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कल शर्मा जी के घर गया, तो वहां असम में कार्यरत उनके मित्र वर्मा जी मिले, जो अपने बेटे मनमोहन (मन्नू) के साथ आये हुए थे। उन्होंने बताया कि वे मन्नू को नेताओं और धनपतियों के बच्चों की शिक्षा के लिए प्रसिद्ध 'दून स्कूल' में भर्ती कराना चाहते हैं। इसके लिए वे दिल्ली से कुछ सिफारिशी पत्र जुटाना चाहते थे।
गपशप के बीच हमने सोचा कि थोड़ी देर बाहर पार्क में टहल लें। हम चलने ही वाले थे कि दूध वाला आ गया। शर्मा जी ने दूध लेकर चूल्हे पर चढ़ा दिया। वे कुछ देर रुकना चाहते थे, पर वर्मा जी दूध को देखते रहने की जिम्मेदारी मन्नू पर डाल दी।
जब हम लौटे, तब तक दूध उबलकर गिर चुका था। लगातार गैस जलने से भगोना तपकर लाल हो रहा था और मन्नू हाथ में कागज कलम लिये कुर्सी पर आराम से बैठा था।
वर्मा जी यह देखते ही क्रोध से उबलकर मन्नू को पीटने पर उतारू हो गये, पर शर्मा जी ने उन्हें रोक दिया। फिर उन्होंने गैस बंद कर भगोने में पानी डाल दिया और मन्नू से बातकर यह जानने का प्रयास करने लगे कि गलती समझने में हुई या समझाने में?
– क्यों बेटा मन्नू, हम तुम्हें क्या कह कर गये थे ?
– अंकल, आपने कहा था कि दूध को देखते रहना। मैंने उसे ठीक से देखा। आपको विश्वास न हो, तो ये कागज देख लें।
शर्मा जी देखा, उस कागज में लिखा था – छह बजे दूध उबलने रखा। 6.10 पर दूध खुदबुदाने लगा। 6.15 पर वह बाहर निकलने लगा। 6.20 पर पूरा दूध बाहर गिर गया। मैं गौर से देख रहा हूं। कुछ दूध गैस के बर्नर में भी गिरा है, इसलिए जलने की दुर्गन्ध आ रही है। अब आग की गरमी से भगोना लाल हो रहा है..।
पाठक मित्रो, हमारे मन्नू और उनकी चिरकुट मंडली का भी देश की समस्याओं के बारे में यही दृष्टिकोण है। अधिकांश मंत्रियों के चेहरे पर लगा भ्रष्टाचार का कीचड़ हो या अन्न की बरबादी, रुपये का लगातार हो रहा अवमूल्यन हो या उत्तराखंड में ध्वस्त व्यवस्था, बेरोजगारी हो या बढ़ती महंगाई, सरकार बहादुर के पास 'हर मर्ज में अमलतास' की तरह हर प्रश्न का एक ही स्थायी उत्तर है कि जनता घबराए नहीं, हम परिस्थिति को अच्छी तरह देख रहे हैं।
लगभग 25 वर्ष पूर्व भारत में राजीव बोफोर्स गांधी नामक एक हवाई प्रधानमंत्री हुआ करते थे। छींका टूटने से बिल्ली का भाग्योदय भले ही हो जाए, पर पूरे परिवार की तो हानि ही होती है। रा.बो.गांधी के समय में यही हाल भारत का भी हुआ था। उनके मुखारविन्द से समय-समय पर प्रकट होने वाले 'हमने देखा है, हम देख रहे हैं, हम देखेंगे' जैसे हास्यास्पद वाक्य उन दिनों खूब प्रसिद्ध हुए थे।
अब रा.बो.गांधी तो नहीं रहे, पर मनमोहन सिंह, चिदम्बरम्, सुशील कुमार शिंदे, मनीष तिवारी जैसे उनके खानदानी फरमाबरदार आज भी सत्ता में हैं, जो देश में रहें या राहुल बाबा की तरह छुट्टी मनाने के लिए विदेश में, पर देश की हालत को गौर से देख रहे हैं और शायद तब तक देखते रहेंगे, जब तक पूरा दूध बाहर नहीं गिर जाता।
खैर अब आप वर्मा जी की बात सुनें। वे देहरादून गये, पर कई असली और नकली सिफारिशों के बाद भी 'दून स्कूल' वालों ने उन्हें घास नहीं डाली। देहरादून को जानने वाले बताते हैं कि वहां हर गली में अंग्रेजी शिक्षा के नाम पर कुछ दुकानें खुली हैं, जिन्हें स्कूल कहा जाता है। वर्मा जी ने ऐसी ही एक दुकान में अपने मन्नू को भर्ती करा दिया और कमीज के कॉलर ऊंचे कर दिल्ली वापस आ गये।
लौटने पर शर्मा जी ने पूछा, तो उन्होंने कहा कि हम तो असम में जाकर सबको यही कहेंगे कि मन्नू 'दून स्कूल' में पढ़ता है। इससे बिरादरी और दफ्तर में हमारी नाक सबसे ऊंची हो जाएगी।
– पर वर्मा जी, यह तो झूठ हुआ ?
– शर्मा जी.., हजारों कि.मी. दूर रहने वालों के लिए देहरादून का हर स्कूल 'दून स्कूल' ही है। अब भला असम से कौन देखने आ रहा है कि मन्नू 'दून स्कूल' में है या 'मकदून स्कूल' में ?
शर्मा जी चुप लगा गये। कहते हैं कि राजीव गांधी भी दून स्कूल में पढ़े थे और उनके लाड़ले राहुल बाबा भी। जिस तरह हर समस्या को आंख मूंदकर उन्होंने 'देखा' और ये 'देख रहे हैं', उससे मुझे तो संदेह हो रहा है कि कहीं वे भी….। विजय कुमार
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