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अपराधी और नाकारा संसद से बाहर हों
पिछली संसद में भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध मीडिया और जनता ने खूब शोर मचाया लेकिन वे टस से मस नहीं हुए। अब यदि वापस बुला लेने का अधिकार निर्वाचन क्षेत्र की जनता को मिल जाता है तो उसका दस प्रतिशत हिस्सा ही इतना शक्तिशाली हो जाता है कि उक्त अपराधी प्रतिनिधि को सदन के बाहर का रास्ता बतला सकता है। इसलिए ब्रिटिश संसद के इस कानून का स्वागत हर लोकतांत्रिक देश करेगा।
ब्रिटिश संसद में पिछले दिनों एक ऐतिहासिक क्रांति हुई। वहां के सांसदों ने एक प्रस्ताव पास करके अपने संविधान में इस कानून का प्रावधान कर दिया कि एक बार चुने हुए सांसद को उस निर्वाचन क्षेत्र के मतदाता वापस बुला सकते हैं। प्राकृतिक नियम है कि जो भेज सकता है वही बुला सकता है। संसद की असली आत्मा तो उसमें निर्वाचित सांसद ही होते हैं इसलिए जब उन्हें लगे कि अपने निर्वाचित प्रतिनिधि को उन्हें वापस बुलाना है तो यह अधिकार उनको पहली दृष्टि में होना ही चाहिए। लेकिन लोकतंत्र की इस भूलभुलैया में यह कहना इतना आसान नहीं है। जब उस व्यक्ति को आपने निर्वाचित किया है तो फिर उसे बुला लेना क्या लोकतंात्रिक प्रक्रिया का अपमान नहीं है। वैसे भी इंग्लैण्ड की संसद को लोकतंत्र की मां कहा जाता है। इसलिए अपने निर्वाचित प्रतिनिधि को बुला लेना यह उसका कानूनी अधिकार हो सकता है। लेकिन अब तक कई वषोंर् से यह परम्परा थी कि जिसे भेजा है उसका सम्मान रखना है, इसलिए निर्वाचन अवधि समाप्त हो जाने के पश्चात वह स्वत: ही वहां नहीं रहने वाला है। इसलिए सांसदों को इतनी तो प्रतीक्षा करनी ही चाहिए कि जब आदमी स्वयं नहीं मरना चाहता है तो उसकी हत्या अथवा उसे आत्महत्या के लिए क्यों मजबूर करना चाहिए। यहां तक तो बात वाजिब है लेकिन लोकतंत्र में अब ऐसी घटनाएं घटने लगी हैं जिससे अलोकतांत्रिक गतिविधियों में संलिप्त व्यक्ति को व्यवस्था से निकल जाने पर मजबूर कर देना चाहिए। बेशर्म होकर वही नहीं निकलता है तो फिर क्या किया जाए। सदन को उत्तरदायी बनकर हटाने से पहले इस मुद्दे पर विचार करना आवश्यक है कि अपने सांसद को बुलाने का काम सदन ने नहीं किया, बल्कि उन मतदाताओं ने किया है जिन्होंने उन्हें निर्वाचित करके भेजा है। जब वे उसे अच्छा समझकर भेज सकते हैं तो उनके पैमाने पर खरा नहीं उतरने की स्थिति में वापस बुला लेते हैं तो इसमें क्या हर्ज है? सदन तो निर्जीव है उसमें जान तो सांसदों की है जिन्होंने उसे संविधान के माध्यम से मजबूत बना रखा है। आदमी बुराई का पुतला है तो वह अच्छा कर सकता है तो बुरा भी कर सकता है। अच्छाई के समय उसे लोगों ने निर्वाचित करके अपना प्रतिनिधि बनाया,जब उन्हें लगा कि अब वह उनकी कसौटी पर खरा नहीं है तो फिर वापस बुला लेेने में क्या बुराई है?
