आवरण कथा/100 दिन सरकार के
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पहली बार मंत्री बने भाजपा के एक युवा नेता को रात के दो बजे फोन आया। फोन उनकी पत्नी ने उठाया। फोन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थे। जब मंत्री की पत्नी ने उन्हें बताया कि वह सो रहे हैं तो प्रधानमंत्री ने उनसे कुशलक्षेम पूछी और फिर कहा कि मंत्री जी को जरा उठा दिया जाए। मिनटों में मंत्री जी को दिल्ली के निकट एक ऐसी जगह पहुंचना पड़ा, जहां किसी सरकारी उपक्रम में कुछ परेशानी खड़ी हो गई थी। मंत्री जी जब वहां पहुंचे तो प्रधानमंत्री कार्यालय के कुछ वरिष्ठ अधिकारी वहां पहले से मौजूद थे।
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इस घटना का जिक्र यहां इसीलिए सामयिक है कि बरसों तक सत्ता के गलियारों में बड़े-बड़े लोगों से अपने संबंधों की ताकत दिखाकर आम लोगों को उल्लू बनाने वाले बार-बार यह सवाल उठा रहे हैं कि आखिर सरकार के सौ दिनों में हुआ क्या है?
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नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से केंद्र में सिर्फ एक दशक का शासन ही नहीं बदला। यह सिर्फ कांग्रेस से भाजपा का सत्ता हस्तांतरण भर नहीं है। केवल कोई विचारधारा ही नहीं हारी या जीती है, यह बदलाव सामाजिक और राजनीतिक भर भी नहीं है। वास्तव में संप्रग से राजग सरकार बनने की यात्रा के साथ ही कार्यसंस्कृति बदलने की शुरुआत हुई है। सौ दिन की मोदी सरकार ने सबका साथ, सबका विकास के नारे को जमीन पर जनांदोलन की शक्ल में उतारने की शुरुआत कर दी है। जिस तीव्रता और आवेग के साथ उनका चुनावी अभियान चला था, सुशासन के एजेंडे को जमीन पर उतारने में भी वही तीव्रता कायम है। 15 अगस्त को लालकिले की प्राचीर से अपने पहले संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने याद दिलाया था कि 1857 में आजादी की लड़ाई से ही हजारों लोगों ने अपनी भारत मां को गुलामी की बेडि़यों से मुक्त कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी, लेकिन महात्मा गांधी अगर अंग्रेजों को मात देने में कामयाब हुए तो इसीलिए कि उन्होंने आजादी की लड़ाई को पूरी तरह एक जनांदोलन में परिवर्तित कर दिया था। प्रधानमंत्री का कहना यह था कि किसी भी मिशन को हासिल करने के लिए उसे जनांदोलन में बदलना अनिवार्य है। यही वजह है कि चाहे सरकारी कार्यसंस्कृति में आमूल-चूल बदलाव हो या सामाजिक स्तर पर शौचालयों के निर्माण का काम, प्रधानमंत्री ने इस लक्ष्य को 'मिशन मोड' में अपनाने या जनांदोलन बनाने का मूल मंत्र दिया है। इसका संकेत भी लालकिले से दिए प्रधानमंत्री के भाषण में मिल गया था, जब उन्होंने व्यंग्यात्मक अंदाज में उन खबरों का जिक्र किया था कि अब सरकारी बाबू समय पर दफ्तर आने लगे हैं। प्रधानमंत्री ने हैरानी जताई थी कि किसी सरकारी अधिकारी का सही समय पर कार्यालय आना भी समाचार बनता है क्या? उनका मतलब साफ था। केवल वक्त पर आना ही मकसद नहीं है। सरकारी अधिकारी यदि खुद को 'सर्विस' में बताता है तो वास्तव में सेवा की भावना से काम करना होगा और जिन उम्मीदों की लहर पर सवार होकर यह सरकार आई है वह उन उम्मीदों को पूरा करने की दिशा में मेहनत में कोई कोर कसर नहीं छोडे़गी।
