वाल मार्ट ने भारत सरकार को दिया टका सा जवाब
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हम नहीं मानते 30 फीसदी माल लेने की शर्त
जुलाई महीने के दूसरे हफ्ते में नई दिल्ली में अंतरराष्ट्रीय खुदरा स्टोर वाल मार्ट के प्रतिनिधियों ने भारत सरकार के औद्योगिक नीति और प्रोन्नति विभाग के अफसरों से जो बातचीत की, उसका खुलासा ज्यादातर अखबारों में नहीं छपा। लेकिन जो जानकारी बाहर आई है, वह चौंकाने वाली है। वाल मार्ट ने साफ साफ कह दिया है कि वे भारत के लघु उद्योगों से 30 फीसदी माल लेने की शर्त नहीं मान सकते, वे तो बस 20 फीसदी माल ही उठाएंगे। ध्यान देने की बात है कि, वाल मार्ट को भारत में आने की खुली छूट देने वाली मनमोहन सरकार इससे लघु उद्योगों पर सीधी चोट होने और इसकी वजह से बेरोजगारी बढ़ने की आशंकाओं के जवाब में करार की इसी शर्त को आगे कर देती थी कि वाल मार्ट शर्त के मुताबिक 30 फीसदी माल यहां के छोटे कारखानों से खरीदेगा, लिहाजा उनको बुरे दिन नहीं देखने पड़ेंगे। लेकिन वाल मार्ट ने अमरीका सहित तमाम देशों में अपने छीछालेदार कराने वाले बर्ताव पर ही चलते हुए उस शर्त से कन्नी काट ली कि 'नहीं, हम नहीं लेंगे यहां से 30 फीसदी सामान।' खुद सरकारी महकमे के अफसर हैरान-परेशान हैं कि अब सरकार अपनी खाल कैसे बचाएगी, क्योंकि इस शर्त पर ढिलाई दिखाना आसान नहीं होगा। यह राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दा है।
यूं वाल मार्ट वाले सरकार की एफडीआई के लिए दिखाई 'दरियादिली' से बाग-बाग हैं और इसके कायदे-कानूनों का बड़ी दिलचस्पी से विश्लेषण कर रहे हैं। उन्हें 'खुशी' है कि नई एफडीआई नीति की शर्तों का और खुलासा करने की उनकी मांग को सरकार ने मान लिया है। अभी जो कायदे गढ़े गए हैं उनके मुताबिक तो, मल्टीब्रांड खुदरा कारोबार में कुल निर्मित या प्रसंस्कारित उत्पादों में से 30 फीसदी भारत के छोटे उद्योगों से लेने की शर्त है। पता यह भी चला है कि दुनियाभर में अपने रिटेल स्टोर चलाने वाले कुछ कारोबारी वाणिज्य और उद्योग मंत्री आनन्द शर्मा के चर्चा चलाए हुए हैं कि भई, इस 30 फीसदी की शर्त को 'आवश्यक' के खांचे से निकालकर 'अच्छा हो कि' कर दो, जैसा कि एक ही ब्रांड के खुदरा में किया हुआ है। खबर है कि 'अंकल सैम' की फरमाबरदार मनमोहन सरकार इस मुद्दे पर भी परम पड़ सकती है। और अगर ऐसा होता है तो, भारत के छोटे कारखानों, उद्योगों पर हथौड़ा पड़ा ही पड़ा और बेरोजगारी बढ़ी ही बढ़ी।
अबू गरीब से भागे 500 अल कायदा जिहादी
29 जुलाई की रात बगदाद की चाक-चौबंद पहरेदारी वाली अबू गरीब जेल को भेद कर अल कायदा के 500 से ज्यादा जिहादियों के भाग खड़े होने के बाद तमाम शहरों में हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया। इराक की शिया बहुल सरकार के खिलाफ लंबे समय से नफरत पाले अल कायदा के सुन्नी जिहादी मौके की तलाश में थे और मौका मिलते ही जेल से अपने साथी जिहादियों का ले उड़े।