लोकतांत्रिक देशों में अपने निर्वाचित प्रतिनिधि को वापस बुला लेने के सम्बंध में चर्चाएं होती रही हैं। साम्यवादी संसदों में तो रूस सहित यह प्रथा अनेक देशों में है। भारत में भी इस पर समय-समय पर चर्चा होती रही है। जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन के समय भी यह मांग उठी थी। डाक्टर लोहिया ने भी संसद में इस पर अपने विचार व्यक्त किये थे। अभी कुछ दिनों पूर्व जब अण्णा हजारे का आन्दोलन चर्चित हुआ था उस समय भी इसके पक्ष में वातावरण बना था। लेकिन विश्व में जो संसद लोकतंत्र की मां कही जाती है उस ब्रिटिश पार्लियामेंट में यह आवाज बुलंद ही नहीं हुई बल्कि उसके संविधान में जो लिखित हिस्सा है उसका अंग भी बना दी गई। पिछले दिनों ब्रिटिश संसद में यह कानून पास कर लिया गया कि यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र के दस प्रतिशत पंजीकृत मतदाता अपने प्रतिनिधि को वापस बुला लेने का आग्रह करते हैं तो उन्हें यह अधिकार मिल जाएगा। इस प्रक्रिया को पूरी करने में दो माह का समय लगेगा, यानी उनके निर्वाचित सांसद की सदस्यता रद्द हो जाएगी और फिर वह सदन में नहीं बैठ सकेगा। उसके स्थान पर ब्रिटिश संसद के निर्वाचन के कानून के अंतर्गत दूसरा प्रतिनिधि चुन कर भेजने का अधिकार उन्हें दे दिया जाएगा। यानी उक्त निर्वाचन क्षेत्र में जो पहले सांसद था अब उसके स्थान पर क्षेत्र के लोगों का दूसरा प्रतिनिधि नेतृत्व करेगा। इस कानून के लागू हो जाने के पश्चात जो अनुभव आएगा उस पर दूसरे देशों में विचार अवश्य ही शुरू हो जाने वाला है,उनमें भारत भी एक हो सकता है। लेकिन हम देख रहे हैं कि हमारे चुनाव आयोग ने पिछले दिनों नोटा का कानून लागू किया। यानी मतदाताओं को चुनाव में खड़े होने वाले प्रतिनिधियों में कोई पसंद नहीं है तो वह नोटा यानी 'कोई भी नहीं' का बटन दबाकर अपना मत व्यक्त कर सकता है। 2014 के पिछले आम चुनाव और उससे पूर्व हुए कुछ विधानसभा के चुनावों में जब लोगों ने इस अधिकार का उपयोग किया तो उसकी आलोचना भी हुईं थी। सबसे बड़ा तर्क यह दिया जा रहा है कि जब आप मतदान के लिए केन्द्र पर पहुंच गए और उसके बाद कोई भी पसंद नहीं है तो फिर अपना समय बर्बाद करने आप मतदान केन्द्र पर गए ही क्यों? लेकिन यह तर्क देते हैं कि इससे राजनीतिक दलों पर यह दबाव आएगा कि आपकोे अपना उम्मीदवार बनाते समय दस बार सोचना पड़ेगा। इसी प्रकार यदि वापस बुला लेने का अधिकार मिलता है तो दो संदेश जाते हैं- पहला, राजनीतिक दल भविष्य में अपने उम्मीदवार का चयन करते समय दस बार विचार करेंगे। हो सकता है उनका प्रतिनिधि कौन हो इस पर उनके भीतर भी कोई स्थायी और प्रभावी प्रक्रिया जन्म ले।
यह एक प्रकार का फिल्टरेशन होगा,उम्मीदवार और राजनीतिक दल दोनों ही जिम्मेदार बनेंगे। आज तो निर्वाचित प्रतिनिधि पर आरोप लग जाने के पश्चात वह अदालत में सिद्ध हुआ है या नहीं इसकी पड़ताल करनी पड़ती है। इसलिए आपराधिक प्रवृत्ति के उम्मीदवार पर कोई पकड़ नहीं हो सकती है। पिछली संसद में भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध मीडिया और जनता ने खूब शोर मचाया लेकिन वे टस से मस नहीं हुए। अब यदि वापस बुला लेने का अधिकार निर्वाचन क्षेत्र की जनता को मिल जाता है तो उसका दस प्रतिशत हिस्सा ही इतना शक्तिशाली हो जाता है कि उक्त अपराधी प्रतिनिधि को सदन के बाहर का रास्ता बतला सकता है। इसलिए ब्रिटिश संसद के इस कानून का स्वागत हर लोकतांत्रिक देश करेगा। आज जिस तरह से लोकतंत्र पर संकट के बादल छा रहे हैं वे छटेंगे और जनता के प्रतिनिधित्व की गिरफ्त मजबूत बनेगी। यद्यपि इसके कुछ खतरे भी हैं जिससे निर्वाचित संसद अस्थिर हो सकती है। लेकिन वायरस के खतरे के नाम पर जीवन उपयोगी दवाओं का उत्पादन और प्रयोग बंद नहीं किया जा सकता है।
-मुजफ्फर हुसैन
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