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-राजनाथ सिंह 'सूर्य'
क्या दिल्ली में सरकार बनाने के लिए कांग्रेस का आम आदमी पार्टी को समर्थन भारतीय जनता पार्टी के विजय रथ को रोकने की सोची समझी योजना का हिस्सा है या फिर कांग्रेस पर भाजपा तथ्यहीन आरोप लगा रही है? क्या कारण था कि दिल्ली की 15 वर्ष से सल्तनत संभालने वाली कांग्रेस ने उसी पार्टी को समर्थन दे दिया जो उसके सफाये के लिए जिम्मेदार है। अरविन्द केजरीवाल ने कांग्रेस द्वारा समर्थन का एकतरफा पत्र भेजने के बाद ही सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए समय मांगा था। उन्हें समय भी मिल गया और दिल्ली के कांग्रेसियों तथा आम आदमी पार्टी के बीच दो दिन तक चले वाक्युद्घ से एक बात तो स्पष्ट है कि कांग्रेस का यह समर्थन सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। इस बात पर मतभेद हो सकता है कि यह समर्थन आम आदमी पार्टी को फेल होकर दिल्ली की जनता की नजर से गिर जाने की नियत से दिया गया है या फिर नरेंद्र मोदी अभियान के सामने बौनी हो जाने के कारण, उनके समर्थन से अवाम को दूसरा विकल्प उपलब्ध कराने के लिए। अन्यथा जिस कांग्रेस पार्टी ने जनता दल का विभाजन कर चन्द्रशेखर को प्रधानमंत्री बनाने के बाद इसलिए समर्थन वापस ले लिया था क्योंकि हरियाणा कॉडर के दो सिपाही राजीव गांधी के अवास में चले गए थे, वह जिस आम आदमी पार्टी द्वारा आरोपों की बौछार एवं कांग्रेस नेताओं के भ्रष्टाचार की जांच कराने का दावा किया है उसे समर्थन क्यों कर देती। वह तो तटस्थ भी रह सकती थी। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों ही भाजपा पर हमलावर है। कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व मौन है और दिल्ली के नेतृत्व का आक्रामक रवैया ढीला पड़ गया है। जहां तक समर्थन वापसी का सवाल है तो कांग्रेस यदि ऐसा करे भी तो वह पहली बार नहीं होगा। चौधरी चरण सिंह, इंद्रकुमार गुजराल या चंद्रशेखर की सरकारों से जिन मुद्दाविहीन कारणों से उसने समर्थन वापस लिया था, उससे अधिक कारण इस समय मुंहबाये खड़े हैं।
केजरीवाल द्वारा सरकार बनाने के दावे और शपथग्रहण के समय रामलीला मैदान में उमड़े जनसमुदाय को अभूतपूर्व बताने और उनके द्वारा उस समुदाय को रिश्वत न लेने और न देने की शपथ दिलाए जाने से कुछ लोग इतने प्रभावित हैं कि उन्होंने इसी प्रकार अतीत में अभीभूत होने की अभिव्यक्तियों और बाद के परिणाम का संज्ञान लेने की आवश्यकता नहीं समझी है। कुछ टीवी चैनल तो इतने अभीभूत नजर आए कि वे आम आदमी पार्टी की सफलता पर संदेह प्रगट करने वालों का मुंह नोचने पर उतर आये। प्रचार माध्यमों में इस प्रकार का ह्यहिस्टीरियाह्ण कभी नहीं देखा गया लेकिन अवाम में ऐसे परिवर्तन के समय अपेक्षा की संभावनाओं के प्रति अनुकूलता का यह पहला अवसर नहीं है। 15 अगस्त, 1947 को आजादी का जश्न देशभर में गांव-गांव जिस उत्साह से मनाया गया था, उसकी शायद ही कभी पुनरावृत्ति हो सके। इंदिरा गांधी द्वारा पाकिस्तान के विभाजन और बंगलादेश के अभ्युदय, जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में कांग्रेस को पहली बार केंद्रीय सत्ता से बेदखल करने, विश्वनाथ प्रताप सिंह को ह्यराजा नहीं फकीर है देश की तकदीर हैह्ण के नारे के साथ छा जाने का अवसर प्रदान करने के समय जन उभार का जो स्वरूप था, उसकी अपेक्षा 28 दिसम्बर को रामलीला मैदान का जनसमुदाय और फोटो ख्िंाचवाने भर के लिए कई राज्यों की राजधानियों में झाड़ू प्रदर्शन तो कुछ भी नहीं था। यही नहीं तो दो वर्ष पूर्व अण्णा हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आम आदमी में जो स्व:स्फूर्त प्राण फंूका था, उसके मुकाबले में भी 29 दिसम्बर का उत्साह कुछ भी नहीं था। उस माहौल का लाभ भी आम आदमी पार्टी को मिला है। 28 दिसम्बर को रामलीला मैदान में जितना जनसमुदाय था, मीडिया ने उससे कई गुना अधिक नरेंद्र मोदी की रैली में जुड़ने वालों का भी संज्ञान लेना उचित नहीं समझा। किसी परिवर्तन के समय अपेक्षा के उत्साह का स्थायित्व भविष्य के आचरण पर पड़ता है। लालबत्ती न लेने, बड़े आवास में न रहने या फिर सुरक्षा के घेरे में चलने से इंकार करने का तात्कालिक प्रभाव ताली बजाने भर के लिए होता है। असली प्रभाव तो होता है जब अपेक्षाओं के अनुरूप आचरण हो। उसके लिए दूसरों पर आरोप मढ़ने से अधिक प्रभावकारी होता है वादों का निर्वाह। अरविन्द केजरीवाल ने अपने मंत्रियों और कार्यकर्ताओं को प्रगल्भता से दूर रहने की हिदायत जरूर दी है उस पर अमल कितना होगा यह देखना बाकी है। अमेठी में झाड़ू फेरने जाने का वादा न निभाने वाले उनके एक सिपहसालार अब मोदी से अपेक्षा कर रहे हैं कि वे राहुल गांधी के विरुद्ध अमेठी में चुनाव लड़ें। क्या वे कांग्रेस के प्रवक्ता हो गए हैं। यदि वे ये कहते हैं कि अमेठी, रायबरेली या जहां से मोदी चुनाव लड़ेंगे, अरविन्द केजरीवाल उसी क्षेत्र से लड़ेंगे, जैसे शीला दीक्षित के खिलाफ लड़े थे, तो बात समझ में आती। दिल्ली में इस परिवर्तन से यह आकलन लगाना कि देश की राजनीति में एक गुणात्मक परिवर्तन शुरू हुआ है, जल्दबाजी होगी। अतीत में ऐसे परिवर्तनों के बाद के परिवर्तन हम देख चुके हैं।
चार विधानसभाओं के चुनाव परिणाम एक संकेत हैं। भारतीय जनता पार्टी को चारों राज्यों में कांग्रेस के मुकाबले कहीं अधिक मत प्राप्त हुए हैं। भाजपा को आम आदमी पार्टी से भी मत और सीटें अधिक मिली हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव से स्पष्ट है कि कांग्रेस अंतिम सांस ले रही है। भाजपा की घोषणा कांग्रेस मुक्त भारत बनाने की है। उसे अपनी घोषणा के अनुरूप आचरण पर कायम रहना होगा।
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