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तेनालीराम की बुिएक बार राजा कृष्णदेव राय का दरबार लगा हुआ था। दरबार में सारे दरबारी, पंडित, मंत्री और सामान्यजन भी बैठे हुए थे। उस समय दरबार में हंसी-ठिठोली का माहौल छाया हुआ था। सब उसी में मशगूल थे। राजा भी बहुत खुश नजर आ रहे थे, क्योंकि तेनालीराम बेहद बुद्धिमान थे। वह अपनी चतुराई से बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान कर देते थे। इसलिए सारे दरबारी उनसे द्वेष रखते थे।
उन्हें तेनालीराम से बहुत ईर्ष्या थी, लेकिन उनके सामने बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे। जब वह दरबार में अनुपस्थित होते थे तो राजा कृष्णदेव राय हमेशा तेनालीराम की प्रशंसा के पुल बांधते रहते थे। वहीं जब तेनालीराम दरबार में अनुपस्थित होते थे, तो मौका देखकर बाकी के दरबारी तेनालीराम के प्रति द्वेष का भाव रखकर राजा को भड़काने का काम करते रहते थे। लेकिन राजा को तेनालीराम की चतुराई पर बहुत भरोसा था। दरबार में चल रही हंसी-ठिठोली के बीच राजा कृष्णदेव राय ने दरबारियों की परीक्षा लेने का मन ही मन विचार बनाया।
उन्होंने सभी दरबारियों से शांत होने को कहा, और बोले- ध्यान से सुनो, तुम सभी को मेरे एक सवाल का जवाब देना है। जो इस सवाल का जवाब सही देगा और उसे साबित कर दिखाएगा उसे मैं तेनालीराम की जगह अपना मंत्री नियुक्त कर दूंगा।
कृष्णदेव राय ने कहा- देखो तुम सबके लिए बहुत बढि़या अवसर हाथ आया है। इससे तुम अपने मन की सभी इच्छाएं पूरी कर सकते हो। यह सुनकर सभी दरबारी बहुत खुश हुए। राजा ने फिर अपना सवालिया बाण छोड़ा और कहा, देखो, तुम्हें यह सिद्ध करना है कि ह्यमनुष्य द्वारा निर्मित चीज ज्यादा अच्छी होती है या प्रकृति के द्वारा निर्मित ह्ण।
यह सुनते ही सभी दरबारी सोच में पड़ गए। कृष्णदेव राय ने उन्हें एक सप्ताह का समय दिया और कहा अगले सोमवार को जब दरबार लगेगा तो तुम्हें खुद को सबसे श्रेष्ठ साबित करना है। सब दरबारी अपने-अपने घर को हो लिए। सभी इसी सोच में डूबे थे कि इस बात को कैसे सिद्ध किया जाए।
सारे दरबारियों में से किसी को भी इस सवाल का हल नहीं मिल पाया। तय समय के अनुसार फिर सोमवार के दिन राजदरबार लगा। सभी लोग अपने-अपने आसन पर विराजमान हो गए। हालांकि तेनालीराम सबसे पहले पहुंच गए थे।
अब राजा ने एक-एक कर सभी से सवाल का जवाब �
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