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गृह मंत्रालय के वर्ष 2014 के आंकड़ांे में यह खुलासा हुआ है कि देश में हुई कुल 149 साम्प्रदायिक घटनाआंे में से उत्तर प्रदेश में ही 65 साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाएं हो चुकी हैं। अप्रैल से जून माह तक का यह आंकड़ा 32 पर था। साम्प्रदायिक हिंसा के मामले मंे प्रदेश पहले पायदान पर है। गत वर्ष 2013 में अकेले उत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिक हिंसा की 247 वारदातें हुई थीं जिनमें 77 लोगों क ी जानें चली गई थीं। अकेेले मुजफ्फनगर दंगों में ही अगस्त-सितम्बर माह में 60 लोग मारे गए थे। गत वर्ष देश में कुल 823 दंगों में 133 लोग मारे गए थे।
100 से अधिक दंगाइयों पर लगेगा 'रासुका'
सहारनपुर में 26 जुलाई को हिंसा फैलाकर लूटपाट करने वाले 100 से अधिक दंगाइयों पर पुलिस और प्रशासन ने रासुका (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) लगाने का निर्णय लिया है। मीडिया की वीडियो फु टेज की मदद से दंगाइयों की पहचान जारी है। इसके बाद घरों की तलाशी लेने का अभियान भी छेड़ा जाएगा। पुलिस ने हवा में गोली चलाने और लूटपाट करने वालों की छापेमारी भी शुरू कर दी है। इसके लिए विशेष टीम गठित की गई है।
सरकार करे नुकसान की भरपाई: फुल्का
वरिष्ठ अधिवक्ता एच. के. फुल्का ने केन्द्र सरकार से सहारनपुर दंगे में हुए नुकसान की भरपाई करने की मांग की है। उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मात्र तीन लोगों को मुआवजा अदा करने की घोषणा और अन्य प्रभावित दुकानदारों को मुआवजे की घोषणा न करने को गलत बताया है। उन्हें सहारनपुर में सिखों के हुए नुकसान के बारे में सिख प्रतिनिधिमंडल ने मिलकर अवगत कराया है कि राज्य सरकार पीडि़तों को मुआवजा नहीं दे रही है। फुल्का ने कहा कि राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह व्यावसायिक संपत्ति के नुकसान की भरपाई करे।
मुआवजे का खेल शुरू
मुजफ्फरनगर दंगों के बाद उत्तर प्रदेश में मुसलमानों को मुआवजा देने के चलते पहले ही सरकार पर वर्ष 2013 में गंभीर आरोप लग चुके हैं। उस समय लोगों को अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा था। सहारनपुर दंगे की आग अभी शांत भी नहीं हुई है कि 'पीडि़तों' ने सरकारी अस्पताल और खुफिया विभाग के दफ्तरों के चक्कर काटने शुरू कर दिए हैं। हैरानी की बात यह है कि अभी प्रकाश में आए नामों में मुस्लिम वर्ग के लोग ही हैं। माना जा रहा है कि कर्फ्यू हटने के बाद एक बार फिर से उत्तर प्रदेश में मुआवजे की राजनीति गरमानी शुरू हो जाएगी।
'एनएचआरसी' को दी सफाई
हाल ही में मुजफ्फरनगर में हुए दंगों को लेकर एनएचआरसी (राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग) ने प्रदेश के अधिकारियों की बैठक बुलाई थी। बैठक में तत्कालीन प्रमुख सचिव (गृह) अनिल कुमार गुप्ता ने अपना तर्क दिया था कि मुजफ्फरनगर और शामली में रहने वाले मुसलमान गरीब और ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले थे, इसलिए उन्हें चुना गया था। साथ ही यह तर्क दिया था कि मेरठ में रहने वाले मुसलमान आर्थिक रूप से संपन्न हैं और उनका विदेशों में करोड़ों रुपयों का वार्षिक कारोबार होता है, इसलिए वहां दंगा नहीं भड़का। लेकिन उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया था कि आखिर दंगा भड़काने वाले कौन थे और गरीब मुसलमानों को निशाना बनाकर उन्हें क्या मिला?
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