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31 जुलाई को सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्देश दिया जो गत 16 दिसम्बर के दिल्ली सामूहिक बलात्कार कांड के दोषियों को सजा दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि नाबालिग अपराधियों के संबंध में विचार करते समय उनकी मानसिक और बौद्धिक परिपक्वता पर गौर किया जाना चाहिए न कि कानूनी उम्र (18) पर। अदालत का मानना था कि आज के संदर्भों में चूंकि किशोर का मानसिक विकास तेजी से होता है इसलिए वह बालिगों की तरह अपराध कर सकता है। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने इस कांड पर जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के कोई फैसला सुनाए जाने पर रोक लगाने संबंधी अपने निर्णय में यह निर्देश दिया था, लेकिन इससे नाबालिग की आड़ में गंभीरतम अपराधों के दोषी के बच निकलने को लेकर चली लंबी बहस में एक नया आयाम जरूर जुड़ गया है। मुख्य न्यायाधीश पी.सदाशिवम की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह निर्देश जनता पार्टी के अध्यक्ष डा. सुब्रह्मण्यम स्वामी की याचिका पर दिया है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड तब तक उस काण्ड का फैसला न सुनाए जब तक कि किशोर शब्द की व्याख्या के संबंध में दायर जनहित याचिका पर कोई फैसला न आ जाए। इस संबंध में अगली सुनवायी 14 अगस्त को होनी तय हुई है।
सर्वोच्च न्यायालय ने जब यह निर्देश सुनाया उस वक्त 'नाबालिग' के वकील ने डा. स्वामी की याचिका का विरोध किया था। केन्द्र सरकार ने भी याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि इस आपराधिक मामले में तीसरे पक्ष का दखल नहीं होना चाहिए। प्रतिनिधि
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