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आज इस बात को लगभग पचहत्तर साल से ज्यादा हो गए जब 9 सितम्बर 1938 को लखनऊ से पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में नेशनल हेराल्ड समाचार-पत्र की स्थापना हुई थी। जब यह अखबार प्रकाशित किया गया तो इसके मास्टर-हेड पर इसका उद्देश्य साफ तौर पर लिखा था। मास्टर-हेड पर लिखा था फ्रीडम इज इन पेरिल, डिफेंड इट विद ऑल योर माइट अर्थात स्वतंत्रता खतरे में है और सबके साथ मिलकर इसकी रक्षा करनी है। सन 1938 से लेकर सन 2008 तक कई तरह के उतार-चढ़ाव से होते हुए नेशनल हेराल्ड दिल्ली संस्करण का प्रकाशन होता रहा। इस दरम्यान दो-तीन दौर ऐसे भी आये जब इस अखबार का प्रकाशन कुछ समय के लिए बंद भी करना पड़ा। लेकिन एक दौर ऐसा भी आया कि उतार-चढ़ाव से होते हुए 1 अप्रैल 2008 को नेशनल हेराल्ड के बोर्ड सदस्यों द्वारा इस बात की घोषणा की गयी कि तकनीकी अक्षमता के कारण इस अखबार के एकमात्र चल रहे दिल्ली संस्करण को भी बंद किया जा रहा है। इसके पहले सन 1995 में नेशनल हेराल्ड का लखनऊ संस्करण भी कर्मचारियों के वेतन आदि के नाम पर नीलाम किया जा चुका था। हालांकि यह प्रमाणित तथ्य है कि अपनी स्थापना से लेकर आजतक इस अखबार में नेहरू एवं इंदिरा गांधी परिवार का हस्तक्षेप व्यापक रहा है। 1 अप्रैल 2008 को अखबार बंद होने के बाद के घटनाक्रमों में जो तथ्य सामने आ रहे हैं वो न सिर्फ नेशनल हेराल्ड बल्कि नेहरू-गांधी परिवार के ऊपर भी सवाल उठाते हैं। तबके दौर का वो मिशनरी उद्देश्यों का अखबार आज घोटाले की शक्ल में पहचाना जा रहा है। आज नेशनल हेराल्ड की चर्चा बतौर अखबार नहीं बल्कि बतौर नेशनल हेराल्ड घोटाला से हो रही है। दरअसल 2008 के बाद नेशनल हेराल्ड मामले में पैसों का ऐसा घुमावदार मकड़तंत्र फैलाया गया है जिसके घेरे में सीधे तौर पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी एवं उनके सुपुत्र कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी आ चुके हैं। दिल्ली की पटियाला हाउस अदालत ने सुब्रह्मण्यम स्वामी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी के खिलाफ समन जारी कर दिया है। दरअसल पूरा मामला ये है कि अखबार बंद होने के बाद कांग्रेस ने नेशनल हेराल्ड के प्रकाशक एसोसिएट जनरल को 90 करोंड़ का ब्याजमुक्त कर्ज दिया था। यहाँ बड़ा सवाल है कि आखिर कोई राजनीतिक दल किसी अखबार समूह को किस बुनियाद पर ब्याजमुक्त कर्ज मुहैया करा रहा है ? जबकि यह आरपीए एक्ट का सीधा उल्लंघन है। हालांकि मामला यहीं खत्म नहीं होता बल्कि इसके तार आगे भी और संदिग्ध रूप में जुड़ते जाते हैं। कांग्रेस द्वारा दिये गए ब्याजमुक्त कर्ज के बाद अखबार शुरू नहीं होता बल्कि चार साल बाद 26 अप्रैल 2012 को अखबार के प्रकाशक एसोसिएट जनरल का मालिकाना हक यंग इण्डिया कंपनी को मात्र 50 लाख में दे दिया जाता है। जिस यंग इंडिया को एसोसिएट जनरल अर्थात नेशनल हेराल्ड का मालिकाना हक दिया जाता है उस कम्पनी में सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी की संयुक्त तौर पर 76 फीसदी की साझेदारी है। बाकी शेष 24 फीसदी में आस्कर फनांर्िडस एवं मोतीलाल वोहरा साझेदार हैं। तीसरी एक और बात है जो इस पूरे मामले के झोल को घोटाले की स्थिति तक पहुंचाती है वो है कि जब मात्र 50 लाख में सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी की अधिकतम साझेदारी वाली यंग इण्डिया एसोसिएट जनरल अर्थात नेशनल हेराल्ड का अधिग्रहण कर रही थी उस दौरान नेशनल हेराल्ड की परिसम्पतियां लगभग 1600 करोड़ के आसपास थीं। हालांकि पूरे देश की परिसम्पतियों को जोड़ दिया जाय तो यह 5000 करोंड़ के आसपास आंकी गयी है।
लेन-देन और हेर-फेर के इस पूरे मसले में दो स्तर पर सवाल उठ रहे हैं। पहला सवाल तो खुद कांग्रेस पार्टी के ऊपर उठ रहा है। आरपीए एक्ट एवं आयकर विभाग के मुताबिक यह स्पष्ट नियामक तय है कि कोई भी राजनैतिक दल किसी व्यापारिक कारोबार आदि में बिलकुल भी निवेश नहीं कर सकती है। साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया है कि अगर इस प्रकार का कोई आरोप किसी राजनीतिक दल के ऊपर साबित होता है तो उसकी चंदे में मिली आयकर छूट को रद्द कर दिया जाएगा। यही वो मुद्दा है जिसको लेकर भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी अदालत में शिकायत दर्ज करा चुके हैं। सुब्रह्मण्यम स्वामी द्वारा दायर शिकायत में प्रथम दृष्टया ही यह नजर आता है कि एक राजनैतिक दल के तौर पर कांग्रेस ने किसी व्यापारिक कारोबार में रुचि दिखाई है। चूंकि एसोसिएट जनरल को कांग्रेस फंड से ब्याजमुक्त कर्ज देना आयकर नियामकों का सीधा उल्लंघन है। बेशक कांग्रेस यह दलील दे रही हो कि यह कर्ज उसने नेशनल हेराल्ड के कर्मचारियों के हितों में दिया था लेकिन अगर यह आरोप साबित हो जाता है तो कांग्रेस की आयकर में मिली छूट रद्द होनी तय है। इस मामले में दूसरा जो आरोप बनता दिख रहा है वो सीधे तौर पर गांधी परिवार को सवालों के कटघरे में खड़ा करता है। ऐसा लगता है कि कांग्रेस द्वारा सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी की कंपनी को लाभ पहुंचाया गया है। सवाल उठता है कि आखिर नब्बे करोड़ के कर्ज के बाद नेशनल हेराल्ड शुरू होने की बजाय बंद क्यों हो गया? 1600 करोड़ की सम्पतियों वाले समूह को नब्बे करोंड़ कर्ज लेने के बाद मात्र पचास लाख में बिकने की नौबत क्यों आ गयी? जिस कंपनी नें 1600 करोड की सम्पतियों वाले एसोसिएट जनरल को मात्र पचास लाख में अधिगृहीत किया उस समूह का अधिकतम हिस्सेदार सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी का होना महज इत्तेफाक तो नहीं ही कहा जा सकता है ? इन तमाम सवालों के तार आपस में उलझते हुए सिर्फ एक जगह जाकर जुड़ते हैं और वो जुड़ाव नेहरू-गांधी परिवार से सीधा नजर आता है। भाजपा नेता एवं देश के बड़े एक्टिविस्ट सुब्रह्मण्यम स्वामी नें वित्त मंत्री अरुण जेटली को पत्र लिखकर इस पूरे मामले की आयकर विभाग से जांच कराने की