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गत 19 अगस्त को बिहार के खगडि़या जिले में राज्यरानी एक्सप्रेस मौत की रेल गाड़ी बन गई। धमारा घाट रेलवे स्टेशन पर पटरी पार करते समय 37 तीर्थयात्री इस गाड़ी की चपेट में आ गए और अपनी जान गंवा बैठे। केन्द्र सरकार ने इस घटना के लिए बिहार सरकार को दोषी ठहराया है। केन्द्र सरकार का कहना है कि राज्य सरकार ने धमारा घाट रेलवे स्टेशन के पास चल रहे मेले की जानकारी नहीं दी थी। यह तर्क किसी के गले नहीं उतर रहा है। रेलवे का भी अपना तंत्र है। यह तंत्र रेलवे स्टेशनों और उसके आसपास होने वाले विशेष आयोजनों की जानकारी देता है। इसलिए पहला सवाल तो केन्द्र सरकार से है कि क्या रेलवे का स्थानीय तंत्र काम नहीं कर रहा था? यदि नहीं तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है? जब एक साथ हजारों की संख्या में लोग किसी स्टेशन पर उतरते हैं तो स्वाभाविक रूप से वे पटरी पार करके ही स्टेशन से बाहर जाएंगे। धमारा घाट में श्रद्घालु यही कर रहे थे। इसके बावजूद राज्यरानी एक्सप्रेस को स्टेशन पार करने की हरी झण्डी क्यों और कैसे दी गई? राज्यरानी एक्सप्रेस धमारा स्टेशन पर नहीं रूकती है। स्टेशन पर भीड़ को देखते हुए राज्यरानी एक्सप्रेस को बाहर ही रोका जाना चाहिए था। पर ऐसा हुआ नहीं। साफ है कि यह रेलवे के तंत्र की विफलता है। दूसरा प्रश्न बिहार सरकार से है कि उसने उस धार्मिक आयोजन के लिए ढुलमुल रवैया क्यों अपनाया? जब प्रशासन को पता था कि हर वर्ष सावन के महीने में धमारा घाट स्टेशन के पास मेला लगता है फिर भी समुचित व्यवस्था क्यों नहीं की गई? इस मेले के लिए सरकार की ओर से किसी भी तरह की व्यवस्था नहीं की गई थी। सच तो यह है कि इस घटना के लिए जितनी केन्द्र सरकार दोषी है उतना ही राज्य सरकार भी।
एक सच यह भी है कि रेलवे का परिचालन और हिन्दुओं के धार्मिक आयोजन दोनों सरकारी उपेक्षा के शिकार हैं। रेल पर किसी का ध्यान ही नहीं है। रेल भगवान भरोसे ही चल रही है। बार-बार दुर्घटनाएं होने के बावजूद रेल मंत्रालय केवल खानापूर्ति की कार्रवाई करके अपने कर्तव्य को पूरा मान लेता है। इसलिए आए दिन दुर्घटनाएं होती रहती हैं। जून 2013 तक 8,412 लोगों की जान पटरी पार करते हुए हो चुकी है। इस तरह की घटनाओं के पीछे रेलवे की लापरवाही ही सामने आती रही है। जब रेलवे स्टेशनों और फाटकों पर उचित व्यवस्था नहीं की जाएगी तो लोग अपने हिसाब से ही तो पटरी पार करेंगे। एक बात यह भी देखी जा रही है कि सरकारें किसी भी हिन्दू धार्मिक आयोजन को बहुत ही हल्के ढंग से लेती हैं। धमारा धाम में भी यही हुआ। जिस बिहार सरकार ने धमारा धाम मेले को सम्पन्न कराने के लिए कोई व्यवस्था नहीं की,वही सरकार किसी मजार या किसी कव्वाली के कार्यक्रम को सम्पन्न कराने के लिए एक पैर पर खड़ी रहती है। कार्यक्रम स्थल की साफ-सफाई से लेकर,बिजली,पानी और यातायात तक की व्यवस्था सरकारी कारिन्दों के पास होती है। जब कोई सरकार ही अपने नागरिकों के साथ भेदभाव करेगी तो फिर लोग किसकी आस रखेंगे? प्रतिनिधि
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