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सहारनपुर का सच :मसूद ने फिर उगला जहर

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Aug 2, 2014, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 02 Aug 2014 15:08:01

सहारनपुर से सांसद राघव लखनपाल ने सहारनपुर दंगे के पीछे कांग्रेस नेता इमरान मसूद और सपा नेता पप्पू अकरम का हाथ होने का आरोप लगाया है। ये वही मसूद हैं जिन्होंने लोकसभा चुनाव से पूर्व एक सभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लेकर भी आग उगली थी। सहारनपुर में जो कुछ भी हुआ उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पूरी घटना को अचानक नहीं, बल्कि एक सुनियोजित तरीके से पूरी तैयारी करने के बाद उसे अंजाम दिया गया है। सहारनपुर में जिस तरीके से करोड़ों रुपये की संपत्ति को नुकसान पहंुचाया गया और दंगाइयों द्वारा लूटपाट की वारदात से स्पष्ट हो गया है कि पूरी तैयारी के बाद ही सहारनपुर में दंगा भड़काया गया है। पुलिस अधिकारी इसकी भी जांच कर रहे हैं कि किस-किस नेता ने भीड़ को भड़काया और उनके कहने पर फसाद बढ़ गया। इस प्रकरण पर मेरठ जोन के पुलिस महानिरीक्षक आलोक शर्मा ने स्पष्ट कर दिया कि हिंसा में लिप्त उपद्रवी किस के इशारे पर काम कर रहे थे, उसे खोजा जा रहा है और टीवी समाचार चैनलों के पास उपलब्ध फुटेज की मदद से जल्द ही उपद्रवियों का चेहरा बेनकाब कर दिया जाएगा। यही नहीं प्रशासन को धता बताकर पुलिस चौकी में घुसकर तोड़फोड़ की गई और दंगे में मदद के लिए सरकारी तंत्र को रोकने की भी पूरी तैयारी की गई थी। इसके लिए दंगाइयों ने दमकल विभाग के कार्यालय में पहंुचकर तोड़फोड़ की। प्रशासन की इससे बड़ी असफलता क्या होगी कि आगजनी को रोकने के लिए सरसावा एयरफोर्स स्टेशन और उत्तराखंड से दमकल की गाडि़यों को बुलवाना पड़ा।
मुआवजे की घोषणा
दंगे में मरने वाले लोगों के आश्रितों को सपा सरकार ने दस-दस लाख रुपये और घायलों को 50-50 हजार रुपये की आर्थिक मदद देने की घोषणा की है।
दंगे की थी पूरी आशंका
हर बार की तरह इस बार भी खुफिया विभाग का दावा था कि श्रावण मास में उत्तर प्रदेश के सहारपुर सहित मुजफ्फरनगर, मेरठ और कई अन्य जिलों में साम्प्रदायिक हिंसा शरारती तत्व फैला सकते हैं। लेकिन पूर्व सूचना के बावजूद प्रशासन और पुलिस सहारनपुर में हुई हिंसा को नहीं रोक सके।
20 बार हो चुकी है हिंसा
सहारपुर में मुस्लिम व सिखों के बीच यह पहली बार नहीं है कि जब हिंसा हुई है, पिछले चार वर्षों में कम से कम 20 बार दोनों के बीच विवाद गहरा चुका है, लेकिन इस बार विवाद ने दंगे का रूप धारण कर लिया और निर्दोष लोग उसकी भेंट चढ़ गए। 100 गज भूमि के विवाद के फेरे में निर्दोष लोगों की हत्या और कारोबारियों से उनका रोजगार छीनने की घटना ने सहारनपुर के दामन पर दाग लगा दिया है। सवाल यह उठता है कि अचानक कुतुबशेर थाने के आसपास हजारों लोगों की भीड़ कैसे पहंुच गई और जिलाधिकारी व वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से बातचीत करने वाले नेताओं के जाते ही भीड़ ने उग्र रूप धारण कर लिया। उपद्रवी हथियारों से लैस थे और अधिकांश घायलों को गोली लगी है या फिर उन पर धारदार हथियार से वार किया गया है।
बेबस दिखा पुलिस-प्रशासन
