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साफ दिखेगा बनारसी असर
पूर्वी उत्तर प्रदेश की 33 संसदीय सीटों में से 15 सीटों पर सात मई व 18 सीटों पर 12 मई को मतदान होना है। शायद यही कारण है कि इन सीटों पर कई दलों के प्रत्याशी या तो अभी तक तय नहीं हैं या उन्हें बदलने की कार्यवाही चल रही है, लेकिन इन सबसे इतर कई महत्वपूर्ण सीटों पर चुनाव प्रचार परवान चढ़ने लगा है। वाराणसी, आजमगढ़, गोरखपुर, अमेठी, सुल्तानपुर, देवरिया, मिर्जापुर, गाजीपुर, बस्ती और फूलपुर संसदीय सीटें नामी प्रत्याशियों के कारणों से चर्चा में बनी हुई हैं।
वाराणसी से भाजपा ने नरेंद्र मोदी को प्रत्याशी बनाया है। इनके विरुद्ध सपा से कैलाश चौरसिया, बसपा से विजय प्रकाश, आआपा से अरविंद केजरीवाल व कौमी एकता दल के मुख्यतार अंसारी मैदान में हैं। कांग्रेस अभी अपना प्रत्याशी खोज रही है। यहां मोदी लहर के आगे कोई टिकता नहीं दिखाई पड़ रहा है। आजमगढ़ से सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव मैदान में हैं। उनका मुकाबला भाजपा प्रत्याशी और निवर्तमान सांसद रमाकांत यादव, बसपा प्रत्याशी और विधायक शाह आलम इलियास, कांग्रेस के अरविंद जयसवाल तथा कौमी एकता दल के प्रत्याशी से है। वह मुस्लिम वोट का जो गणित जोड़ कर यहां आये थे, वह फिलहाल कोसों दूर है। गोरखपुर सीट पर पिछले 25 वर्षों से भगवा फहरा रहा है। भाजपा प्रत्याशी योगी आदित्यनाथ के मुकाबले सपा के प्रत्याशी राजनीत निषाद, बसपा के रामजुआल निषाद कांग्रेस के अष्टभुजा तिवारी और आआपा के प्रो. राधे मोहन मिश्र मैदान में हैं लेकिन उनका विजयरथ इस चुनाव में भी रुकने वाला नहीं है।
अमेठी राहुल गांधी पुन: मैदान में हैं उनको कड़ी चुनौती देने के लिए भाजपा ने स्मृति इरानी को मैदान में उतारा है तो दूसरी ओर आआपा ने कुमार विश्वास को सामने लाकर मुकाबले को रोचक बना दिया है। सुलतानपुर से भाजपा ने वरुण गांधी को मैदान में उतारा है तो कांग्रेस से अनीता सिंह मैदान में हैं, सपा ने शकील अहमद और बसपा ने पवन पांडेय को प्रत्याशी बनाकर मुकाबले को रोचक बनाने की कोशिश की है, लेकिन यदि इस सीट के अतीत पर नजर डालें तो जब-जब भाजपा लहर रही है यह सीट भाजपा के खाते में गई है। देवरिया से भाजपा के कलराज मिश्र चुनाव लड़ रहे हैं। फिलहाल यह सीट बसपा के पास है। वर्ष 1996 और 1999 में यह सीट भाजपा के पास थी।
मिर्जापुर में इस बार भाजपा और क्षेत्रीय दल ह्यअपना दल ह्ण में हुए आपसी समझौते में यह सीट अपना दल के खाते में गयी है। अपना दल ने यहां से अनुप्रिया पटेल को उतारा है।
गाजीपुर संसदीय सीट कई कारणों से चर्चा में है। पहले तो यह कि सपा ने अपने सांसद राधे मोहन का टिकट काट कर बाबू राम कुशवाहा की पत्नी सुकन्या को प्रत्याशी बनाया है तो दूसरी ओर कौमी एकता दल की ओर से डीपी यादव के आने की भी चर्चा है। बसपा ने कैलाश नाथ सिंह और कांग्रेस के मो. मकसूद खां के मुकाबले भाजपा ने 1996 और 1999 में सांसद रहे मनोज सिन्हा को मैदान में उतारा है। मोदी का जादू इस सीट पर भी चलेगा। बस्ती की सीट इसलिए चर्चा में है क्योंकि यहां के मतदाता राष्ट्रीय दलों के साथ जुड़ना पसंद करते हैं वर्ष1996, 98, 99 में बस्ती की यह सीट भाजपा के खाते में रही थी। रामजन्मभूमि अयोध्या के समीप इस सीट के मतदाता राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले परिवर्तन से खूब वाकिफ है। बसपा के अन्तर्विरोध और सपा से नाराज मतदाताओं का फायदा इस बार भाजपा को मिलने की पूरी उम्मीद है। फूलपुर संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस को ढंग के प्रत्याशी तक नहीं मिले इसलिए कांग्रेस ने क्रिकेटर मो. कैफ को मैदान में उतारा है। बसपा ने अपने सांसद कपिल मुनी करवरिया को प्रत्याशी बनाया है। भाजपा ने केशव प्रसाद मौर्य को उतारा है।
हरिमंगल
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