सरकारी दफ्तरों में कुछ समय बिताएं तो मंत्रियों से लेकर नौकरशाहों और कर्मचारियों के काम करने का तरीका फिलहाल तो बदला दिखाई दे रहा है। काम को जनांदोलन में तब्दील करने के शुरुआती प्रयासों का नतीजा शुभ और उत्साह बढ़ाने वाला कहा जा सकता है।
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दरअसल, नरेंद्र मोदी को जो भी अतिरिक्त समर्थन मिला है वह न तो मंदिर निर्माण या पाकिस्तान विध्वंस के लिए और न ही यह कारपोरेट कृपा या मीडिया सम्मोहन से भी प्राप्त हुआ है। अगर उन्हें जनता का अभूतपूर्व समर्थन मिला है तो बिजली, सड़क और पानी के लिए। वह मिला है सुस्त पड़ चुके आर्थिक विकास को दोबारा पटरी पर लाने के लिए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों और भाजपा कार्यकर्ताओं के परिश्रम से मिले इस जनादेश का अर्थ समझना जरूरी है।
संघ की पृष्ठभूमि से आए मोदी ने युवाओं की अपेक्षाओं को सिर्फ जगाया ही नहीं है, समृद्ध और सुरक्षित हिन्दुस्थान के निर्माण से उनको जोड़ने की पहल भी की है। चुनाव अभियान में यही विश्वास जताने में वे कामयाब रहे। अब उसे उतनी ही कामयाबी से आगे विस्तार भी देते नजर आ रहे हैं। सरकार के अलग-अलग मंत्रालय और विभाग किस तरह नरेंद्र मोदी की दृष्टि व भाजपा के घोषणापत्र को जमीन पर लागू करने में जुटे हैं, उस पर गौर करें तो साफ दिखता है कि कुछ बड़ी पहल की गई हैं। इनमें देश के हर जिले में एक साथ लागू की गई जन-धन योजना सिर्फ एक महत्वाकांक्षी सरकारी योजना ही नहीं है, बल्कि इससे देश भर के गरीबों को आर्थिक क्षेत्र में सम्मान मिलेगा और भविष्य में तमाम सरकारी योजनाओं का भ्रष्टाचार मुक्त तरीके से लाभ लेने का मौका भी।
इसके साथ ही विदेश नीति में पड़ोसी देशों को प्राथमिकता, भारत का दूसरे देशों से सांस्कृतिक संबंध गहराना, आर्थिक और औद्योगिक विकास में दुनिया की बड़ी ताकतों से सहयोग का वातावरण, पाकिस्तान को कश्मीर के अलगााववादियों को बढ़ावा देने पर दो टूक जवाब जैसे कदम एक दृढ़ और उचित समय पर त्वरित फैसले लेने वाले सरकार के मुखिया के रूप में मोदी की छवि को मजबूती प्रदान करते हैं।
विश्व व्यापार संगठन में किसानों के अहित के समझौते पर हस्ताक्षर न करके भारत सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि दुनिया की ताकतों के साथ सहयोग को तो हम तैयार हैं मगर अपने किसानों के हितों को दांव पर लगाना गवारा नहीं। सामाजिक क्षेत्र में मोदी की चिन्ताएं महिलाओं को लेकर सर्वाधिक हैं। इसके साथ ही गरीब को सम्मान और युवाओं को समान अवसर देने के लिए संभव योजनाओं पर विचार उसी व्यक्ति के लिए मुमकिन है जिसने स्वयं गरीबी देखी हो और समाज के पिछडे़ वर्ग से होकर तमाम चुनौतियों को झेलते हुए अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया हो। अगर नरेंद्र मोदी ने संवाद और संचार के बल पर अपने चुनाव में विरोधियों को धूल चटाई तो इसी संवाद की प्रक्रिया को अब वह सरकार में लाकर इसे ज्यादा जनोन्मुखी व जवाबदार भी बनाना चाहते हैं। प्रधानमंत्री ने 'माई