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-मुजफ्फर हुसैन-
उत्तर प्रदेश में उम्मीदवारों के नामों का चयन करने के लिए भाजपा ने अंतिम क्षणों तक अपनी मशक्कत जारी रखी। क्योंकि यही वह प्रदेश है जो सत्ता प्राप्ति में किसी भी दल का भाग्य तय करता है। इसलिए भाजपा आलाकमान के सामने यह सवाल नहीं था कि कौन दिग्गज किस निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव में उतारा जाए, बल्कि सवाल है कि कौन-किसे पटखनी देकर विजय प्राप्त कर सकता है? उत्तर प्रदेश का राजनीतिक और सांस्कृतिक आधार पर चाहे जितना विभाजन कर दिया जाए लेकिन वहां के वोट बैंक को विभाजित करना अत्यंत कठिन है। इसलिए उत्तर प्रदेश ने भाजपा आलाकमान को सोच कर निर्णय करने पर मजबूर कर दिया। बाहर कुछ भी हो लेकिन जब पार्टी की भावी सत्ता के लिए रणनीति बनाने का समय आया तो लगभग सभी नये और पुराने भाजपा नेताओं ने स्वर में स्वर मिलाकर इन फैसलों को स्वीकारा। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस प्रदेश में इस बार मुस्लिम वोटों का जिस प्रकार बंटवारा होगा ऐसा पहले कभी नहीं हुआ होगा। लगता है कांग्रेस न केवल घायल होगी, बल्कि मरणासन्न स्थिति में पहंुचने वाली है।
मुजफ्फरनगर का दंगा तो कांग्रेस के लिए गले ही फांस बना ही हुआ है। स्वयं अपना फैसला भी उसके रास्ते का सबसे बड़ा रोड़ा बनने वाला है। केन्द्र सरकार ने विदाई के क्षणों में जाटों को आरक्षण जो दे दिया है। यह करके उसने अपने रास्ते में स्वयं ही गड्ढा खोद लिया। देश में अपने सबसे पुराने और सर्वाधिक संगठित मुस्लिम वोट बैंक को कांग्रेस ने इतनी बुरी तरह से नाराज कर लिया कि अब उन्हें न तो मनाने से काम चल सकता है और न ही उन्हें नाराज करने से। जिन्हें खुश करने के लिए यह जोखिम उठाया क्या वे भी उसका साथ देंगे? वोटों की संख्या का हिसाब देखें तब भी मुस्लिम वोट अधिक हैं इसलिए कांग्रेस अब स्वयं को ठगा सा महसूस कर रही है। मुस्लिम वोट संगठित होकर तो किसी एक के पक्ष में मतदान नहीं करेंगे, लेकिन उनके मतों का विभाजन ही कांग्रेस के लिए हार का सबसे बड़ा कारण बन सकता है। यद्यपि मुस्लिम वोट किसी एक के पक्ष में नहीं जाएंगे, लेकिन उनका बंटवारा ही भाजपा के लिए सबसे बड़ा वरदान साबित होगा।
मुजफ्फरनगर सहित पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 18 प्रतिशत मुस्लिम सपा से सख्त नाराज हैं। अब वे सपा में शीर्ष पर बैठे हुए दोनों पिता-पुत्र, मुलायम और अखिलेश को फिर से एक अवसर देने के लिए तैयार नहीं हैं। यह प्रश्न केवल समाजवादी पार्टी से नाराज होने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि मुसलमानों के सामने भी यह यक्ष प्रश्न खड़ा है कि अब वे वोट दें तो किसे दें? समाजवादियों ने दंगा करवाया और कांग्रेस ने जाते-जाते जाटों को आरक्षण दे दिया। मुजफ्फरनगर के दंगों के लिए मुस्लिम जाटों को जिम्मेदार मानते हैं। कोई भी ऐसा स्थान नहीं है जहां मुसलमानों ने जाटों के विरुद्ध पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं करवाई हो। मुस्लिमों के शब्दों में कांग्रेस ने जाटों के विरुद्ध कार्यवाही तो नहीं की। किन्तु आरक्षण के पुरस्कार से उनको अवश्य ही लाभान्वित कर दिया। मुसलमानों का कहना था यह तो उनके घावों पर और भी नमक छिड़कने जैसा है।