मांग की है,जो कि जायज मांग है। हालांकि अरुण जेटली खुद भी 2013 में इस मामले को उठा चुके हैं लेकिन तब कांग्रेस की सरकार थी और मामला दब गया। यहां पूरा मामला कंपनियों का जाल फैलाकर लूटतंत्र का नजर आता है। अगर जांच कराई जाय तो इस पूरे मामले में सोनिया गांधी और राहुल गांधी के अलावा कांग्रेस के गलें में आयकर विभाग का पंजा पड़ सकता है। कंपनियों का खेल खेलकर पैसे को इधर से उधर करने का यह घोटाला सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता है। यहां पूरा अवैध ढंग से एक सम्पति को दूसरे के नाम से हस्तांतरित करने का मामला भी नजर आता है। फिलहाल इस मामले में कई सवाल हैं जिनकी जांच के बाद कई तह और खुलकर सामने आयेंगी।
इस पूरे मामले पर विस्तृत पक्ष रखते हुए वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय कहते हैं नेशनल हेराल्ड कांग्रेस द्वारा संचालित आजादी का अखबार था जिसे जवाहरलाल नेहरू ने जेल से आने के बाद सन 1938 में शुरू किया था। नेशनल हेराल्ड की नींव लखनऊ के केसरबाग स्थित ईसाई मिशन स्कूल में रखी गयी थी। इसे आजादी के दौरान कांग्रेस का अखबार भी कहा जाता था। अपनी स्थापना के शुरुआती दौर में ही अंग्रेजों द्वारा कुछ सालों के लिए इसे बंद भी करा दिया गया, लेकिन इसका पुन: प्रकाशन शुरू हुआ। जिस नेशनल हेराल्ड की स्थापना नेहरू नें की थी उस नेशनल हेराल्ड का लखनऊ संस्करण तो 1995 में ही नीलाम कर दिया गया। नीलामी के कारण के तौर पर बताया गया था कि कर्मचारियों का चार करोड़ का वेतन बाईस महीने से बकाया है। नेशनल हेराल्ड लखनऊ की इसी नीलामी के बाद प्रेस क्लब लखनऊ गए अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था जो नेशनल हेराल्ड नहीं चला सकता वो देश क्या चलाएगा। जिस विवादित नेशनल हेराल्ड की बात आज हो रही है उस नेशनल हेराल्ड में विवादों की पृष्ठभूमि तब लिखी जा रही थी जब इंदिरा गांधी के दौर में यशपाल कपूर की देखरेख में यह अखबार चल रहा था, उस दौरान इंदिरा गांधी के रसूख का इस्तेमाल कर यशपाल कपूर नें भोपाल,इंदौर, मुंबई एवं पटना में कौडि़यों के भाव जमीन अखबार के नाम पर ले ली। हालांकि वहां अखबार की बजाय अन्य व्यापार चलाए गए। अर्थात, नेशनल हेराल्ड में सरोकार तो इंदिरा के दौर में ही दम तोड़ चुके थे और अर्थ प्राथमिक हो चुका था। नेहरू ने जिस उद्देश्य से हेराल्ड को शुरू किया था, बाद के कांग्रेसी उन उद्देश्यों को भूल गए। आज जब 2008 के बाद इसमें घोटाले की बात सामने आई है तो स्पष्ट है कि इसमें सोनिया गांधी और राहुल गांधी को न तो पत्रकारिता से कोई लेना देना है और न ही उनके लिए हेराल्ड के ही कोई मायने हैं। सब्रह्मण्यम स्वामी ने अगर नेशनल हेराल्ड के नाम दो हजार करोड़ की सम्पति होने का दावा किया है तो इसकी जांच होनी चाहिए। इस दावे को खारिज नहीं किया जा सकता है। यह एक बड़े लूटतंत्र की तरफ इशारा है, जिसकी जांच होनी चाहिए।
शिवानन्द द्विवेदी
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