कुतुबशेर के सामने पुरानी मंडी में दंगाइयों ने पुलिस और अतिरिक्त सुरक्षा बल के जवानों को चुन-चुन कर निशाना बनाया। ऐसे में पुलिस अधिकारी खुद की जान बचाने के लिए इधर-उधर जगत तलाशते रहे। दंगाइयों ने पुलिस पर कई बार पथराव करने के साथ-साथ गोली भी चलाई। हैरानी की बात यह कि 29 जुलाई को ईद के मद्देनजर पहले ही से पुलिस-प्रशासन की जिम्मेदारी तय कर दी गई थी, लेकिन फिर भी उपद्रवी मनमानी करने में कामयाब रहे।
मुजफ्फनगर हिंसा की याद हुई ताजा
सहारनपुर में भड़के दंगे के दौरान मंडी थाना क्षेत्र में मोटरसाइकिल पर सवार बदमाशों ने पहले लोगों से उनके नाम पूछे और बाद में उन पर गोली चला दी। कारोबारी हरीश कोचर को भी इन्हीं बदमाशों ने अपनी गोली का शिकार बनाकर मौत के घाट उतार दिया। गौरतलब है कि गत वर्ष अगस्त-सितम्बर माह में मुजफ्फनगर जिले में भड़की हिंसा के दौरान कवाल में भी नाम पूछ-पूछ कर हिन्दुओं को गोली का निशाना बनाया गया था।
एसजीपीसी ने किया दौरा
सहारनपुर जिले में सिख पंथ को पूर्व नियोजित षड्यंत्र के तहत निशाना बनाये जाने का शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) ने कड़ा विरोध किया है। एसजीपीसी के अध्यक्ष जत्थेदार अवतार सिंह मक्कड़ ने कहा है कि सहारनपुर में असामाजिक तत्वों द्वारा गुरुद्वारा सिंह सभा में किए गए पठराव व सिखों की दुकानों को आग लगाने की घटना दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक को फोन कर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की मांग की। साथ ही इस पूरे मामले की जांच के लिए एक समिति गठित कर उसे सहारनपुर का निरीक्षण करने भेजा था। इस तीन सदस्यीय समिति में शामिल जत्थेदार सुखदेव सिंह भौर, भाई राजिंदर सिंह मेहता और करनैल सिंह पंजोली के दल ने अपनी रपट में स्पष्ट किया है कि सहारनपुर में गुरुद्वारा सिंह सभ द्वारा भूमि खरीदी गई थी। किसी शरारती तत्व ने यह अफवाह फैला दी कि इस भूमि पर 1947 से पहले मस्जिद का निर्माण था, जबकि माल विभाग के रिकार्ड व पुराने समय से रहने वाले स्थानीय निवासियों से ऐसा कोई विवरण नहीं मिला। उनके मुताबिक उच्च अदालत से भी विवादित भूमि का निर्णय गुरुद्वारा सिंह सभा के पक्ष में हुआ था। रपट में लिखा गया है कि गुरुद्वारे में लेंटर डाला जा रहा था जिसका मुसलमानों ने विरोध शुरू कर दिया और देखते ही देखते पूरे शहर को आग के हवाले कर दिया। हिंसा में सिखों की दुकानों को आग के हवाले कर दिया गया और उनकी संपत्ति को भारी नुकसान पहंुचाया गया है। दूसरी तरफ राष्ट्रीय सिख संगत के राष्ट्रीय अध्यक्ष गुरचरन सिंह गिल ने सहारनपुर हिंसा की कड़ी निंदा की है। उन्होंने प्रदेश के मुख्यमंत्री से दोषियों को सख्त सजा दिलाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि सिख पंथ चैन और अमन पसंद है, लेकिन जो कुछ सहारनपुर में सिखों के साथ हुआ वह बेहद दुखद है।
पंजाब तक पहंुची सहारनपुर की लपट
सहारनपुर में हुई हिंसा के विरोध में सिख समर्थकों ने 27 जुलाई को गुरदासपुर में बंद का आह्वान किया। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश सरकार के विरूद्ध प्रदर्शन व नारेबाजी की गई और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की गई। होशियारपुर में भी सहारनपुर की घटना के खिलाफ बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने टांडा चौक में उत्तर प्रदेश सरकार का पुतला फूंका।

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