कांग्रेस के इस निर्णय पर राशिद अलवी जैसे सांसद और कांग्रेस के प्रवक्ता ने कांग्रेस में अपनी नाराजगी जतायी है। वहीं दिल्ली के एक अन्य कांग्रेसी मुस्लिम नेता आसिफ खान ने भी अपनी पार्टी को आड़े हाथों लिया। इनका कहना है कि ह्यहिंसा रचने वालों को फायदा पहुंचाकर सरकार ने साबित कर दिया है कि उनके सामने मुस्लिम मतदाता का कोई अस्तित्व नहीं है।ह्ण लेकिन राशिद अलवी ने जो पत्र कांग्रेस आलाकमान को लिखा उसमें यह भी स्पष्ट कर दिया है कि वे जाटों को आरक्षण देने के विरोधी नहीं हैं, लेकिन वह इतना कहना चाहते हैं कि सरकार ने गलत समय पर गलत निर्णय लिया है। क्योंकि चुनाव की संध्या पर जाटों को आरक्षण देने का अर्थ मुस्लिम यह निकाल रहे हैं कि केन्द्र सरकार ने मुसलमानों का कत्लेआम करने वाली जाट बिरादरी को पुरस्कृत किया है। राशिद अलवी समेत अन्य उत्तर प्रदेश के मुस्लिम कांग्रेसियों का यह मत है कि जाट समाज तो खुशहाल है उसे आरक्षण देने की वैसे भी कोई आवश्यकता नहीं थी। लेकिन चुनाव और दंगे जब दोनों हो रहे हैं उस समय यह कदम उठाकर कांग्रेस ने मुस्लिम समाज को यह जता दिया है कि उनके वोट कांग्रेस के लिए कोई अर्थ नहीं रखते हैं।
बड़े कांग्रेसियों का मानना है कि चुनाव के समय आरक्षण देना पार्टी का दूरदर्शी फैसला नहीं है। पारम्परिक मुस्लिम वोट को कांग्रेस पार्टी ने नाराज करके आत्मघाती कदम उठा लिया है। लेकिन इस अवसर पर अखबार और समझदार वर्ग यह भी सवाल कर रहा है कि क्या जाटों को आरक्षण देना गलत है? मुस्लिम तो आरक्षण के लिए आकाश-पाताल एक करते हैं और चाहे जिस तरह से कांग्रेस को ह्यब्लैकमेलह्ण करते हैं, लेकिन जब कांग्रेस अन्य को आरक्षण देती है तो उनके पेट में दर्द होता है? मुस्लिम अपने वोटों का भय बतलाकर सत्ताधारी पार्टी को ब्लैकमेल करना चाहते हैं तो यह उनकी भूल है। दंगा होना एक बात है और जाटों को आरक्षण देना दूसरी बात। इन दोनों को एक साथ मिलाकर देखने का अर्थ है कि उनकी दृष्टि में कुछ दोष है? मुस्लिम नेता इस प्रश्न का भी उत्तर देने में असमर्थ हैं कि जब वे स्वयं को कांग्रेस के मतदाता बतलाते हैं तो यह बतलाएं कि फिर उत्तर प्रदेश में मायावती की पार्टी को सफलता क्यों मिलती है? मुस्लिम नेता मायावती के राज में बड़े पदों पर क्यों आसीन किए जाते हैं? मुसलमानों को चाहिए कि वे दोहरा मापदंड छोड़ दें। वे मायावती और मुलायम दोनों को वोट देते हैं और उनकी सत्ता के मीठे फल खाते हैं। जब कांग्रेस अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए किसी अन्य का हाथ पकड़ती है तो उसका विरोध करते हैं। कांग्रेस पार्टी के अनेक दिग्गज मुसलमानों के इस दोहरे और ढुलमुल रवैये से सख्त नाराज हैं। बसपा उत्तर प्रदेश में कभी भी मुसलमानों की पहली पसंद नहीं रही है।
