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-विवेक शुक्ला-
कांग्रेस चाहती है कि अगर वह फिर से सत्तासीन हो जाती है, तो निजी क्षेत्र में वंचितों-पिछड़ों की नौकरियों के लिए आरक्षण सुनिश्चित करने के लिए आम सहमति बनाए। वैसे, ये दूर की संभावना है क्योंकि देश के उद्योग जगत के संगठनों ने कांग्रेस के इरादे की कठोर निंदा की है।
बहरहाल, अच्छी बात यह है कि अब सैकड़ों-हजारों वर्ष से दबे-कुचले वंचित-पिछड़े छोटी मोटी नौकरी करके ही खुश नहीं हैं। वे अब व्यापार की दुनिया में भी जगह बना रहे हैं, उद्यमी बन रहे हैं। इनके तमाम सपने हैं, जिन्हें ये साकार करना चाहते हैं। अब इन्होंने फिक्की, एसोचैम और सीआईआई की तर्ज पर अपना संगठन बना लिया है, 'दलित इंडियन चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज' (डिक्की)। बेशक, अगर वंचित वर्ग के लोग उद्यमिता की तरफ गए हैं तो इसकी वजह है, सार्वजनिक क्षेत्र में रोजगारों के मौकों की कमी। 1997 में, सार्वजनिक क्षेत्र में रोजगार 197 लाख थे, पर उसके बाद इसमें लगातार गिरावट आई और 2007 में ये 180 लाख पर आ गए। इसी के साथ आरक्षण का एक तरह से वास्तविक अंत भी हो गया।
वंचित वर्ग के उद्यमियों की व्यापार जगत में सफलता का श्रेय ह्यआउटसोर्सिंगह्ण और सहायक उद्योगों को दिए गए प्रोत्साहन को दिया जा रहा है। एक राय यह भी है कि खुदरा बाजार में एफडीआई का 'भारत में वंचित वर्ग के उभरते उद्यमियों के वर्ग पर' सकारात्मक असर हो रहा है। इनकी दलीलों का मुख्य आधार यह है कि पारंपरिक, जातिबद्घ खुदरा क्षेत्र वंचित उद्यमियों के लिए अवसर मुहैया नहीं कराता है। एफडीआई आधुनिक और जाति-निरपेक्ष है, इसलिए इस वर्ग के उद्यमियों के लिए फायदेमंद है।
डा़ चंद्रभान प्रसाद वंचित वर्ग के चिंतक हैं। उन्होंने अपने हाल के एक शोध में पाया कि आर्थिक उदारीकरण का दौर वंचितों के लिए और खास तौर से इस वर्ग के उद्यमियों के लिए फायदेमंद रहा। इन्हें तमाम क्षेत्रों में अपने लिए जगह बनाने का मौका मिला।
बेशक, कोई भी समाज, जो कठिन दौर से गुजरता है, संघर्ष करता है, एक दिन तरक्की जरूर करता है। वंचित वर्ग के उद्यमियों ने विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष किया और संपन्न बने। आज वंचित वर्ग के लोग व्यापार में अपनी क्षमताओं से आगे बढ़ रहे हैं।
देवानन्द लोंधे वंचित वर्ग के उद्यमी हैं। वे महाराष्ट्र के सांगली शहर के छोटे से गांव, हिंगनगांव में दस्ताने बनाने का काम करते हैं। उनकी कंपनी की खासियत यह नहीं है कि वह दस्ताने बनाती है, बल्कि यह है कि उनकी कंपनी से बने सौ फीसदी दस्ताने निर्यात होते हैं। महज चार साल पुरानी कंपनी का साल का कारोबार अस्सी लाख पर पहुंच गया है। वे चाहते तो अधिक उत्पादन वाली मशीनें लगाकर अपने कर्मचारियों की संख्या कम कर सकते थे, लेकिन उनका मकसद सिर्फ व्यवसाय करना नहीं था। गांव में जिनके पास रोजगार नहीं था, उनके लिए रोजगार पैदा करने की इच्छा लेकर वे अफगानिस्तान से अपने गांव लौटे थे। देवानन्द ने अपनी कंपनी में 150 महिलाओं के लिए रोजगार की व्यवस्था की। महिलाओं को रोजगार देने के पीछे उनकी दूरदर्शिता भी नजर आती है। चूंकि पैसा महिला के हाथ में आएगा तो उससे पूरे परिवार का सही सही विकास होगा।
विपरीत हालातों में 20 साल के लंबे प्रयास के बाद तीन साल पहले स्वप्निल भिंगारदवे महाराष्ट्र के पहले वंचित वर्ग के चीनी मिल मालिक बने। उन्होंने 250 लोगों को रोजगार दिया है। महाराष्ट्र में वंचित वर्ग के इन युवा उद्यमियों के बढ़ते कदमों की चाल अभी धीमी है, लेकिन हौसले बुलन्द हैं। 300 वंचित कारोबारियों से मिलकर बनी 'डिक्की' का साल का संयुक्त 'टर्नओवर' पांच हजार करोड़ रु. है। अभी यह पहल अपनी शैशवावस्था में है।
इसमें कोई शक नहीं कि पूंजीवादी भावना के कारण ही वंचित वर्ग के उद्यमियों का उत्थान हुआ है। आज वंचित वर्ग के नौजवान कारोबारी बनना चाहते हैं। उन्हें 'डिक्की' के जरिये पूंजी और तकनीक मुहैया कराई जा रही है। सरकार ने नियम बना दिया है कि एसएमई से होने वाली 30 फीसदी खरीद वंचित वर्ग की एसएमई से ही होनी चाहिए। टाटा मोटर्स में भी यही व्यवस्था की गई है। चंद्रभान प्रसाद कहते हैं कि 'कभी वंचितों के हाथ का छुआ न खाने वाले आज उनका बनाया पानी पी रहे हैं। नैनो, पल्सर, हीरो होंडा बनाने में हमारी भागीदारी है।ह्ण भारत में करीब 20 करोड़ वंचित हैं।
श्याम बाबू के मुताबिक देश की आबादी में इनकी हिस्सेदारी छठे नंबर पर है, पर उनके पास देश की संपत्ति का सिर्फ एक फीसदी हिस्सा है। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति वित्त और विकास निगम जैसी सरकारी संस्थाओं के गठन के बावजूद वंचित कारोबारी समुदाय को पूंजी हासिल करने में हमेशा दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। मुद्दे की बात यह है कि अब वंचित वर्ग के नौजवान सरकार से नौकरी की भीख नहीं मांग रहे। वे अपने लिए कारोबार की दुनिया में नई इबारत लिखने के ख्वाब देखने के साथ उन्हें साकार करने में जुटे हुए हैं।
देवानंद लोंधे
विशेषता- विदेशी नौकरी छोड़कर हिंगनगांव में दस्ताने बनाने की फैक्ट्री डाली, 150 महिलाओं को रोजगार मिला
लक्ष्य – सिर्फ व्यवसाय नहीं, वंचित वर्ग के बेरोजगारों को रोजगार देना
स्वप्निल भिंगारदवे
विशेषता – महाराष्ट्र में चीनी मिल खोली, 250 लोगों को रोजगार
लक्ष्य – रोजगार के ज्यादा से ज्यादा अवसर उपलब्ध कराना
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