21 जुलाई की रात फिदायीन हमलावरों ने बारूद से भरी कार जेल के अगले दरवाजे से टकराकर रास्ता बना दिया। इस बीच बंदूकधारियों ने मोर्टार और राकेट लांचरों से पहरेदारों पर हमला बोला। सामने की सड़क पर भी जिहादियों ने मोर्चे संभाल लिए ताकि पुलिस की टुकड़ियों को वहां पहुंचने से रोका जा सके। इधर फिदायीन जाकेट पहने कई जिहादी अपने साथियों को छुड़ाने के लिए जेल में दाखिल हुए। अगली सुबह तक चलती रही उस जबरदस्त मुठभेड़ में 10 पुलिस वाले मारे गए। सुबह सेना के हेलीकॉप्टरों ने आकर हालात को काबू में किया, लेकिन उस वक्त तक सैकड़ों जिहादी भाग चुके थे।
जेल अफसरों की मानें तो, भागने वालों में अल कायदा के मौत की सजा पाए बड़े वाले जिहादी थे। बताते हैं, भगोड़ों की सरगर्मी से तलाश जारी है। लेकिन जेल अफसरों को शक है कि हो न हो इतना बड़ा जिहादी हमला जेल के पहरेदारों की मिलीभगत से ही हुआ होगा। वहां के गुह विभाग ने बयान जारी किया कि जिहादियों और पहरेदारों की साठगांठ से हमला हुआ। अल कायदा ने तो खुलकर हमले की जिम्मेदारी भी कबूली है। अपने जहर बुझे बयान में अल कायदा की एक बाजू मानी जाने वाली 'लेवांत' ने कहा कि इराक में ये अब तक का सबसे बड़ा और सबसे नपा-तुला आतंकी ऑपरेशन बगदाद की शिया हुकूमत के खिलाफ अर्से से बड़ी बारीकी से बनाई जाती रही योजना का नतीजा था। कहना न होगा, बगदाद की हुकूमत के लिए आने वाला वक्त बेहद मुश्किल भरा रहने वाला है।
इजिप्ट में पिछले दिनों कुर्सी से हटाए गए मुरसी के मुस्लिम ब्रदरहुड समर्थकों के हुजूम राजधानी केयरो की सड़कों और प्रदर्शनकारियों के शिविरों के आस-पास नारे लगाते दिख रहे हैं। केयरो के बाहरी इलाके में लगे इन शिविरों में जमे देश के अलग अलग शहरों से आए मुरसी समर्थकों के चेहरों पर उबाल साफ पढ़ा जा सकता है। इन प्रदर्शनकारियों ने 'सेना से टकराओ' का नारा उछाला है।
राजधानी की सड़कों पर पुलिस के साथ इनकी हिंसक झड़पें हुईं। 'नई क्रांति' का नारा देते ये लोग पुलिस की गोलियों, आंसू गैस वगैरह के सामने अड़े रहे, इन झड़पों में अब तक करीब 50 के मारे जाने की खबर है। केयरो के बाहरी इलाके में एक बड़ी मस्जिद के पास इन प्रदर्शनकारियों ने डेरे-तंबू लगाए हुए हैं। तबुओं में ही मुस्लिम ब्रदरहुड के खांटी लोग रणनीतियां तैयार करते हैं और नए शासन को परेशान करने के तरीके खोजते हैं। इजिप्ट की फौज के रवैये को देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि नई सत्ता आसानी से प्रदर्शनकारियों के आगे हथियार डालेगी। इस्लामवादियों की सिट्टीपिट्टी गुम है, लेकिन वे तीखे तेवर बनाए रखना चाहते हैं। मुरसी समर्थक वहां हुजूम में शामिल होकर फौज विरोधी नारे लगाते हैं और जहरबुझी तकरीरें सुनते हैं।
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