जर्मन बेकरी मामले में सजा का ऐलान, मिर्जा को फांसी की सजा
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भटकल भाइयों के लिए कब तक भटकेगी पुलिस?
पुणे स्थित जर्मन बेकरी में बम विस्फोट के मामले में पकड़े गए एक मात्र आरोपी मिर्जा हिमायत बेग को स्थानीय सत्र न्यायालय ने 18 अप्रैल को फांसी की सजा सुनाई है। 15 अप्रैल को दिए अपने निर्णय में सत्र न्यायाधीश एन.पी. धोटे ने हिमायत बेग को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 435, 474 (जालसाजी) 153-ए (धर्म-नस्ल के आधार पर वैमनस्य फैलाना) तथा 120 बी (आपराधिक षड्यंत्र) के अन्तर्गत दोषी पाया था। जर्मन बेकरी कांड के पांच अन्य आरोपियों- यासीन भटकल, रियाज भटकल, इकबाल भटकल, मोहिसिन चौधरी और फैयाज कागजी को भगोड़ा घोषित करार दिया गया है। उल्लेखनीय है कि 12 फरवरी, 2010 में पुणे की जर्मन बेकरी में आतंकवादियों ने बम विस्फोट को अंजाम दिया था। इसमें 5 विदेशियों सहित 18 लोगों की मौत हो गई थी और 65 घायल हुए थे। डेविड कोलमैन हेडली और तहब्बुर राणा ने भी इस विस्फोट का षड्यंत्र रचने में भूमिका निभाई थी।
फांसी के लिए की भूख हड़ताल
सोमवार (15 सितम्बर) को जैसे ही खबर आयी कि मिर्जा हिमायत बेग को दोषी करार दिया गया है और उसे सजा गुरुवार (18 सितम्बर) को सुनाई जाएगी, पुणे से सैकड़ों किलोमीटर दूर अम्बाला में एक पिता हृदेशकांत जिंदल के जख्म ताजा हो गए है और वे भूख हड़ताल पर बैठ गए। उनकी मांग थी कि उनकी पुत्री के हत्यारे को फांसी की ही सजा मिले। अंबाला की रहने वाली 23 वर्षीया अदिति जिंदल पुणे में फैशन डिजायनिंग का कोर्स कर रही थी और 12 फरवरी के दिन बेस्ट बेकरी के बाहर ही खड़ी थी। धमाके के बाद उसे 90 प्रतिशत जली अवस्था में अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उसने 28 फरवरी को दम तोड़ दिया। 18 फरवरी को मिर्जा हिमायत बेग को फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद स्थानीय लोगों ने जूस पिलाकर श्री जिन्दल की भूख हड़ताल समाप्त कराई।
स्वायत्तता का अलगाववादी एजेंडा फिर उफान पर
किसी भी स्थिति में सत्ता में बने रहने की कांग्रेसी प्रवृत्ति जम्मू-कश्मीर के जनहित को न केवल हानि पहुंचा रही है अपितु देश की एकता के लिए भी खतरा बन रही है। वैसे तो जम्मू कश्मीर के संबंध में कांग्रेस की कभी कोई स्पष्ट नीति नहीं रही है, पर अब सत्ता की लालसा में वह कई ऐसे तथ्यों के साथ समझौते करती जा रही है जिनसे साम्प्रदायिक तथा अलगाववादी सोच को बल मिल रहा है। प्रदेश में कांग्रेस का नेशनल कांफ्रेंस के साथ गठबंधन है। नेशनल कांफ्रेंस के नेता मूल रूप से मुस्लिम कांफ्रेंस की उपज हैं। वह समय के साथ रंग बदलते रहते हैं। अब जबकि केन्द्र में कांग्रेस की नैया डांवा डोल हो रही है, तब इस स्थिति का लाभ उठाते हुए नेशनल कांफ्रेंस के नेताओं ने फिर रंग बदलना शुरू कर दिया है। वे स्वायत्तता की पुरानी मांग को फिर से उभारने में लगे हैं। इससे भी बढ़कर मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला तथा नेशनल कांफ्रेंस के कई अन्य नेताओं ने यह कहना आरंभ कर दिया है कि जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय विदेश नीति, रक्षा, मुद्रा और दूरसंचार को लेकर ही हुआ था, अन्य विषयों पर नहीं। इन लोगों ने यह भी कहना शुरू कर दिया है कि जम्मू-कश्मीर में भारत, पाकिस्तान तथा कश्मीर के लोग पक्षधर हैं। कई नेताओं ने तो आतंकवादियों के पुनर्वास जैसी नीतियों को अपनाने के साथ ही आतंकवादियों को स्वतंत्रता सेनानी तक कहना शुरू कर दिया है। अफजल गुरू को फांसी पर लटकाने का विरोध करने के साथ ही उसे 'बलिदानी' तक की संज्ञा दे डाली है। सुरक्षा बलों को घाटी से हटाने तथा उनके विशेषाधिकार (अफस्पा) समाप्त करने की मांग भी जोर-शोर से उठायी जा रही है। साफ है कि नेशनल कांफ्रेंस का एजेंडा केन्द्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस की सरकार में शामिल रहकर उसकी दुर्बलता का लाभ उठाने की है।
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