गांव डॉट इन' के जरिए जनता को सरकार की आगामी नीतियों में भागीदार बनाने की अद्भुत पहल की है। इस वेबसाइट के जरिये विद्वान, बुद्धिजीवी, युवा एवं समाज के वंचित तबके के लोग बेहिचक अपनी राय व सुझाव दे रहे हैं। इस पोर्टल पर मिलने वाली प्रतिक्रिया से सरकारी अधिकारी अचंभित हैं। योजना आयोग को नए अवतार में लाने जैसे जटिल मुद्दे पर भी लाखों लोगों ने अपने विचार व सुझाव भेजे हैं। वास्तव में देश के युवा जब संचार क्रांति के जरिये एक नए युग में प्रवेश कर चुके हैं तो उनके भविष्य को तय करने वाली शासन व्यवस्था पुराने ढर्रे पर नहीं चल सकती, इसका संदेश प्रधानमंत्री ने दे दिया है।
सरकारी तंत्र के साथ-साथ देश की जनता के लिए हर्ष की बात यह है कि बिना 'हनीमून' के पहले दिन से अथक प्रयासों में जुटी सरकार की कोशिशों के नतीजे भी सामने आने लगे हैं। पूरे दो वर्षों के बाद सकल घरेलू उत्पाद में 5.7 प्रतिशत की दर से बढ़त दिखाई दी है। जो कांग्रेस के नेता और पूर्व मंत्री इस विकास दर को संप्रग की कोशिशों का नतीजा बता रहे हैं, वे इस बात का जवाब नहीं दे पा रहे कि ऐसे नतीजे दस साल तक क्यों नहीं दिखे? न ही वह उत्पादन के क्षेत्र में अचानक आए उत्साह को समझा पा रहे हैं। मोदी सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री के शब्दों को दोहराएं तो हर एक मंत्रालय के कामकाज की बारीकियों में न जाकर यह कहना काफी होगा कि कई वर्षों से सुस्ती और नीतिगत लकवे के शिकार सरकारी तंत्र में अचानक कुछ होगा, अब काम होगा, जैसे जुमले सुनने को मिल रहे हैं। सरकारी दफ्तरांे और महकमों में आशा के साथ- साथ उत्साह का वातावरण लौट आया है। हर मंत्री प्रधानमंत्री के 'विजन' को जनता तक पहुंचाने के रास्ते ढूंढ रहा है और अधिकारी इसे अमलीजामा पहनाने मंे जुटे हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय एक केंद्र का काम कर रहा है, हर मंत्री को जनता से सीधा संवाद बनाए रखने की हिदायत दी गई है, इस पर लगातार फीडबैक भी लिया जा रहा है। केवल मंत्रियों ही नहीं, अफसरों को भी नियमित पीएमओ के संपर्क में रहने और आवश्यक सलाह व मार्गदर्शन लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। एक लंबे अंतराल के बाद सरकार व सत्तासीन पार्टी में टकराव नहीं है। कमान एक है और मजबूत है। इसकी बानगी तब देखने को मिली जब विरोधियों की अफवाहों के निशाने पर लाए गए केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने प्रधानमंत्री व पार्टी प्रमुख को सूचित किया।
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प्रधानमंत्री ने बिना समय गंवाए न सिर्फ अफवाहों को बेबुनियाद बताया, बल्कि भविष्य के लिए आगाह भी कर दिया। उचित समय पर कठोर निर्णय और जरूरत पड़ने पर अपने साथियों के साथ खडे़ होने का साफ संदेश दे दिया गया। बंटे हुए नेतृत्व, अनिर्णय के वातावरण और नीतिगत जड़ता से जूझते तंत्र में एक स्पष्ट कमान स्थापित हुई है, चालक के हाथ में स्टेयरिंग है, आगे का रास्ता तय करने की दृष्टि भी है और गाड़ी में सवार देशवासियों का विश्वास भी। -स्मिता मिश्रा
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