मुजफ्फरनगर दंगों के मामले में भी बसपा का कोई अच्छा रिकॉर्ड नहीं रहा है। इतना ही नहीं बसपा के भी कुछ नेताओं पर इन दंगों को भड़काने का आरोप है। इसलिए इस समय मुस्लिम वोट तीन भागों में बंटते दिखलाई पड़ रहे हैं। इनमें बसपा, सपा और कांग्रेस शामिल है। कांग्रेस का दावा है कि भाजपा को केवल वही रोक सकती है। लेकिन यहां मुस्लिम नेताओं की भी कमी नहीं है, जो नरेन्द्र मोदी में अपने भविष्य की तस्वीर देखते हैं। इन नेताओं का तर्क है कि जब उपरोक्त तीनों पार्टियां भी वही काम करती हैं जिसका आरोप वे भाजपा पर लगाते हैं तो फिर मुसलमानों का एक वर्ग यदि भाजपा को वोट देता है तो फिर उन्हें इस मामले में अपना मुंह क्यों चिढ़ाना चाहिए ? उनका यह भी कहना है कि इन तीनों को तो कई बार आजमा लिया इस बार मोदी को भी आजमा लेते हैं। उत्तर प्रदेश में इस बार मोदी की वकालत करते हुए अनेक मुस्लिम नेता और संगठन देखे जा रहे हैं। मुसलमानों की प्रगति और उनकी रक्षा को लेकर संगोष्ठी और सभाएं हो रही हैं। खुलेआम मुस्लिम टोली मोदी का नारा बुलंद करते हुए दिखलाई पड़ रही है। उनका तर्क है कि जिसे मुस्लिमों का कातिल कहा जाता है उसी के हाथ में इस बार मुस्लिम की सुरक्षा सौंप दो। मरना तो हर हालत में है ही, इस बार यह भी करके देख लिया जाए। जिसके कंधों पर जिम्मेदारी रखी जाती है और विश्वास जताया जाता है, नैतिक रूप से वह कहीं न कहीं ईमानदार बन जाता है। यदि भाजपा ने उनके साथ अच्छा और न्यायिक व्यवहार किया तो वे उसका दामन पकड़ लेंगे। अनुभव कड़वा सिद्ध होगा तो मुसलमानों को कोई अफसोस नहीं होगा। मोदी के समर्थक मुस्लिम कहते हैं कि न्यायालय से उन्हें 2002 के साम्प्रदायिक दंगों के आरोपों से मुक्ति मिल गई है। लेकिन कांग्रेस, सपा और बसपा का कहना है कि मोदी को आरोपों से मुक्ति निचली अदालत ने दी है, अभी तो बड़ी अदालत का फैसला आना बाकी है। इसलिए मोदी के पक्ष और विपक्ष में बहस जारी है।
सपा, बसपा और कांग्रेस के अतिरिक्त इस बार आआपा भी मैदान में है। देखना यह है कि वह क्या गुल खिलाती है? राहुल का सामना कर रहे कुमार विश्वास परीक्षा में असफल हो गए हैं क्योंकि अपनी कविता में इमाम हुसैन के लिए उन्होंने जो टिप्पणी की उससे कोई भी मुस्लिम उनके पास फटकने वाला नहीं है। आम आदमी उपरोक्त तीनों पार्टियों के वोट काटेगी इसलिए इसमें भला तो कांग्रेस का ही होने वाला है। मोदी के विरुद्ध केजरीवाल के उम्मीदवार बनने की स्थिति में यदि इन्हीं तीनों ने मोर्चा बना लिया तो स्थिति कुछ बिगड़ सकती है। लेकिन इसके बावजूद मोदी सफल हो गए तो तीनों दलों की मिट्टी खराब हो सकती है। उत्तर प्रदेश की जंग हमेशा की तरह इस बार भी केन्द्र में स्थापित होने वाली सरकार का मार्ग प्रशस्त करेगी। ल्ल
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