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पहाड़ तो पहाड़ ही होते हैं। दुर्गम, अति दुर्गम और मोड़ काटने पर नीचे देखने में भयावह। उस पर से आफत के रूप में बरसे पानी ने जो कहर बरपाया तो ऐसा दृश्य उभरा कि कलेजा मुंह को आ जाए। इस दैवी आपदा की कल्पना तो स्थानीय जन भी नहीं कर सकते थे, जो पहाड़ी जीवन का संघर्ष जानते हैं, तो उन हजारों लाखों की क्या कहें जो जून के महीने में चार धाम यात्रा और पर्यटन के लिए आए और प्रकृति की विनाशलीला का शिकार बन गए। जितना विकट हिमालय उससे भी विकट है पीड़ितों का बचाव और उन तक राहत पहुंचाना। सेना और अन्य सुरक्षाबल बचाव में उतरे तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक व अन्य संगठनों के कार्यकर्ता भी राहत पहुंचाने के लिए जी-जान से जुटे हैं।
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