आल्हा ऊदल
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शराज महोबे के प्रमुख दरबारी थे और देवल उनकी पत्नी। उनके पास नौलखा हार था, इतना सुंदर कि जो भी देखता मुग्ध हो जाता। मांडा का राजा कलिंगराय उस हार को पाना चाहता था। इसके लिए उसने एक बार बिठूर में गंगा स्नान के मेले पर देशराज से दो-दो हाथ भी किए थे। किंतु तब युद्ध में सफल न हो सका तो चोरों की तरह देशराज के भवन में घुसकर उसने देवल का वह हार चुरा लिया। इतना ही नहीं, उसने सोते हुए देशराज और उसके भाई वत्सराज को भी बांध लिया और उन्हें अपने साथ मांडा ले गया। वहां ले जाकर उसने दोनों भाइयों के सिर कटवा डाले और उनकी खोपडि़यों को महल के कंगूरों में टंगवा दिया।
यह समाचार महोबा पहुंचा तो हाहाकार मच गया। देशराज के सभी मित्रों ने शत्रु से बदला लेने का निश्चय किया, किंतु देवल देवी ने उन्हें रोक दिया। उसने कहा, अभी शांत हो जाओ भाइयों ! जब मेरा बच्चा बड़ा हो जाएगा तो वह स्वयं अपने पिता की हत्या का बदला लेगा, उस समय तुम लोग मेरी सहायता करना। देवल का पुत्र आल्हा उस समय चार वर्ष का था। ऊदल का जन्म उसके पिता की हत्या के कुछ माह बाद हुआ था।
आल्हा और ऊदल-दोनों ही देवल की आशाओं के केंद्र बन गए। जब वे थोड़े बड़े हुए तो देवल स्वयं उन्हें युद्ध की शिक्षा देने लगी। वह उन्हें जंगलों में ले जाती और हथियार चलाना सिखाती, कभी शिकार कराती, कभी घुड़सवारी और कभी उन दोनों भाइयों को आपस में भिड़ाकर उन्हें मल्ल-युद्ध के दांव-पेंच बतलाती। रात्रि को सोने से पहले उन्हें रामायण और महाभारत की कथाएं सुनाती। अपने पति देशराज की मृत्यु से उसके हृदय में एक प्रचंड ज्वाला धधक रही थी। वह सदा सोचा करती कि कब मेरे पुत्र बड़े होंगे और अपने पिता की मृत्यु का बदला लेंगे।
आल्हा सोलह वर्ष का हो चुका था और ऊदल बारह वर्ष का। दोनों भाइयों का सुगठित शरीर और चेहरे का तेज जो भी देखता वह देखता ही रह जाता। उनकी वीरता की कहानियां भी अब महोबे की सीमाएं पार करके दूर-दूर तक पहुंच चुकी थीं।
किंतु उन्हें अब तक इस बात का पता न था कि उनके पिता का किसी ने वध किया है और एक दिन जब ऊदल को किसी प्रकार यह ज्ञात हुआ तो वह क्रोध से कांप उठा और भागकर अपनी मां के पास पहुंचा।
मां, मां! क्या यह सच है कि मेरे पिता की किसी ने हत्या की है? ऊदल ने कहा। उसकी तलवार अब तक म्यान छोड़कर बाहर आ चुकी थी। मां चुप थी। ऊदल ने फिर कहा, तब तूने मुझे अभी तक यह सब कुछ बताया क्यों नहीं। ऊदल की आंखों से चिंगारियां निकल रही थीं। देवल ने कहा, नहीं नहीं बेटा अभी नहीं, समय आने पर मैं सबकुछ तुझे बता दूंगी। अभी तू बहुत छोटा है मेरे लाल ! नहीं, मां, तुम्हें यह सबकुछ अभी बताना होगा। अब मेरी यह तलवार पिता की मृत्यु का बदला लिए बिना म्यान में नहीं जा सकती। ऊदल ने कहा।
ऊदल का मुंह तमतमा उठा, उसके नेत्र अग्नि बरसाने लगे। उसने शपथ ली कि मैं अपने पिता की हत्या का बदला लिए बिना महोबे में नहीं लौटूंगा। ऊदल, आल्हा अपने मित्रों को लेकर घर से निकल पड़ा।
मांडा के वनों में उनकी पूरी मंडली ने गवैयों के वेष में डेरा डाल दिया। अगले ही दिन उन्होंने मांडा पर आक्रमण कर दिया। कलिंगराय को समाचार मिला तो वह हाथी पर चढ़कर उनसे युद्ध करने आया। तलवार चलने लगीं। ऊदल ने तलवार से कलिंगराय के हौदे की रस्सी काट दी, वह हौदे समेत हाथी से नीचे आ गिरा। ऊदल ने उसे बंदी बना लिया। महोबे की सेनाएं खुशी से विजय नाद कर उठीं। ऊदल मांडा के राजमहल में घुस गया। वहां उसने रानी से अपनी मां का नौलखा हार छीन लिया और महल के कंगूरे से अपने पिता की खोपड़ी भी उतार ली।
वे कलिंगराय को लेकर देवल के सामने पहुंचे। अपने पति की खोपड़ी देखकर वह विचलित हो उठी। आल्हा-ऊदल ने कहा मां! रोओ मत हमने अपने पिता की मृत्यु का बदला ले लिया है। उनका हत्यारा बंदी के रूप में आपके सामने उपस्थित है और आपका यह नौलखा हार आपके चरणों में पड़ा है। बोलो इस पापी को क्या दंड दिया जाए। देवल का मुख-मंडल गंभीर हो उठा। उसने आगे बढ़कर कहा, मेरे बच्चों, छोड़ दो इसे, इसे मार देने से क्या तुम्हारे पिता जीवित हो जाएंगे और माता की आज्ञा से उसके वीर पुत्रों ने अपने पिता के हत्यारे के बंधन खोल दिए। मां ने दोनों बेटों को छाती से लगा लिया।
ल्ल बालचौपाल डेस्क
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