आवरण कथा – सेना बनी तारणहार
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प्रकृति का प्रकोप केवल शताब्दियों में एक बार होता है और कब होगा है इसके विषय में आप नहीं जानते। आधुनिक समय में आपदा राहत बहुत तेज और प्रभावी ढंग से हो सकता है यदि पहले से ही योजना और तैयारी अच्छे तरीके से क्रियान्वित हो। उत्तराखंड से ही सभी पहाड़ी राज्यों को यह चेतावनी मिल गयी थी कि ऐसी आपदा कहीं भी आ सकती है। इन क्षणों में इस आपदा को आरोप-प्रत्यारोप का खेल न बनाकर 6 लाख से भी अधिक बाढ़ में फंसे लोगों को सुरक्षित बाहर निकालने की जरूरत है। क्योंकि ऊंचे क्षेत्रों में भी अब घरों में रहने के लिए जगह नहीं बची है। विस्थापित लोगों को कश्मीर के अन्य क्षेत्रों में बसाने के लिए एक संगठित और प्रभावी योजना की आवश्यकता है। परिवहन व्यवस्था को सुदृढ़ करने के साथ तंबुओं, भोजन पकाने के बर्तनों की आपूर्ति सहित सफाई के साधन भी उपलब्ध कराने की जरूरत है। इसके साथ ही ऐसे राहत शिविरों में संचार उपकरण भी उपलब्ध कराने होंगे। ये सब काम सर्दी आने से पहले-पहले करने होंगे और विस्थापित लोगों को भी दिये गये समय के अंदर अपने लिए नये घरों का पुनर्निर्माण करना एक बड़ी चुनौती होगा। सबसे बड़ी चुनौती बाढ़ के पानी के निकास की है जो बहुत समय तक अलग-अलग जगहों पर रुका हुआ रहेगा। इसके दो प्रभाव होंगे- एक तो यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होगा। इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य प्रशासन को बेहतर ढंग से कुछ दिनों के अन्दर ठोस समाधान प्रस्तुत करने होंगे। दूसरा ये कि जितने समय तक पानी जमा रहेगा तो उस हिसाब से पुनर्निर्माण के प्रयास भी शुरू करने होंगे। सरकारी भवनों से पानी की निकासी के लिए जल्दी से जल्दी बड़े-बड़े पम्प लगाने की आवश्यकता है।
यहां नावों की कमी है, यदि संख्या बढ़ायी जाए तो लोगों की ज्यादा सहायता हो सकती है। सबसे जरूरी है संचार व्यवस्था को तुरंत दुरुस्त करना ताकि बाढ़ में फंसे लोग कम से कम अपने परिजनों से बात तो कर सकें। किसी भी कीमत पर इसको ठीक करना होगा। सरकारी अधिकारियों के बीच और अधिक समन्वय की जरूरत है। ऐसे स्थितियों में नेतृत्व और नियंत्रण अनिवार्य तत्व होते हैं। एक स्पष्ट और श्रृंखलबद्ध व्यवस्था को स्थापित करने की आवश्यकता है। शीघ्र ही राज्यपाल के शासन की आवश्यकता पर भी तर्क-वितर्क होगा लेकिन हमारी मान्यता है कि अगले 15 दिनों में राहत का कार्य सेना के नियंत्रण में दे देना चाहिए। नागरिक सरकार के मंद गति से चलने वाले राहत कार्य को गति देने के लिए सेना के वरिष्ठ अधिकारियों को पूरी कमान सौंप देनी चाहिए, राज्यपाल के शासन में भी सेना की ऐसी ही भूमिका अपेक्षित होगी।
यह एक राष्ट्रीय त्रासदी है और देशभर में इसके लिए प्रत्येक जगह से लोगों द्वारा संवेदना व्यक्त की जा रही है। दिल्ली और महानगरीय शहरों को इसमें नोडल केन्द्र की भूमिका निभानी चाहिए जहां से प्राधिकृत केन्द्र की तरह अनुदान एवं राहत सामग्री की प्राप्ति और वितरण सुनिश्चित हो। स्वैच्छिक संस्थाओं (एनजीओ) विशेषकर जो स्वास्थ्य क्षेत्र से संबंधित है उन्हें प्राथमिकता के तौर पर वहां पहुंचना चाहिए क्योंकि स्वास्थ्य से संबंधित उपकरणों और व्यक्तियों की वहां आपूर्ति कम है। और तो और स्वयं सेना भी इस समस्या से जूझती है। कुल मिलाकर यह तो स्वीकार करना होगा कि सेना ने अपने कर्तव्य का पालन करते हुए अपनी प्रभावी भूमिका प्रमाणित की है जिसके कारण इस आपदा से ज्यादा विध्वंस नहीं हुआ। सेना की यह भावना इसी प्रकार जीवंत रहनी चाहिए और कश्मीर की जन्नत के लिए सेना की उपस्थिति सदैव लाभदायक ही रहती है। – ले.जन. (से.नि.) एस. ए. हसनैन, लेखक रक्षा मामलों के विशेषज्ञ हैं
जब सारा देश जम्मू कश्मीर के लोगों को प्रकृति की विभीषिका से बचाने के लिए एकजुट है, ऐसे में यह प्रश्न स्वाभाविक है कि अलगाव और दुराव का राग अलापने वाले हुर्रियत के नेता न जाने कहां बिलों में छिपे हैं। सैयद अली शाह गिलानी और उनके सूरमा जो कि स्वयं को यहां का रहनुमा मानते हैं न जाने कहां खो गये हैं। कश्मीरियत के तथाकथित ध्वजवाहक मौन क्यों है? जब आम नागरिक जीवन के संघर्ष में सहायता के लिए आवाज लगा रहा है। तब पूरा देश और केन्द्र सरकार अपने नागरिकों के लिए तन-मन-धन से एकजुट है। अलगाववादियों की पत्थर फेंकने वाली टोलियां अब गलियों में बाहर निकलकर बचाव व राहत कार्यों में सहायता क्यों नहीं कर रही है।
जो लोग तथाकथित स्वतंत्रता के लिए 'जकात ' (दान) की मांग करते हैं वे इन लोगों के लिए क्यों नहीं दिखायी पड़ रहे। कश्मीर की इस आपदा ने पूरे देश को भावनात्मक रूप से एक तो किया ही है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक सुशासक और ईमानदार देशभक्त नेता के रूप में यथाशक्ति सहायता देकर विश्व समुदाय के सामने अपने व्यक्तित्व को और बड़ा कर दिया है। भारतीय सेना की भूमिका ऐतिहासिक है और उसने लाखों लोगों का जीवन बचाकर स्वयं को इस जन्नत का सच्चा प्रहरी सिद्ध किया है। जम्मू कश्मीर के नागरिकों ने इस विपत्ति में राज्य सरकार की निष्क्रियता और बौखलाहट भी देख ली है तो अलगाववादियों के स्वार्थी एवं गिरगिट रूप को भी। -जयबंस सिंह, लेखक डब्लूडब्लूडब्लू डॉट डिफेंसइन्फो डॉट कॉम के सम्पादक हैं
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