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एक बार एक चूहे ने एक बिल्ली से मित्रता की। दोनों ने सोचा बरसात के दिनों में कुछ खाने को मिलना कठिन होता है, तो क्यों न हम लोग बरसात भर के लिए भोजन जुटाकर कहीं ठिकाने से रख लें। दोनों ने ला-लाकर भोजन इकट्ठा किया। उसमें अनेक प्रकार की वस्तुएं थीं। फिर उन्हें एक मंदिर में एक खाली हौज मिल गया। उसी में वे भोजन की वस्तुएं लाकर भरते गये। धीरे-धीरे पूरा हौज ऊपर तक भोजन की साम्रगी से भर गया। हौज छोटा ही था।
जाड़ा बीतने पर जब गर्मी अभी आरंभ ही होने वाली थी कि बिल्ली बोली- 'देखो, जो खाना हौज में जमा है उसे जमा ही रहने देना चाहिये। जैसे इधर-उधर से खाकर जाड़ा काटा, वैसे ही गर्मी में भी बाहर से भोजन जुटाकर पेट भरें। हौज की वस्तुएं हम बरसात में ही खायेंगे।' चूहे ने कहा- 'मौसी! ठीक कहती हो। हम तब तक हौज के पास ही नहीं जायेंगे।' बात पक्की हो गयी।
किन्तु कुछ दिन बीतने पर हौज की वस्तुएं खाने के लिए बिल्ली का मन छटपटाने लगा। तब उसने एक उपाय सोचा। उसने चूहे से कहा, 'बेटा! मुझे एक गांव में कुछ काम है। वहां मेरी सहेली एक बिल्ली ने बुलाया है।' वह कई दिनों बाद लौटी तो चूहे ने पूछा- 'जहां तुम गयी थीं, उस स्थान को क्या कहते हैं? वह बोली- उसको कहते हैं 'सरपट'।
चूहा बोला- 'विचित्र गांव है। ऐसा भी नाम होता है?' बिल्ली चुप रही, क्योंकि वह हौज के ऊपरी भाग में रखी वस्तुएं चट कर आयी थी। एक दिन फिर बिल्ली ने चूहे से कहा- 'यहां से दूर मेरा
एक भतीजा रहता है। उससे मिलकर आती हूं।'
जब लौटी तो चूहे ने पूछा- 'जहां गयी थी वह कौन सा स्थान है?' बिल्ली ने बताया कि उसे 'आधाचट' कहते हैं। चूहा कहने लगा- 'मौसी! मैंने ऐसे नाम तो कभी सुने नहीं।' बिल्ली चुप रही। वास्तव में अब तक वह खा-खाकर आधा हौज खाली कर चुकी थी। कुछ दिनों बाद उसने एक बार फिर कहा- 'बेटा! तुम परेशान न होना। होशियारी से रहना। मैं अपनी एक बेटी के यहां जाती हूं। यह कहकर वह फिर चली गयी और कई दिनों बाद लौटी तो चूहे ने वही प्रश्न किया कि 'इस बार कौन से नगर को गयी थी?' उसने कहा- 'सफाचट'।
चूहा चकित कि ऐसा भी कोई नगर है। फिर गर्मी का मौसम जब बीत गया तो दोनों उसी मंदिर के हौज के पास पहुंचे तो चूहे ने देखा कि पूरा हौज खाली है। सफाचट। तब वह समझ गया कि बिल्ली के बताये गये तीनों नामों का क्या रहस्य था। उसने कहा भी- 'मौसी! तुमने मुझे धोखा दिया।' बिल्ली ने गुरर्ाकर कहा- 'भाग जा, वरना तुझे भी साफ कर दूंगी।'
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