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-राम माधव-
अ.भा. सह संपर्क प्रमुख, रा.स्व.संघ
मीडिया में जैसे ही हेंडरसन ब्रूक्स-भगत रपट के लीक होने की खबर आई, कांग्रेस की प्रतिक्रिया थी कि उसमें प्रधानमंत्री नेहरू का कहीं नाम नहीं है इसलिए तब जो भी हुआ उसका दोष उन पर नहीं मढ़ना चाहिए। यह बेतुकी बात है। केवल युद्ध के दौरान भारत के प्रधानमंत्री के नाते ही नहीं, बल्कि उससे कम से कम 12 साल पहले की भूलों के लिए भी नेहरू को उनकी उन खामियों से बरी नहीं किया जा सकता जिनके कारण युद्ध में हार मिली, जमीन गंवाई और अपमान झेला। 1963 में पेश हुई हेंडरसन-भगत रपट 51 सालों से साउथ ब्लॉक की अलमारी में धूल फांकती रही है। सितम्बर 1963 में तत्कालीन रक्षा मंत्री यशवंत राव चव्हाण ने तर्क दिया था कि रपट प्रकाशित करने से न केवल हमारी सुरक्षा पर खतरा होगा बल्कि हमारे सीमा प्रहरियों के मनोबल पर असर पड़ेगा। 2012 में वर्तमान रक्षा मंत्री एंटोनी ने भी यह कह कर रपट को सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया कि इससे भारत सरकार के संप्रभु हितों पर उल्टा असर पड़ेगा। इसमें शक नहीं कि यह रपट उस समय की सरकार के तहत आई थी इसलिए इसमें नेहरू और मेनन का नाम उस तरह से नहीं होगा पर यह जरूर कहा गया है कि 62 की हार में असली चूक सैन्य नहीं, राजनीतिक थी। उस समय मुख्य रूप से चार मोर्चों पर चूक हुई थी-
तिब्बत मुद्दे पर कन्नी काटी
तिब्बत सरकार क े लगातार अनुरोध और पश्चिमी ताकतों के सुझावों के बावजूद 1950 में माओवादी चीन के उसे बार बार रौंदने पर भी नेहरू ने तिब्बत की मदद करने से इनकार कर दिया। चीन द्वारा तिब्बत पर कब्जे को नेहरू ने बहुत हल्के में लिया। इस मसले को अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर आम चर्चा के हिस्से के तौर पर लिया गया। उस समय संयुक्त राष्ट्र में चीन के दाखिले की पैरवी कर रहे नेहरू ने तिब्बत की पीड़ा को संसद में उठाने से भी इनकार कर दिया।
पंचशील का पलीता
ह्यहिन्दी चीनी भाई-भाईह्ण के मायाजाल के बीच भारत और चीन ने 29 अप्रैल 1954 को पंचशील समझौता किया। इस समझौते के तहत एक तरह से भारत ने तिब्बत पर चीनी कब्जे पर मुहर लगा दी। 18 मई 1954 को संसद में नेहरू ने छाती फुलाते हुए कहा कि आजादी के बाद इससे बढि़या काम कोई नहीं हुआ। लेकिन असल में इस तबाही भरे समझौते ने आधिकारिक रूप से दशकों के तिब्बत को आजाद रखने के उन सब अच्छे प्रयासों में पलीता लगा दिया।
देर हुई और होती गई
1952 में ही नेहरू सरकार को अक्साई चिन में चीनी घुसपैठ की खबर मिल गई थी। नेहरू के खुफिया प्रमुख मल्लिक ने संदेश भेजा था कि चीनी अक्साई चिन में खच्चर मार्ग को जीप मार्ग बनाने में लगे हैं। ह्ण53 में नेहरू को पता चल गया था कि जीप मार्ग को सुधार कर राजमार्ग बनाया जा
रहा है।
1955 से दोनों देशों की सेनाओं में आएदिन झड़पें होने लगीं। ह्ण57 में चीनी मीडिया ने बता दिया था कि अक्साई चिन होकर सिक्यांग और तिब्बत को जोड़ने वाला राजमार्ग बन रहा है। ह्ण59 तक नेहरू ने देश को अंधेरे में रखा। नेहरू और मेनन इस मसले को संयुक्त राष्ट्र में उठाने को भी राजी न हुए।
युद्ध की तैयारी नदारद
ह्ण60 में चाऊ ने नेहरू से कहा था कि दोनों देशों में कोई युद्ध नहीं होगा। नेहरू ने सोचा कि चीन लड़ाई नहीं करेगा क्योंकि वह लड़ाई इन दो देशों में सीमित न रहकर विश्वयुद्ध बन जाएगी। इसलिए न कोई योजना बनाई गई, न कोई तैयारी की गई। मेनन ने तो यहां तक कहा था रक्षा? किससे? लड़ाई छिड़ने क े वक्त मेनन न्यूयार्क में थे, नेहरू पहले यू.के. में फिर अफ्रीका और उसके बाद श्रीलंका में थे। ल्ल
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