|
भारत और उसकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, हमारा अध्यात्म, हमारा साहित्य ऐसा है जिस पर जितने गं्रथ लिख दिए जाएं उतने कम हैं। भारत, भारतीयता, भारत की राजनीति और हमारे समाज और साहित्य को लेकर ह्यए रिमारकेबल पॉलीटिकल मूवमेंटह्ण नाम से लिखी गई पुस्तक में वी. षड्मुखनाथन ने राजनैतिक और समाजिक सक्रियता के अपने अनुभवों को साझा किया है। गत 17 जनवरी को भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में श्री लालकृष्ण आडवाणी ने इस पुस्तक का विमोचन किया। लेखक बताते हैं कि अपनी युवावस्था में उन्होंने पंडित दीनदयाल उपाध्याय का एक पत्र पढ़ा था जो उन्होंने अपने चाचा जी को लिखा था। पत्र में उन्होंने मातृभूमि के प्रति जनसंघ की विचारधारा का उल्लेख किया था। इस पत्र में उन्होंने लिखा था कि ह्यएक व्यक्ति अपने व्यक्तिगत जीवन में कितनी ही ऊंचाइयों को प्राप्त कर ले, लेकिन उसकी तरक्की का तब तक कोई महत्व नहीं है जब तक वह अपनी मातृभूमि के लिए कुछ ना करे। हम केवल फसल की कटाई में रुचि रखते हैं, लेकिन जिस खेत से हम फसल प्राप्त करते हैं उसे खाद डालना भूल जाते हैं। क्या हम अपने लोगों के हित के लिए अपनी बेकार की महत्वाकांक्षा को नहीं भूल सकते हैं?ह्ण इस पत्र को पढ़ने के बाद लेखक के जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव आया।
वर्ष 1951 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारतीय जनसंघ की नींव रखी थी। जनसंघ की स्थापना के बाद से आज तक भारतीय जनता पार्टी उन्हीं विचारों पर आगे बढ़ती रही है। पुस्तक में भारत की सृमद्ध संस्कृति, अध्यात्म और साहित्य के बारे में कुछ लेख प्रकाशित किए हैं। पुस्तक के विमोचन के अवसर पर वरिष्ठ भाजपा नेता श्री लाल कृष्ण आडवाणी ने कहा कि श्री वी. षड्मुखनाथन 1970 से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक समर्पित कार्यकर्ता रहे हैं। वर्तमान में वह भाजपा के साथ हैं। पुस्तक में लिखे उनके अनुभवों को पढ़ने से पाठकों को शिक्षाप्रद जानकारी मिलेगी। पुस्तक की पहली प्रति भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह को भेंट की गई।
टिप्पणियाँ