|
.उत्तर प्रदेश में शिक्षा में तुष्टीकरण, बदहाली और शिक्षा का व्यापारीकरण सहित तमाम विसंगतियों को दूर करने की मांग को लेकर 29 जनवरी को विधानसभा पर प्रदर्शन करते अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं पर पुलिस ने जमकर लाठियां भांजी। लाठीचार्ज में दर्जनों कार्यकर्ताओं को गंभीर चोटें आयी हैं। इस दौरान सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने अपनी गिरफ्तारी दी जिन्हें बाद में छोड़ दिया गया।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता प्रदेश की बिगड़ी शिक्षा व्यवस्था के खिलाफ विधान भवन का घेराव कर रहे थे। विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए प्रदेश भर से हजारों कार्यकर्ता आए थे। विधान भवन पहुंचने से रोके जाने पर कार्यकर्ता दो टोलियों में बंट गए।
छात्रों का एक समूह बापू भवन की ओर से तो दूसरा जीपीओ की ओर से विधान भवन के लिए निकला। दोनों ओर से छात्रों का हुजूम तेजी से विधान भवन की ओर बढ़ा। जिससे विधानभवन के सामने पुलिस और विद्यार्थी परिषद के बीच झड़प शुरू हो गई। धक्का-मुक्की में कई पुलिसकर्मी गिर पड़े। भीड़ को काबू करने के लिए पुलिस ने उन पर लाठीचार्ज शुरू कर दिया। उससे नाराज छात्र विधान भवन के सामने ही बैठ गए। छात्रों को उठाने में नाकाम पुलिस ने फिर लाठीचार्ज कर दिया। इससे विशाल, विवेक सिंह मोनू, सत्यभान भदौरिया समेत कई छात्रों के सिर फट गए, जबकि मिथिलेश, नितिन मित्तल, आलोक, सुशील वार्ष्णेय, दीपू, अभय सिंह, सत्यम गुप्ता, रवि सिंह, अभिषेक, अनुराग समेत दर्जनों कार्यकर्ताओं को गंभीर चोट आई। अभाविप के राष्ट्रीय मंत्री रमेश गडि़या व प्रदेश मंत्री मिथिलेश कुमार ने पुलिस की इस कार्रवाई की घोर निन्दा की है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश की सपा सरकार के दो साल के दौरान पूरी शिक्षा व्यवस्था ढह गयी है और पूरे विश्वविद्यालयों में अराजकता का वातावरण है। तकनीकी शिक्षा पूरी तरह व्यापारीकरण की चपेट में है। वहीं शिक्षकों की नियुक्ति में ठहराव आ गया है।
प्रदेश मंत्री (पूर्वी उत्तर प्रदेश) प्रशांत केसरी ने कहा कि अभाविप लगातार कहती रही है कि पाठ्य सामग्री में न केवल एकरूपता लानी चाहिए। लखनऊ, बरेली, आगरा, कानपुर में निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार की जांच वर्षों से लंबित है। तकनीकि विश्वविद्यालय के अधीन 730 कॉलेजों में से 90 प्रतिशत के पास संसाधनों का घोर अभाव है। इसी का परिणाम है कि सूबे के बीटेक छात्र किसी तकनीकी काम में नहीं बल्कि बीएड और बीटीसी करने को मजबूर हैं। प्रतिनिधि
टिप्पणियाँ