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पश्चिम बंगाल में 25 जुलाई को संपन्न हुए पंचायत चुनावों को देखकर यही सोचा जा सकता है कि इस राजनीति ने लोगों को एक-दूसरे के खून का प्यासा बना दिया। यह भी साफ हुआ कि स्थानीय स्तर के चुनावों के लिए हुई भारी हिंसा के लिए सिर्फ और सिर्फ ममता बनर्जी का नेतृत्व और उनकी सरकार की नाकामी जिम्मेदार है। 5 चरणों में संपन्न हुए पंचायत चुनावों के दौरान जगह-जगह हिंसा, आगजनी और बम विस्फोट की घटनाएँ हुईं। इस हिंसा और आगजनी में 20 से अधिक लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी, सैकड़ों घायल हुए और अनेक घरों को आग के हवाले कर दिया गया। यह सब इसलिए हुआ क्योंकि राज्य की सत्ता से बेदखल हो चुका वाम मोर्चा ममता की नाकामी का लाभ उठाकर वापसी चाहता है और ममता अपनी गिरती साख को सामने नहीं आने देना चाहतीं। लिहाजा दोनों दलों के नेताओं ने अपने कार्यकर्ताओं को 'चाहे जैसे भी हो पंचायत चुनाव जीतना ही है' का नारा देकर चुनावी जंग में झोंक दिया। दोनों दलों के नेताओं ने अपने-अपने कार्यकर्ताओं के भीतर उन्माद भर दिया। क्योंकि इन चुनावों में जीत-हार का असर आगामी लोकसभा चुनाव पर जरूर पड़ेगा ।
वाम दलों के हाथ से सत्ता निकलने वाली है, यह उन्हें तभी समझ में आ गया था जब 2008 के पंचायत चुनावों में उनकी करारी हार हुई थी। त्रिस्तरीय (ग्राम पंचायत, प्रखंड और जिला पंचायत) में वाम दल आधे में ही सिमट गए थे। परिणाम यह हुआ की 2011 में उनके हाथ से सत्ता फिसल कर तृणमूल कांग्रेस की झोली में जा गिरी। इस बार तृणमूल कांग्रेस को भी यही डर सता रहा था। इसीलिए राज्य सरकार ने पहले कोशिश की कि पंचायत चुनाव न हों, फिर राज्य चुनाव आयोग के साथ असहयोग किया, पर जब सर्वोच्च न्यायालय का चाबुक चला तो चुनाव करवाना मजबूरी हो गई। पर चुनाव शांतिपूर्ण हों इसके कलिए राज्य सरकार ने कुछ नहीं किया। यहाँ तक कि केंद्रीय सुरक्षा बलों को भी यह कहकर नहीं बुलाया कि इससे राज्य पर 400 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। परिणाम, 11 जुलाई से 25 जुलाई तक पांच चरणों में हुए मतदान में पूरे राज्य में यह दृश्य दिखा कि कहीं बम धमाका हुआ तो कहीं किसी के पेट से खून की नदी बह निकली। सबसे ज्यादा हिंसा मुर्शिदाबाद और बीरभूम जिलों में हुई। यह सारी हिंसा वाममोर्चे और तृणमूल समर्थकों के बीच ही हुई, क्योंकि भाजपा और कांग्रेस यहाँ कहीं थे ही नहीं। मरने वालों में अधिकांश मुसलमान ही हैं, पर अब साम्प्रदायिकता का शोर नहीं मच रहा, क्योंकि वाम और तृणमूल दोनों ही दल बंगलादेशी घुसपैठियों के थोक वोट बैंक पर कब्जा करना चाहते हैं। इसीलिए बंगाल की धरती को खून से लाल कर अपने राजनीतिक स्वार्थ साधने में जुटे हैं। प. बंगाल से बासुदेब पाल
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