मीदवारों को इस बार दोगुने मत मिले हैं। इसके अलावा पिछले वर्ष जेएनयू में अभाविप के 6 केन्द्रीय पार्षद थे। इस बार 12 केन्द्रीय पार्षद चुने गए हैं। अभाविप के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार सौरभ कुमार को 944 मत मिले। वह तीसरे स्थान पर रहे। पिछले वर्ष अभाविप के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार को 523 वोट मिले थे। उपाध्यक्ष पद पर अभाविप के जहिदुल दीवान को 791 मत मिले, महासचिव पद पर आशीष धनौटिया को 756 वोट मिले। दोनों ही दूसरे स्थान पर रहे। अभाविप के संयुक्त सचिव पद के उम्मीदवार गोपाललाल मीणा को 857 मत मिले वह तीसरे स्थान पर रहे। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की प्रदेश उपाध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में संस्कृत में पीएचडी कर रही ममता त्रिपाठी का कहना है कि वामंपथियों के गढ़ में लगातार विद्यार्थी परिषद का प्रदर्शन सुधर रहा है। आने वाले वर्षों में प्रदर्शन और भी बेहतर होगा। देश में हो रहे सकारात्मक बदलाव को युवा देख और समझ रहा है। इस समय देश में जो वातावरण है। उसमें युवाओं में एक नई ऊर्जा का संचार हो रहा है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के उत्तरी और दक्षिणी परिसर की तरह पूर्वी दिल्ली में भी परिसर बनवाने का वायदा पूरा किया जाएगा। कई वर्षों से वहां के छात्रों के लिए परिसर बनवाने की बात कही जाती है लेकिन किया कुछ नहीं। एनएसयूआई कई बरसों से इस मुद्दे पर छात्रों को बरगलाती रही है। केंद्र में दस वर्षों तक कांग्रेस की सरकार रही लेकिन पूर्वी दिल्ली परिसर नहीं बनवाया गया। इस बार वायदा पूरा करने का हर संभव प्रयास किया जाएगा।
—आशुतोष माथुर, दिल्ली विवि छात्रसंघ संयुक्त सचिव
विश्वविद्यालयों में छात्राओं की सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा रहेगा। हर कॉलेज में महिला कल्याण प्रकोष्ठ खुलवाने का प्रयास रहेगा। अभी भी कुछ कॉलेजों में महिला कल्याण प्रकोष्ठ हैं लेकिन वे निष्क्रिय पड़े हैं। उन्हें सक्रिय किया जाएगा। दिल्ली पुलिस से बातचीत करके छात्राओं को आत्मरक्षा के गुर सिखाने के लिए विशेष शिविर आयोजित किए जाएंगे।
—कनिका शेखावत, दिल्ली छात्रसंघ सचिव
यूनिवर्सिटी स्पेशल बसें (यू-स्पेशल) चलवाना प्राथमिकता में शामिल है। कहने को डीटीसी की तरफ से 31 स्पेशल बसें चलाई जा रही हैं लेकिन वह सिर्फ कागजों में ही चल रही हैं। बाहरी दिल्ली के देहात क्षेत्र के छात्रों को कॉलेज आने में खासी परेशानी का सामना करना पड़ता है। दिल्ली विवि. में छात्रों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। ऐसे में सभी कॉलेजों में सांध्य कक्षाएं शुरू होनी चाहिएं। इस वर्ष विद्यार्थी परिषद इसके लिए भी प्रयास करेगी। उत्तरपूर्वी राज्यों के छात्रों के लिए विशेष कैंटीन खुलवाई जाएंगी, जहां उन्हें उनके क्षेत्र अनुसार भोजन मिल सकेगा। अभी तक विश्वविद्यालय में एक भी ऐसी कैंटीन नहीं हैं।
-मोहित नागर, दिल्ली छात्रसंघ अध्यक्ष, छात्र संघ दिल्ली विवि.
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